बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती एक बार फिर से सक्रिय होती नजर आ रही हैं। उनकी यकायक सक्रियता चलते जहां लगभग समाप्त हो चुकी बहुजन समाज पार्टी भीतर उत्साह का करंट दौड़ने लगा है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और भाजपा भीतर बेचैनी बढ़ गई है। उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में इन दिनों मायावती को लेकर नाना प्रकार की चर्चाओं का दौर शुरू हो चला है। इन चर्चाओं को बहनजी के एक बयाान ने हवा दी है। ‘एक्स’ पर डाली एक पोस्ट में उन्होंने लिखा कि ‘सक्रिय राजनीति से मेरा संन्यास लेेने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है। जब से पार्टी ने श्री आकाश आनंद को मेरे न रहने पर या अस्वस्थ विकट हालात में उसे बीएसपी के उत्तराधिकारी के रूप में आगे किया है तब से जातिवादी मीडिया ऐसी फेक न्यूज प्रचारित कर रहा है जिससे लोग सावधान रहें।’ बसपा प्रमुख के इस बयान ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को गर्मा डाला है।
कयास लग रहे हैं कि बसपा अब दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में पूरे दमखम के साथ उतर इन राज्यों में ज्यादा नहीं तो वोट कटुआ की भूमिका निभा बड़े दलों के समीकरणों को प्रभावित करने का काम करेगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मायावती एक बार फिर से अपने कोर वोट बैंक बहुजन समाज पर फोकस कर बसपा को उसकी खोई जमीन पर स्थापित करना चाह रही हैं। मायावती की अचानक सक्रियता के पीछे सुप्रीम कोर्ट का वह निर्णय बताया जा रहा है जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण में लागू क्रीमी लेयर की व्यवस्था को अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए भी लागू करने की बात कही गई है। इस फैसले के बाद 21 अगस्त को दलित और आदिवासी संगठनों ने अपना विरोधा दर्ज कराने के लिए भारत बंद का आयोजन किया था जिसका ठीक-ठाक असर हिंदी भाषी राज्यों में रहा था। मायावती भी इस फैसले बाद सक्रिय हो उठी हैं। गौरतलब है कि उनका कोर वोट बैंक इस आदेश चलते खासा आक्रोशित हैं और उसके इसी आक्रोश को हवा देकर बसपा प्रमुख एक बार फिर से सत्ता वापसी की राह तलाशने का प्रयास कर रही हैं। हालांकि उनकी राह में भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आ खड़े हुए हैं जिन्हें अब उत्तर प्रदेश का दलित वर्ग अपना नेता मानने लगा है।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यदि मायावती सही में बसपा को पुनर्जीवन देना चाहती हैं तो उन्हें आरक्षण के मुद्दे पर न केवल सड़क पर उतरना पड़ेगा, बल्कि भाजपा के प्रति अपने मोह को भी त्यागना होगा। खुद के पूरी तरह सक्रिय होने की बात कह हाल-फिलहाल बहनजी ने उत्तर प्रदेश की सियासत में उबाल लाने का काम तो कर दिखाया है लेकिन नाना प्रकार के भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी बसपा सुप्रीमो क्या वाकई भाजपा की खिलाफत कर पाने का साहस दिखा पाएंगी? यह यक्ष प्रश्न है जिसका जवाब भविष्य के गर्भ में छिपा है।
पूर्व में मायावती ने कई बार ऐसे कदम उठाए जिससे स्पष्ट संकेत मिले कि वे भाजपा नेतृत्व को नाराज नहीं करना चाहती हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब उनके उत्तराधिकारी आकाश आनंद ने भाजपा नेतृत्व पर उग्र तरीके से प्रहार करना शुरू किया था तब यकायक ही बहनजी ने उन्हें पार्टी के प्रचार से यह कहते हुए बाहर कर दिया था कि वे अपरिपक्व हैं। स्मरण रहे आकाश आनंद ने चुनावी रैलियों के दौरान भाजपा पर एक के बाद एक आरोप लगा उत्तर प्रदेश की राजनीति को गर्मा डाला था। उन्होंने भाजपा को आतंकवादियों की पार्टी तक कह डाला। उन्होंने बेहद तल्ख स्वर में कहा था- ‘साथियों भाजपा की सरकार आतंकवादियों की सरकार है। इसने आवाम को गुलाम बनाकर रखा है। ऐसी सरकार का समय आ गया है खत्म होने का… ऐसी सरकार को कोई भी हक नहीं है आपके बीच आने का। अगर ऐसे लोग आपके पास आएं तो जूता निकालकर रखिए। वोट की जगह जूता मारिए।’ आकाश आनंद के इस बयान ने भाजपा नेतृत्व को गहरा नाराज करने का काम किया था जिससे घबरा मायावती ने आकाश को पार्टी के कार्यों से मुक्त कर दिया था। अब लेकिन सत्ता गलियारों में चर्चा है कि मायावती भाजपा से दूरी बनाने और बसपा में पुनः जान फूंकने का मन बना चुकी हैं। यदि ऐसा होता है तो 2027 के विधानसभा चुनाव की रंगत बदलना तय है।