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भाजपा को तेलंगाना में दिखी रही नई संभावनाएं, हैदराबाद निगम चुनाव में झोंकी पूरी ताकत

आमतौर पर राजनीतिक पार्टियों के बड़े नेता या स्टार प्रचारक स्थानीय निकायों से खुद को अलग रखते हैं। स्थानीय नेता ही इन चुनावों में अपने बलबूते पर लड़ते है। लेकिन जब किसी पार्टी के बड़े नेता किसी खास निगम चुनाव में खुद को झोंक डाले तो सवाल उठने स्वाभाविक हैं। इस निगम का चुनाव जीतना उतना पार्टी के लिए क्यों खास हो गया है। आजकल भाजपा दक्षिण राज्य तेलगांना के हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में  जी-जान से जुटी हुई है। पार्टी नेता इस चुनाव को जीतने के लिए जमीनी मुद्दों के अलावा विदेशी घुसपैठ और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दें उछाल रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि उन्हें उम्मीद है कि मतों का ध्रुवीकरण उन्हें लाभ दे सकता है। दरअसल तेलगांना में  भाजपा के दो विधायक हैं, लेकिन पार्टी के पास 19 में से 4 सांसद है। हैदराबाद में नगर निगम चुनाव को लेकर बीजेपी एड़ी- चोटी का जोर लगा रही है। भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारक इन चुनावों में जी-जान से प्रचार करने में लगे हुए हैं। बीजेपी पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, अमित शाह, स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ हैदराबाद की गलियों में घूम-घूम कर चुनाव प्रचार कर रहे है।

बीजेपी ने इस चुनाव में बिहार चुनाव की रणनीति तैयार करने वाले पार्टी के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र यादव को सारी जिम्मेदारी दी हुई है। बीजेपी के पार्टी अध्य़क्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर वहां पहुंचकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ बीजेपी युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बेंगलरु से बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या लगातार अपने बयानों से तीखे बाण फेंक रहे हैं ताकि हैदराबाद के हिंदू वोट बैंक पर कब्जा किया जा सकें।

ग्रेटर हैदराबाद में नगर निगम चुनाव 1 दिसंबर को होना है और 4 दिसंबर को नतीजें आएंगे। यहां 150 सीट, जो यह तय करेगी कि कौनसी पार्टी का नगर निगम मेयर बनेगा। अगर हम पिछले चुनाव की बात करें तो 99 सीटें तेलगांना राष्ट्र समिति को मिली थी। असदु्द्दीन औवेसी की एआईएमआईएम को 50 सीटें और भाजपा को केवल 4 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। नगर निगम चुनाव में मुद्दे सड़क, बिजली, पानी के कूड़े को लेकर होते है। नवंबर की शुरूआत में यहा दुब्बाक असेंबली के लिए उपचुनाव हुआ था। ये सीट टीआरएस की सीटिंग सीट है। जिस सीट से केसीआर चद्रशेखर चुनाव लड़ते है उसी के साथ लगती सीट है। इसलिए जहां ज्यादा प्रभाव भी टीआरएस का है। यह सीट विधायक की मौत के बाद ख़ाली हुई थी। पार्टी ने विधायक की पत्नी को ही उम्मीदवार बनाया था। उपचुनाव में इस सीट का पूरा प्रबंधन केसीआर के भतीजे हरीश राव ने संभाला था। जैसे बीजेपी में अमित शाह को राजनीति का चाणक्य कहा जाता है वैसे टीआरएस के लिए हरीश राव राजनीति के चाणक्य है। पंरतु इस सीट पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया था। इसी सीट को जीतने के बाद बीजेपी की तेलगांना को लेकर ज्यादा महत्वाकाक्षाएं बढ़ी। बीजेपी का वोट शेयर 13.75 फीसद से बढ़कर 38.5 प्रतिशत बढ़ा। वोट शेयर बढ़ा तो बीजेपी का हौंसला बढ़ा, और अब उस हौसले को लेकर बीजेपी नगर निगम चुनाव में अपना दमखम लगा रही है।

के चद्रशेखर राव राज्य की सत्ता अपने बेटे केटीरामा राव को हस्तांरित करने वाले हैं। इसलिए उपचुनाव हारने के बाद उन्होंने अपने भतीजे हरीश राव को किनारे कर दिया है। पहले पार्टी में हरीश राव की ज्यादा चलती थी। अपने भतीजे का साइडलाइन करने के लिए केसी चद्रशेखर ने पिछले नगर निगम चुनाव में सारी जिम्मेदारी अपने बेटे केटी रामा  राव को संभाली थी। केसी आर चद्रशेखर का यह दांव काम भी आया। केटी रामा राव की रणनीति के चलते नगर निगम चुनाव में टीआरएस को 99 सीट मिली और हरीश राव साइडलाइन हो गए। फिलहाल केटी रामा राव राज्य में शहरी विकास मंत्री है। 2017 में अमित शाह ने लक्ष्य रखा था कि वह बीजेपी को पंचायत चुनाव से लेकर संसद तक लेकर जाएगी। बीजेपी उसी रणनीति के तहत काम कर रही है। हरीश राव के साइडलाइन होने के बाद बीजेपी इसका फायदा जरुर उठाएंगी, क्योंकि कहते है ना कि घर का भेदी लंका ढाए। बीजेपी टीआरएस पार्टी के अंदरुनी कलह का फायदा जरुर उठाएंगी। जो मुद्दा इस समय ग्रेटर हैदराबाद में सबसे ज्यादा भुनाया जाता है वह पानी की निकासी को लेकर है इस बार मानसून सत्र में हुई बारिश से पूरे का पूरा शहर डूब गया था। इसी के चलते टीआरएस को जनता का रोष झेलना पड़ रहा है। दूसरी तरफ बीजेपी के लिए वार करने का यह अच्छा मौका है, क्योंकि लोहा गर्म, अब केवल उस पर हथौड़ा चलाना बाकी है।

5 दिसम्बर 2013 को मंत्रिसमूह द्वारा बनाये गए ड्राफ्ट बिल को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी। 18 फ़रवरी 2014 को तेलंगाना बिल लोक सभा से पास हो गया तथा दो दिन पश्चात इसे राज्य सभा से भी मंजूरी मिल गयी। राष्ट्रपति के दस्तखत के साथ तेलंगाना औपचारिक तौर पर भारत का 29वां राज्य बन गया है। तेलंगाना की जनसंख्या 84% हिन्दू, 12.4% मुस्लिम और 3.2% सिक्ख, ईसाई और अन्य धर्म के अनुयायी हैं। कांग्रेस दुब्बाक सीट पर तीसरे नंबर पर आई थी। बीजेपी अब कांग्रेस की जगह खुद को राज्य में स्थापित करने का मौका ढूढ़ रही है। असदुद्दीन की पार्टी एआईएमआईएम बीजेपी की बी टीम कहा जाता है। नगर निगम चुनाव जीतकर बीजेपी इस भ्रम को दूर करना चाहती है। नगर निगम चुनाव को राज्य की सत्ता की चाबी कहा जाता है। कई सालों में पहली बार बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष ऐसे नेता को बनाया है जो हैदराबाद से नहीं आते। प्रदेश के अध्यक्ष इस समय बंदी संजय कुमार हैं, जो करीमनगर लोकसभा सीट से सांसद भी हैं। दुब्बाक सीट पर हुए उप-चुनाव में पार्टी की जीत का सेहरा बंदी संजय कुमार के सिर ही बांधा गया। उपचुनाव से जीतने से पहले बीजेपी ने कभी भी टीआरएस पर सीधे हमला नहीं किया था, लेकिन उपचुनाव की  जीत झोली जाते ही अब बीजेपी टीआरएस को दबाकर कोस रही है। हालांकि राज्य के लोगों की धारणा है कि औवेसी की पार्टी और टीआऱएस दोनों मिलकर चुनाव लड़ते है, पंरतु कभी भी दोनों पार्टियों के नेताओं ने कभी इस बात को जनता के सामने स्वीकारा नहीं है।

बीजेपी के बड़े नेता कह रहे हैं, टीआरएस को वोट देना ओवैसी को वोट देने जैसा है। हाल ही में पार्टी नेता लोकसभा सांसद तेजस्वी सूर्या ने निगम चुनाव में रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा उठाया, उन पर सर्जिकल स्ट्राइक की बात की, तो स्मृति ईरानी भी इस पर बोलने में पीछे नहीं रहीं। ऐसा कह कर बीजेपी एक नगर निगम चुनाव में ध्रवीकरण की राजनीति कर रही है और दूसरी पार्टियों को इसका जवाब देना पड़ रहा है। प्रचार के दौरान तेजस्वी सूर्या ने कहा कि ”इससे ज़्यादा हास्यास्पद बात कुछ नहीं हो सकती है कि अकबरुद्दीन ओवैसी और असदउद्दीन ओवैसी विकास की बात कर रहे हैं। उन्होंने पुराने हैदराबाद में केवल रोहिंग्या मुसलमानों का विकास करने का काम किया है। ओवैसी को वोट भारत के ख़िलाफ़ वोट है।”

वहीं इसके जवाब में औवेसी ने कहा कि “सिकंदराबाद से बीजेपी सांसद जी किशन रेड्डी, केंद्र में गृह राज्यमंत्री हैं। अगर रोहिंग्या मुसलमान और पाकिस्तानी यहाँ रहते हैं, तो वो क्या कर रहे हैं।” यहां पहले नगर निगम चुनाव में पानी, बिजली, सड़क पर बात होती थी, अब रोहिंग्या मुसलमान, बांग्लादेश, सर्जिकल स्ट्राइक और पाकिस्तान पर हो रही है। मतलब नगर निगम चुनाव में आम मुद्दों की जगह की धर्म पर आधारित हो गया है। ग्रेटर हैदराबाद 24 विधानसभा सीटों पर फैला हुआ है, यहां की जीडीपी का आधा हिस्सा यहीं से आता है। अगर बीजेपी नगर निगम चुनाव में फतेह हासिल करती है तो उसके लिए विधानसभा का चुनाव जीतना आसान हो जाएगा।

हैदराबाद में तक़रीबन 40 फ़ीसद मुसलमान रहते हैं और एआईएमआईएम के अध्यक्ष यहीं से लोकसभा सांसद हैं। तेलंगाना विधानसभा चुनाव 2018 के अंत में हुए थे। 119 सीटों वाली विधानसभा में 88 सीट टीआरएस के पास हैं। 19 सीटों के साथ कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, एआईएमआईएम के पास केवल सात विधायक हैं और बीजेपी के पास केवल 1 विधायक है। लेकिन हाल ही में हुए दुब्बाक सीट के उपचुनाव के नतीजों के बाद अब बीजेपी के पास दो सीटें है और टीआरएस के पास 87 सीटें हैं। जब 2019 में लोकसभा चुनाव हुए तो राज्य की 17 सीटों में से बीजेपी के पास चार सीटें आई, कांग्रेस के पास तीन सीटें, एआईएमआईएम के खाते में एक सीट। बाक़ी की नौ सीटों पर टीआरएस ने क़ब्ज़ा किया।

नगर निगम चुनाव में काग्रेस की कोई बात नहीं कर रहा, ज्यादातर चर्चा बीजेपी और टीआरएस की हो रही है। अगर टीआरएस के वोट टूटते है तो वह बीजेपी को जाएंगे ऐसा माना जा रहा है। अब यह तो वोटरों के ऊपर निर्भर है कि वह किस पार्टी से अपना मेयर चुनते है।

 

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