- राम पुनियानी
लेखक राष्ट्रीय एकता मंच के संयोजक हैं।
मणिपुर, नूंह और ट्रेन में कत्ल
हमारे समाज में नफरत का बोलबाला है। गोदी मीडिया इसे और बढ़ावा दे रहा है। मीडिया के दूसरे हिस्से इस नफरत को कम करने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। इसका नतीजा सबके सामने है। आरपीएफ कॉन्स्टेबल चेतन सिंह हमें शंभूदयाल रेगर नाम के दुकानदार की याद दिलाता है जिसने सोशल मीडिया पर लव-जिहाद के दुष्प्रचार से प्रभावित होकर एक बंगाली मुस्लिम श्रमिक अफ्राजुल की हत्या कर दी थी। इन दोनों घटनाओं से साफ है कि समाज में साम्प्रदायिक ताकतों द्वारा टीवी चैनलों के जरिए फैलाई जा रही नफरत हमें कहां ले आई है। चेतन सिंह द्वारा ट्रेन में तीन मुस्लिम यात्रियों और अपने वरिष्ठ अधिकारी की गोली मारकर हत्या करने की घटना डरावनी है। उसके अधिकारी ने छुट्टी देने से मना कर दिया था और उसके मन में मुसलमानों के प्रति नफरत भरी थी। चेतन ने ट्रेन में घूम-घूमकर मुस्लिम यात्रियों की पहचान की और उन्हें गोली मारी
देश के अलग-अलग हिस्सों में भयावह हिंसा हो रही है। मणिपुर में पिछले तीन महीने से हिंसा जारी है। इसमें करीब 150 व्यक्ति अपनी जान गंवा चुके हैं और लगभग एक लाख बेघर हो गए हैं। मरने वालों में कुकी लोगों की संख्या ज्यादा है और विस्थापितों में कुकी, नागा और जो लोगों की। ये तीनों आदिवासी समुदाय हैं जिनकी बहुसंख्यक आबादी ईसाई है। इसके अलावा, मणिपुर में तीन महिलाओं के साथ जो व्यवहार हुआ उसने पूरे देश को शर्मसार किया है। मणिपुर की हिंसा का नस्लीय -धार्मिक चरित्र सबके सामने है। सरकार या तो हिंसा रोकने में असमर्थ है या जान-बूझकर हिंसा होने दे रही है। प्रधानमंत्री ने मणिपुर के हालात पर 37 सेकंड का बयान दिया है। वे इस बीच सात देशों में घूम आएं हैं, वहां से तरह-तरह के पुरस्कार ले आए हैं और देश भर में चुनावी रैलियां संबोधित कर चुके हैं। परंतु वे पीड़ितों से मिलने मणिपुर नहीं गए। यह शायद उतना ही शर्मनाक है जितनी कि हिंसा है।
हिंसा के पहले कुकी आदिवासियों के खिलाफ नफरत फैलाई गई। उन्हें म्यांमार से आए घुसपैठिया बताया गया। उन पर यह आरोप भी लगाया गया कि वे अफीम उगाते हैं और खेती की जमीन पर कब्जा कर रहे हैं। मणिपुर की हिंसा के बारे में दो बातें साफ हैः सरकार या तो अक्षमता या मिलीभगत के चलते हिंसा को नियंत्रित नहीं कर रही है। और दूसरी यह कि हिंसा भड़काने के लिए नफरत का जहर वातावरण में घोला गया। आरपीएफ कॉन्स्टेबल चेतन सिंह द्वारा ट्रेन में तीन मुसलमान यात्रियों और अपने वरिष्ठ अधिकारी की गोली मारकर हत्या करने की घटना डरावनी है। उसके अधिकारी ने उसे छुट्टी देने से मना कर दिया था और उसके मन में मुसलमानों के प्रति नफरत भरी थी। चेतन सिंह ने ट्रेन में घूम-घूम कर मुस्लिम यात्रियों की पहचान की और उन्हें गोली मारी। उसने उनके कपड़ों और दाढ़ी से पहचाना कि वे मुसलमान हैं। मुसलमान यात्रियों को मारते समय चेतन सिंह कह रहा था कि मुसलमान पाकिस्तान के प्रति वफादार हैं और अगर उन्हें भारत में रहना है तो ‘योगी-मोदी’ कहना होगा। ऐसा दावा किया जा रहा है कि वह मानसिक रूप से बीमार था। अगर ऐसा था तो उसे रेल यात्रियों की रक्षा करने के लिए हथियार क्यों दिए गए? या फिर इस घोर साम्प्रदायिक कॉन्स्टेबल को बचाने की चाल है?
हमारे समाज में नफरत का बोलबाला है। गोदी मीडिया इसे और बढ़ावा दे रहा है। मीडिया के दूसरे हिस्से इस नफरत को कम करने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। इसका नतीजा हम सबके सामने है। चेतन सिंह हमें शम्भूदयाल रेगर नाम के दुकानदार की याद दिलाता है जिसने सोशल मीडिया पर लव-जिहाद के दुष्प्रचार से प्रभावित होकर एक बंगाली मुस्लिम श्रमिक अफ्राजुल की हत्या कर दी थी। इन दोनों घटनाओं से साफ है कि समाज में साम्प्रदायिक ताकतों द्वारा अलग-अलग टीवी चैनलों के जरिए फैलाई जा रही नफरत हमें कहां ले आई है। हरियाणा के नूंह के घटनाक्रम के बारे में दो चीजों पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। ब्रजमंडल जलाभिषेक यात्रा हर साल निकाली जाती है। इसकी मंजिल होती है नल्हर महादेव मंदिर। यह दिलचस्प है कि इस साल यह यात्रा मुस्लिम-बहुल इलाकों से नहीं निकली बल्कि उन रास्तों से निकली जिनके आसपास मुस्लिम बस्तियां थीं। मंदिर में विश्व हिंदू परिषद के नेता सुरेंद्र जैन मौजूद थे। यात्रा शुरू होने से पहले से ही वे मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने में जुटे हुए थे। उनके भाषणों के वीडियो उपलब्ध हैं। इसके अलावा मोनू मानेसर, जो नासिर और जुनैद की हत्या और एक चार पहिया वाहन में उन्हें जलाए जाने की घटना में आरोपी है, ने भी एक वीडियो जारी कर कहा था कि वह यात्रा में शामिल होगा और लोगों से अपील की थी कि वे उसका स्वागत करने के लिए मौजूद रहें। मोनू बजरंग दल के गौरक्षा सेल का प्रमुख है और नासिर और जुनैद की हत्या में शामिल होने के कारण नूंह के लोग उससे नफरत करते हैं। मोनू का वीडियो भड़काऊ था। इसी तरह का वीडियो बिट्टू बजरंगी नाम के एक अन्य कथित गौरक्षक ने भी जारी किया। ऐसा लगता है कि ‘विहिप’ ने इन दोनों को यात्रा में शामिल न होने की सलाह दी।
ऐसा दावा किया जा रहा है कि मुस्लिम अल्पसंख्यकों ने जुलूस पर हमला किया और मंदिर पर भी। घटना के वीडियो से पता चलता है कि मंदिर के अंदर से पुलिस की मौजूदगी में धर्मरक्षकों ने गोलीबारी की। जुलूस में शामिल लोग हथियार लिए हुए थे और वे जानते-बूझते मुस्लिम-बहुल इलाकों से भड़काऊ नारे लगाते हुए निकले। जुलूस पर हमला करने वाले भी हथियारबंद थे। वीडियो से साफ है कि इस पूरे घटनाक्रम के दौरान पुलिस या तो मूकदर्शक बनी रही या उसने अपना मुंह दूसरी तरफ घुमा लिया। जुलूस में शामिल लोगों ने एक मस्जिद पर भी हमला किया और उसके नायब इमाम को मार दिया। करीब 200 हिंदुत्ववादियों की भीड़ ने गुरुग्राम के सेक्टर 57 में इस मस्जिद पर हमला किया। उन्होंने वहां सो रहे तीन लोगों की पिटाई की, नायब इमाम शाद को कई बार चाकू से गोदा और मस्जिद में आग लगा दी। नायब इमाम की मौत हो गई। उसका एक वीडियो सोशल मीडिया पर उपलब्ध है जिसमें वह प्रार्थना कर रहा है, ‘हिंदू-मुस्लिम बैठकर खाएं थाली में ऐसा हिंदुस्तान बना दे या अल्लाह’।
नूंह से हिंसा दिल्ली-एनसीआर के अन्य इलाकों में फैल गई है। सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस ने पुलिस महानिदेशक और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से कहा है कि हिंसा को फैलने से रोका जाना चाहिए। जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सतपाल मलिक ने नूंह के घटनाक्रम पर बहुत सटीक टिप्पणी की है। दिल्ली के कॉन्सटीट्यूशन क्लब में बोलते हुए उन्होंने कहा, ‘जाट समुदाय संस्कृति और परंपरा से आर्यसमाजी जीवन पद्धति में आस्था रखता आया है और आम तौर पर जाट बहुत धार्मिक नहीं होते। उस इलाके के मुसलमान भी पुरातनपंथी सोच वाले नहीं हैं। यही कारण है कि स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक वहां दोनों समुदायों के बीच टकराव के बारे में इसके पहले शायद ही हमने कभी सुना हो। परंतु जैसा कि मणिपुर से जाहिर है, 2024 के चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जाएंगे, इस तरह की घटनाएं और होंगी।’
विश्व हिंदू परिषद् का इस इलाके में कई जुलूस निकालने का इरादा है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वह यह सुनिश्चित करे कि इन जुलूसों के दौरान न तो हिंसा हो और न ही नफरत फैलाने वाले भाषण दिए जाएं। हमें नफरत से मुकाबला करना ही होगा। हमें नफरत के खिलाफ आंदोलन चलाना होगा। हमें ऐसे प्रशासनिक तंत्र और पुलिस बल की जरूरत है जो बहुवाद और विविधता के मूल्यों के प्रति संवेदनशील हो। हमें ऐसी सरकार चाहिए जो भारतीय राष्ट्रवाद के प्रति प्रतिबद्ध हो, सांप्रदायिक राष्ट्रवाद के प्रति नहीं।
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)