नई दिल्ली। अब इसे नेपाल की चीन के प्रति बढ़ती करीबी समझें, नेपाल को चीन द्वारा उकसाया जाना कहें या फिर नेपाल सरकार की मजबूरी, सच यही है कि नेपाल और भारत के परंपरागत दोस्ताना संबंधों में इस बीच जो दरार पड़ी उसे दुनिया देख रही है। इन दिनों नेपाल में न सिर्फ पक्ष और विपक्ष दोनों के स्वर भारत विरोधी हैं, बल्कि वहां की आम जनता में भी भारत विरोधी माहौल बन रहा है। नेपाल के तेवर बता रहे हैं कि वह कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा पर अपने स्टैंड से पीछे हटने को तैयार नहीं है, बल्कि इसके लिए भारत के विरोध का उसे कोई संकोच नहीं है।
गौर करने वाली बात है कि भारत स्पष्ट कर चुका है कि जिस कैलाश मानसरोवर लिंक रोड़ को लेकर नेपाल ने विरोध जताया है वह भारतीय सीमा के अंदर ही है और यदि नेपाल फिर भी संतुष्ट नहीं तो उससे दोस्ताना संबंध होने के नाते सीमा विवाद को कूटनीतिक तरीके से सुलझाया जा सकता है। इसके बावजूद नेपाल अड़ा हुआ है कि लिपुलेख, कालापानी और लिपिंयाधुरा उसके क्षेत्र में आते हैं। नेपाल का दावा है कि जो सड़क उत्तराखंड के लिपुलेख से होकर गुजरती है उस सड़क का 19 किमी हिस्सा उसके संप्रभु क्षेत्र में आता है। यही उसके विरोध की वजह है। नेपाल ने बाकायदा अपना एक नया नक्शा जारी किया जिसमें ये तीनों क्षेत्र उसके अंतर्गत दिखाए गए। इस नक्शे को जब देश की संसद में पारित कराने के लिए संविधान में संशोधन की बात आई तो सभी पार्टियां एक साथ नजर आईं। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि नेपाल भारत के विरोध में एकजुट है।
जानकारों के मुताबिक नेपाल से भारत के मौजूदा सीमा विवाद की एक प्रमुख वजह यह है कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी का नजरिया चीन के करीब है। यही वजह है कि वहां की सरकार चीन के हर कदम का समर्थन कर रही है। भले ही वह कदम न्याय संगत हो या न हो। मसलन कि हॉन्ग कॉन्ग को लेकर भारत का स्टैंड है कि उसके लोकतांत्रिक मूल्यों का समर्थन किया जाना चाहिए, जबकि नेपाल ने भारत विरोधी स्टैंड अपनाकर चीन का खुलकर समर्थन किया कि हॉन्ग कॉन्ग चीन का आंतरिक मामला है।
भारत -नेपाल के बीच बढ़ती दूरियों की एक झलक यह भी है कि आर्थिक क्षेत्र में भी नेपाल और चीन साथ-साथ आगे बढ़ना चाहते हैं। चीन के साथ अक्टूबर माह में हुए एक समझौते के तहत नेपाल को तिब्बत से सामान लाने की अनुमति है। रेल-रोड ट्रांसपोर्ट सेवा के जरिये नेपाल अब नेपाल नौ दिनों के अंदर चीन से माल की आपूर्ति करने की स्थिति में है। हाल ही में नेपाल के लिए कई टन सामान की आपूर्ति के उद्देश्य से चीन से एक जहाज तिब्बत भी पहुंचा। चीन के साथ बढ़ती इस करीबी के बीच ही नेपाल में इस बात की राय बनती दिखी कि भारत पर कैसे अपनी निर्भरता खत्म की जाए।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि नेपाल में भारत विरोधी माहौल को देखते हुए ही प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को भी भारत के विरोध में कड़े तेवर अपनाने को बाध्य होना पडा़ है। सीमा विवाद के मुद्दे पर देश की राजनीति में उनसे कड़े तेवर अपनाने या फिर इस्तीफा देने की मांग उठने लगी थी। नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में पुष्प कमल दहल और वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल सरीखे नेताओं के खेमे से मांग उठने लगी थी कि प्रधानमंत्री इस्तीफा दें। अभी देश की सारी राजनीतिक ताकतें सीमा विवाद को लेकर एकमत हैं कि भारत के खिलाफ सख्त रवैया अपनाया जाए।
दाताराम चमोली
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