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इंडिया पर भारी पड़ा एनडीए

 

पिछले हफ्ते घोषित हुए दो राज्यों महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के साथ ही 46 विधानसभा, 2 लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे घोषित हो गए हैं। एक ओर जहां झारखंड में इंडिया गठबंधन ने जीत का परचम लहराया है वहीं दूसरी तरफ महाराष्ट्र चुनाव कांग्रेस और भाजपा के लिए अहम तो था ही शिवसेना-एनसीपी के लिए भी महत्वपूर्ण था। ऐसे में यहां एनडीए की जीत से लगभग तय हो गया कि अब असली शिवसेना और एनसीपी कौन होगी। लोकसभा की दोनों ही सीटें कांग्रेस बचाने में कामयाब हुई लेकिन जिन 46 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए उनमें से बीजेपी और उसके सहयोगियों ने 26 पर जीत दर्ज की और पहले की स्थिति के मुकाबले उसे नौ सीट का फायदा हुआ। कुल मिलाकर इन चुनावों में इंडिया गठबंधन पर एनडीए बीस साबित हुआ

विधानसभा चुनाव के परिणाम आ चुके हैं। झारखंड में इंडिया गठबंधन की जीत हुई तो महाराष्ट्र में एनडीए अलायंस की जीत राज्य और देश की राजनीति के लिए कई संदेश देने वाली है। इस चुनाव ने खासकर बीजेपी के वर्चस्व को साबित कर दिया है। यह चुनाव दो-तीन प्रमुख दलों का चुनाव नहीं था, बल्कि पार्टियों के दो गठबंधनों के बीच मुकाबला था। चुनाव नतीजों बाद कई नेताओं के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे हैं। एक तरफ महायुति गठबंधन के नेता एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार हैं तो दूसरी तरफ महाविकास अघाड़ी के शरद पवार, उद्धव ठाकरे और नाना पटोले हैं। इसके अलावा यह सवाल भी उठ रहे हैं कि राज्य में लंबे समय तक खासा प्रभाव रखने वाली पार्टी कांग्रेस हाशिए पर कैसे चली गई और भाजपा इतनी मजबूत कैसे हो गई? लोकसभा के
मुकाबले विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र की हवा ने बीजेपी की तरफ रुख कैसे किया? क्या इस चुनाव ने असली शिवसेना और एनसीपी का भी फैसला कर दिया है? देश की राजनीति में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? बीते पांच महीनों में ऐसा क्या हुआ जो बीजेपी ने अपने प्रदर्शन को एकदम पलटकर रख दिया ये सवाल सबके जेहन में कौंध रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव कांग्रेस और भाजपा के लिए तो अहम था ही शिवसेना और एनसीपी के लिए भी महत्वपूर्ण था। शिवसेना और एनसीपी दोनों विभाजित हो चुकी हैं। ऐसे में इस जीत से लगभग यह भी तय हो गया कि असली शिवसेना और एनसीपी कौन है। क्योंकि दोनों गुट इसको लेकर अपनी दावेदारी मजबूत करेंगे। महायुति की इस जीत से एक बात यह भी साफ हो गई है कि उद्धव ठाकरे और शरद पवार की चुनौतियां बढ़ेंगी। क्योंकि उन्हें खुद को जनता के सामने बनाए रखने के लिए मंथन करना होगा।

भाजपा की इस बड़ी जीत से हिंदुत्व की राजनीति पर बाला साहेब ठाकरे के परिवार की दावेदारी कमजोर होगी और राज्य में हिंदुत्व की राजनीति पर शिवसेना से वैसी प्रतिद्वंद्विता नहीं मिलेगी वहीं देश की आर्थिक राजधानी में महायुति की सरकार बनने से बीजेपी को काफी फायदा होगा तो कांग्रेस के लिए यह हार किसी बड़े झटके से कम नहीं है, क्योंकि अभी हाल ही में उसे हरियाणा विधानसभा चुनाव में शिकस्त का सामना करना पड़ा था। देश की राजनीतिक तौर पर देखें तो लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को बहुमत नहीं मिलने को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कम होती लोकप्रियता से जोड़ा गया था। इन परिणामों को भाजपा और नरेंद्र मोदी के लिए एक झटके की तरह देखा गया था, क्योंकि इससे एनडीए के घटक दलों का महत्व बढ़ गया था। लेकिन हरियाणा में जीत, जम्मू-कश्मीर में अच्छे प्रदर्शन के बाद महाराष्ट्र की जीत ने एक बार फिर से पीएम मोदी की लोकप्रियता पर लग रहे प्रश्नचिन्ह् को खत्म कर दिया है। ऐसे में कहा कि जा सकता है कि प्रधानमंत्री की लोकप्रियता वैसी ही बनी है। जिसका जीता जागता उदाहरण हरियाणा के बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव है।

भाजपा की इस जीत से एनडीए के भीतर दबदबा और मजबूत होगा और सहयोगी पार्टियांे का दखल अब कमजोर होता दिखाई देगा। क्योंकि अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव है और भाजपा यहां भी नीतीश कुमार के साथ सीटों की साझेदारी में मन मुताबिक डील कर सकती है। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के भरोसे भले केंद्र में मोदी सरकार चल रही है, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा को मिल रही लगातार जीत से समीकरण बदलेगा। ऐसे में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू मोदी सरकार से अब बहुत तोलमोल नहीं कर पाएंगे।

कैसा चला हिंदुत्व का कार्ड?

लोकसभा चुनाव के परिणामों को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा था कि विधानसभा चुनावों में बीजेपी और उसके नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा। लेकिन हुआ इसका बिल्कुल उलटा और बीजेपी राज्य में सबसे बड़ा दल बनकर उभरी है। चुनाव के दौरान ही ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा खूब चर्चा में रहा। यूपी के सीएम योगी ने इस नारे को महाराष्ट्र विधानसभा में चुनाव प्रचार के दौरान खूब इस्तेमाल किया। ऐसा माना गया कि यह नारा हिंदू समुदाय की अलग-अलग जातियों को एक करने के लिए था। इस नारे को लेकर जब विवाद पैदा हुआ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान ही ‘एक हैं तो सेफ हैं’ नारा लेकर आए। इस नारे को भी हिंदू समुदाय को एकजुट करने के लिहाज से देखा गया। भाजपा ने महाराष्ट्र चुनाव के दौरान पूरी कोशिश की कि ये चुनाव जाति के आधार पर न बंटे। जहां तक सवाल है बीते पांच महीनों में ऐसा क्या हुआ जो बीजेपी ने अपने प्रदर्शन को एकदम पलटकर रख दिया तो इसकी वजह महायुति सरकार की रणनीति। खासकर लाडली बहिन योजना, हिंदुत्व और जातियों को एकजुट करने की रणनीति ने बीजेपी को ये कामयाबी दिलाई है।

दूसरी तरफ महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का परिणाम कांग्रेस के लिए बहुत निराशाजनक है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में 99 सीटें जीतने के बाद पार्टी को जो नई ऊर्जा मिली थी, वहां ठहराव की स्थिति आएगी। पार्टी को भविष्य की रणनीति पर फिर से विचार करना होगा और लोग राहुल गांधी के नेतृत्व पर भी सवाल उठाए जाएंगे वहीं ये सवाल भी उठने लगे हैं कि अब क्या होगा ठाकरे परिवार का भविष्य? क्या खत्म हो गई शरद की पावर?

विश्लेषक कहते हैं कि इन परिणामों ने असली शिवसेना और एनसीपी का फैसला भी सुना दिया है। अब उद्धव ठाकरे आगे की लड़ाई कैसे लड़ते हैं उनका राजनीति भविष्य उन पर निर्भर करता है। जैसा कि जगनमोहन रेड्डी का क्या भविष्य था?

आंध्र प्रदेश में पैदल यात्रा करके उन्होंने वापसी की और 5 साल राज किया। फिर चंद्रबाबू नायडू ने सब तहस-नहस कर दिया तो भविष्य के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है तो दूसरी तरफ शरद पवार गुट को विधानसभा चुनाव के नतीजे अधिक दुख देने वाले हैं। चुनाव में उनकी पार्टी के 86 उम्मीदवार थे जिनमें से सिर्फ 10 ही जीत सके हैं। शरद पवार को महाराष्ट्र की राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। लेकिन मौजूदा हालात ने उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति के मैदान से धकेल दिया है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या अब शरद की राजनीतिक पावर खत्म हो गई है। बात अगर कांग्रेस की करें तो महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव ने कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका दिया है। राज्य में 101 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस के खाते में सिर्फ 16 सीटें आई हैं। नाना पटोले को लेकर एमवीए में शामिल दल पहले ही असंतुष्ट थे। खास तौर पर सीटों के बंटवारे के दौरान नाना पटोले के खुद जल्द फैसला न लेने और सब कुछ हाईकमान पर छोड़ने से एनसीपी (एसपी) और शिवसेना (यूबीटी) नाराज चलती रही। सीटों के बंटवारे में देर होने से चुनाव के लिए तेजी से रणनीति तैयार करना आसान नहीं था। नाना पटोले के हिस्से में पार्टी की करारी हार आई है जिसका खामियाजा उन्हें भविष्य में भुगतना पड़ सकता है।

झारखंड में इंडिया गठबंधन ने लहराया परचम
झारखंड में भ्रष्टाचार के कथित आरोपों में जेल जा चुके जेएमएम नेता व राज्य के सीएम हेमंत सोरेन ने इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव में जीत का परचम लहरा दिया। जेएमएम, कांग्रेस, आरेजडी व सीपीएमएल जैसे दलों ने इंडिया गठबंधन के बैनर के तले लड़कर जीत को पिछले असेंबली चुनावों से आगे ले गए। इन चुनावों में जहां एक ओर हेमंत का जलवा बरकरार दिखा और जमीन पर आदिवासी अस्मिता, मइया सम्मान व हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन फैक्टर काम करता दिखा, वहीं बीजेपी की तरफ से घुसपैठ, जनसांख्यिकी में बदलाव व हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा काम नहीं करता दिखा। झारखंड में पहली बार कोई सरकार सत्ताविरोधी माहौल के बावजूद प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापसी की है।

झारखंड के चुनाव में सीएम हेमंत सोरेन व उनकी पत्नी कल्पना सोरेन एक बड़े फैक्टर के तौर पर उतरे जहां आदिवासियों में हेमंत सोरेन का जेल जाना मुद्दा बड़ा बनता दिखाई दिया। वहीं बीजेपी ने जोर-शोर में हेमंत सरकार को लेकर भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया, लोगों के बीच यह मुद्दा चर्चा में दिखा भी लेकिन जमीन पर इसे लोगों ने खास महत्व नहीं दिया। इससे उलट जेएमएम, बीजेपी नीत केंद्र सरकार के खिलाफ झारखंड की अनदेखी, उसके हक का पैसा न दिए जाने का मुद्दा उठाती रही। इस चुनाव में कल्पना सोरेन एक बड़ा फैक्टर बन कर सामने आईं जहां उन्होंने पूरे चुनाव में डेढ़ सौ से ज्यादा रैलियां, सभाएं व रोड शो किए। कल्पना के प्रति युवाओं व महिलाओं में जबरदस्त क्रेज दिखा।

बीजेपी ने भले बांग्लादेशी घुसपैठ, आबादी में बदलाव का मुद्दा उठाते हुए उसे आदिवासी अस्मिता से जोड़ने की कोशिश की। बीजेपी ने आदिवासी वोटों को हासिल करने के लिए उनके सामने ‘रोटी, बेटी व माटी’ का नारा दिया। बीजेपी ने संथाल परगना इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठ के जरिए कहा था कि घुसपैठिए उनकी रोटी यानी रोजगार, उनकी बेटियों से शादी कर बेटी और उनकी जमीन यानी माटी छीन रहे हैं, लेकिन आदिवासियों ने उनके इस नैरेटिव को नकार दिया। झारखंड में बीजेपी ने जो भी कोशिश की उसका ज्यादातर वार खाली गया। फिर चाहे चंपई सोरेन व सीता सोरेन जैसे नेताओं को अपने साथ लाना, लोगों ने उन्हें ज्यादा स्वीकार नहीं किया।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि झारखंड में मइयां सम्मान योजना के तहत राज्य सरकार योग्य महिलाओं को हर महीने 1000 रुपए दे रही थी। हेमंत सरकार इस योजना की 4 किश्त महिलाओं के खाते में ट्रांसफर कर भी चुकी है। इसके स्कूल जाने वाली लड़कियों को मुफ्त साइकिल, सिंगल मदर को नगद राशि सहायता, बेरोजगार महिलाओं को नगद सहायता देने की भी योजना शुरू की जिनका फायदा इंडिया गठबंधन को चुनाव में मिला है। कुल मिलाकर महिलाओं को सेंटर में रखकर बनाई गईं इस तरह की कल्याणकारी योजनाएं राजनीतिक दलों के लिए एक
शक्तिशाली टूल के तौर पर उभरी हैं।

‘इंडिया’ नहीं दिखा पाया मैजिक
देश के 13 राज्यों की 46 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में अधिकांश सीट पर सत्तारूढ़ दलों का दबदबा रहा। बीजेपी और उसके सहयोगियों ने उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में दबदबा कायम किया, जबकि तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में भाजपा का सूपड़ा साफ किया। जिन 46 सीट पर उपचुनाव हुए उनमें से बीजेपी और उसके सहयोगियों ने 26 सीट पर जीत दर्ज की और पहले की स्थिति के मुकाबले उसे नौ सीट का फायदा हुआ। कांग्रेस ने सात सीट पर जीत दर्ज की जबकि उसे पहले की स्थिति के मुकाबले छह सीट का नुकसान हुआ।

खासकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा ने प्रदेश में उपचुनाव में बड़ी जीत हासिल की। प्रदेश की 9 सीटों पर हुए उपचुनाव में सात पर एनडीए ने जीत दर्ज की। इसमें से छह पर भारतीय जनता पार्टी और एक सीट पर एनडीए गठबंधन (रालोद) ने जीत हासिल की। वहीं दो सीट पर सपा ने जीत का परचम लहराया है। बीजेपी की इस बड़ी जीत पर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने समाजवादी पार्टी पर हमला बोल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि 2027 में 2017 दोहराएंगे और फिर एक बार 300 पार के लक्ष्य के साथ नई इबारत लिखेंगे।

वहीं बिहार में सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन ने राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले चार सीट के लिए हुए उपचुनावों में जीत हासिल कर प्रदेश की राजनीति पर अपनी पकड़ और मजबूत कर ली है। बिहार की चार विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में जहां एनडीए ने इमामगंज सीट पर कब्जा बरकरार रखा, वहीं विपक्षी ‘महागठबंधन’ से तरारी, रामगढ़ और बेलागंज सीट छीन ली। राष्ट्रीय जनता दल अब विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा खो चुकी है।

दक्षिण की बात करें तो कर्नाटक में कांग्रेस ने उपचुनाव में सभी तीन सीट पर जीत दर्ज की है। उसने इस चुनाव में बीजेपी और उसकी सहयोगी जनता दल (एस) से एक-एक सीट छीनी है। कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डी.के.शिवकुमार ने विधानसभा उपचुनावों में कांग्रेस की सफलता का श्रेय मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के नेतृत्व के साथ-साथ पांच गारंटी को दिया। बंगाल में आरजी कर मेडिकल कॉलेज की घटना को लेकर लंबे समय से जारी विरोध प्रदर्शन के बावजूद पश्चिम बंगाल पर तृणमूल कांग्रेस की मजबूत पकड़ दिखाई दी। पार्टी ने सभी छह सीट पर जीत दर्ज की है जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है मदारीहाट सीट जो उसने बीजेपी से छीन ली।

लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने मारी बाजी
लोकसभा की 2 सीटों पर हुए उपचुनाव में केरल की वायनाड सीट और महाराष्ट्र की नांदेड़ सीट पर वोट डाले गए थे। जहां महाराष्ट्र के नतीजों से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है तो वहीं लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने दोनों सीटों पर जीत हासिल कर ली है। इससे पहले हुए लोकसभा चुनाव में भी यह दोनों ही सीटें कांग्रेस के खाते में आईं थी।

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