पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बसपा से गठबन्धन के बाद भी लोकसभा चुनाव को लेकर बेहद चिन्तित हैं। चिन्ता इसलिए कि उनके बनाए हुए किले में सेंधमारी की योजना किसी और ने नही बल्कि उनके चाचा शिवपाल यादव ने बनायी है। कहना गलत नही होगा कि राजनीति के अखाडे़ में शिवपाल यादव अपने भतीजे अखिलेश से दस हाथ आगे हैं। अखिलेश को राजनीति का वह गुर नही मालूम होगा जिन गुरों के सहारे शिवपाल यादव अक्सर हारी हुई बाजी को पलटते रहे हैं। यह बात अखिलेश यादव भी अच्छी तरह से जानते हैं कि यदि जल्द ही शिवपाल यादव का कोई काट नहीं मिला तो निश्चित तौर पर गठबन्धन के सहारे लोकसभा चुनाव में किसी प्रकार का करिश्मा दिखा पाना आसान नही होगा। ऐसी परिस्थिति में गठबन्धन की दूसरी पार्टी बसपा को सर्वाधिक फायदा मिलेगा। सपा प्रमुख अखिलेश यादव बसपा प्रमुख मायावती के दोहरे चरित्र और राजनीतिक चाल से भी पूरी तरह से वाकिफ हैं। बसपा का पुराना इतिहास और स्वयं बसपा प्रमुख मायावती का ऐन वक्त पर यू टर्न लेना उनसे छिपा नही है। वे अच्छी तरह से जानते हैं कि यदि बसपा को अपना भविष्य भाजपा में ज्यादा सुरक्षित नजर आयेगा तो वे ऐन वक्त पर सपा का साथ छोड़कर भाजपा की चैखट पर पांव जमा सकती हैं और भविष्य में इस शर्त के साथ ‘दिल्ली तुम्हारी और यूपी हमारी।’ लिहाजा सपा को यदि अपने अस्तित्व को बचाकर रखना है तो सर्वप्रथम शिवपाल जैसे विभीषण की काट निकालना जरूरी हो जाता है। हालांकि शिवपाल के सपा विरोधी जोश को ठण्डा करने के लिए अखिलेश ने अपने पिता और पूर्व पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को भी बीच में शामिल किया था। मुलायम के आग्रह पर शिवपाल उनसे मिलने भी गए। बताया जाता है कि लगभग एक घण्टे तक चली बातचीत के बात यह कयास लगाए जाने लगे थे कि कम से कम इस बार के लोकसभा चुनाव में शिवपाल अपनी पुरानी पार्टी सपा के खिलाफ मोर्चा नही खोलेंगे। बताया तो यह भी जा रहा है कि इस बात का आश्वासन उन्होंने मुलायम को भी दिया था लेकिन राजनीति के माहिर खिलाड़ी शिवपाल ने राजनीति के गुर अपने बड़े भाई मुलायम से ही सीखे हैं लिहाजा ऐन वक्त पर दांव देना वे बखूबी जानते हैं। शिवपाल ने अपना पहला दांव फिरोजाबाद संसदीय सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा के साथ ही चल दिया है। लोकसभा की यह वह सीट है जो सपा महासचिव रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव के पास है। देखा जाए तो रामगोपाल यादव को सीधी चोट देने का संकेत साफ है कि वे अब जिस राह पर चल पड़े हैं उस राह से हटने वाले नही। भले ही इस बार के लोकसभा चुनाव में वे कोई करिश्मा न कर पाएं अलबत्ता सपा को नुकसान पहुंचाने की क्षमता अवश्य रखते हैं। सपा नेताओं का भी यही मानना है कि यदि शिवपाल ने अपने सपा विरोधी तेवरों को ऐसे ही बरकरार रखा तो निश्चित तौर पर सपा को बड़ा नुकसान होगा। ऐसी परिस्थितियों में बसपा कब यू टर्न लेकर भाजपा की गोद में जा बैठे, कुछ कहा नही जा सकता।
शिवपाल यादव द्वारा फिरोजाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा साफ इशारा करती है कि उन्होंने अपने पुराने दल सपा को ठिकाने लगाने की पूरी तरह से ठानी ली है अब वे किसी की सुनने वाले नही चाहें उनके राजनीतिक गुरु और बडे़ मुलायम सिंह यादव ही क्यों न हों।
सपा के खिलाफ उनके तेवरों का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि उन्होंने सपा-बसपा के महागठबन्धन को लेकर ठगबन्धन तक की संज्ञा दे डाली। अखिलेश द्वारा मायावती को बुआ पुकारने पर भी उन्हें ऐतराज है। शिवपाल कहते हैं कि जब उनके बड़े भाई मुलायम और स्वयं उन्होंने मायावती को कभी बहन की संज्ञा नहीं दी तो वह अखिलेश की बुआ कैसे हो सकती हैं। शिवपाल ने अखिलेश यादव को भी लगभग चेताते हुए कहा कि इस बुआ का कोई भरोसा नही, तीन बार भाजपा से मिलकर नेताजी (मुलायम सिंह यादव) को धोखा दे चुकी हैं। इतना ही नही जिस भाजपा के साथ मिलकर उन्होंने नेताजी को धोखा दिया अवसर आने पर वह भाजपा को भी धोखा देने से बाज नही आयीं। रही बात स्वयं सपा प्रमुख अखिलेश यादव की तो जिसने अपने पिता और चाचा को ऐन वक्त पर उस पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जिस पार्टी को खून-पसीने से सींचा गया था तो वह अपनी राजनीतिक बुआ के प्रति कितने वफादार होंगे? सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। कहना गलत नही होगा कि जिस गठबन्धन में दो ऐसे लोग मिल रहे हों जिनका इतिहास ही धोखेबाजी पर टिका हो उनका ठगबन्धन सिर्फ लोकसभा चुनाव परिणाम तक ही सीमित है। वक्त की नजाकत भांपकर दोनों ही दलों के भागने की संभावना से इंकार नही किया जा सकता।
हालांकि शिवपाल के फिरोजाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद से रामगोपाल यादव ने किसी प्रकार की चर्चा योग्य प्रतिक्रिया नही दी है लेकिन कहा जा रहा है कि शिवपाल यादव की घोषणा के बाद से सपा प्रमुख अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव इस समस्या की काट का इलाज ढूंढ रहे हैं।