- दाताराम चमोली
नई दिल्ली। कोरोना काल में पैदा हुई प्रतिकूल परिस्थितियों ने राजनीति को भी प्रभावित किया है। यही वजह है कि बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहती है। पार्टी के सामने समस्या यह है कि वह राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को साथ लेकर जनता के बीच जाए या फिर अकेले ही चुनाव लड़े। राज्य के कई नेता चाहते हैं कि पार्टी को नीतीश से किनारा कर लेना चाहिए, जबकि आलाकमान को इस बात का डर है कि कहीं पार्टी का यह दांव उसके लिए उल्टा न पड़ जाए। दरअसल, भाजपा आलाकमान और राज्य की ईकाई भी शुरू से इस बात पर सहमत थे कि बिहार में एनडीए गठबंधन एकजुट है और नीतीश ही गठबंधन के नेता हैं, लेकिन कोरोना काल में प्रवासी श्रमिकों और कोटा से छात्रों की वापसी को लेकर नीतीश ने लॉकडाउन के नियमों का हवाला देते हुए जो स्टैंड लिया वह स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं को अखर रहा है। बताया जाता है कि राज्य ईकाई के कई भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि इससे नीतीश कुमार के प्रति जनता के दिलों में भारी आक्रोश है।
ऐसे में उनके नेतृत्व में चुनाव में जाने के बजाए अकेले ही लड़ना उचित रहेगा। उनका मानना है कि यदि भाजपा अकेले चुनाव में जाएगी तो अपने बलबूते राज्य में सरकार भी बना सकती है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक राज्य के कई भाजपा नेताओं को यह भी लगता है कि कोरोना काल में जब तब्लीगी जमात के लोगों के कारण कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने की ख़बर आई तो इससे धुव्रीकरण की नई संभावनाएं पैदा हुई हैं। इसका आगामी चुनाव में भाजपा को लाभ मिलना स्वाभाविक है। हालांकि राज्य के कई नेता आलाकमान की तरह ही यह मानते हैं कि नीतीश का साथ छोड़ना ठीक नहीं होगा। इन नेताओं की दलील है कि नीतीश के स्टैंड से भले ही प्रवासी श्रमिकों में नाराजगी हो, लेकिन बाद में श्रमिकों के शिविरों में भोजन और स्वास्थ्य सेवाओं की जो व्यवस्था की गई उससे वे संतुष्ट हुए हैं। इसके अलावा श्रमिकों के टिकट की व्यवस्था से लेकर उनके खाते में पैसा दिया गया।
गरीबों के खाते में राशन के लिए एक हजार रुपए डालने या अन्य योजनाओं का पैसा एडवांस में भुगतान करने के बाद अब लोगों में नीतीश कुमार के खिलाफ बहुत ज़्यादा आक्रोश नहीं रहा है। ऐसे में भाजपा को फूंक-फूंक कर कदम रखना होगा। नीतीश को छोड़ने से पहले ठीक से विचार कर लेना होगा। कहीं उन्हें छोड़ना बड़ा जोखिम न साबित हो जाए।बहरहाल अब राज्य में भाजपा नेता जल्दी ही डिजिटल चुनावी अभियान शुरू करने जा रहे हैं, लेकिन ऐसे में उनके लिए नीतीश कुमार गले में अटके उस गरम दूध की तरह बने हुए हैं जिनको लेकर फैसला लेना है कि उन्हें बाहर उगल दें या फिर अंदर घूंट लें।