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कहीं उल्टा न पड़ जाए नायडू का दांव

नई दिल्ली। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ गठबंधन बनाने के लिए सक्रिय हैं, लेकिन उनकी यह कोशिश सफल होनी आसान नहीं है। तमाम चुनौतियां उनकी राह में खड़ी हैं। उनके सामने पहला सवाल यह है कि आखिर जिस गठबंधन की कवायद में वे जुटे हुए हैं उसका चेहरा कौन होगा। कहीं ऐसा न हो कि उनका यह दांव कांग्रेस के लिए तो फायदेमंद रहे और टीडीपी के लिए उल्टा पड़ जाए।
दरअसल, नायडू पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के समय से एनडीए के साथ थे, लेकिन बाद में वह अलग हो गए। प्रधानमंत्री मोदी के साथ भी उन्होंने चुनाव लड़ा, लेकिन फिर अलग हो गए। ऐसा लगता है कि अब वे अपने राज्य में टीडीपी को मजबूत करने के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व करने का सपना  देख रहे हैं। शायद उन्हें लगता है कि यदि वे यह संदेश देने में कामयाब रहे कि अब एनडीए या भाजपा से उनका मोहभंग हो गया है तो राज्य का मुस्लिम मतदाता टीडीपी के पक्ष में आ सकता है। मुस्लिम समाज के 9 प्रतिशत वोट राज्य में टीडीपी को मजबूती दे सकते हैं।
 एनडीए विरोधी गठबंधन की कवायद में नायडू कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, रांकपा के शरद पवार, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूख अब्दुल्ला, सीपीआई (एम) के सीताराम येचुरी, सपा के मुलायम सिंह यादव से मिल चुके हैं। इससे पहले वह बसपा सुप्रीमो मायावती से भी मिल चुके हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी उनकी इस मुद्दे पर बात हो चुकी है।
राजनीतिक पंडितों के मुताबिक विपक्षी नेताओं से नायडू की इन मुलाकातों के चलते आंध्र का मुस्लिम मतदाता उन पर भरोसा जता सकता है, लेकिन कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ना नायडू के लिए भविष्य में घाटे का सौदा भी हो सकता है। प्रदेश की लोकसभा और विधानसभा सीटों में से फ़िलहाल कांग्रेस के पास एक भी सीट नहीं है। उसके पास राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव या 2019 के आम चुनाव में यहां खोने के लिए कुछ नहीं है, बल्कि टीडीपी के साथ रहने पर फायदा होने की संभावनाएं ही रहेंगी। यदि उसे टीटीपी के सहारे जरा भी आक्सीजन मिल जाए तो भविष्य में वह राज्य में अपने पैरों पर खड़ी भी हो सकती है। ऐसे में कहीं ऐसा न हो कि नायडू का दांव कांग्रेस के लिए संजीवनी और टीडीपी के लिए घातक हो जाए।
 जहां तक नायडू की राष्ट्रीय नेतृत्व करने की महत्वाकांक्षा का सवाल है तो यह भी आसान नहीं। जिस गठबंधन को बनाने की कोशिश में वे जुटे हैं उसमें सभी पार्टियों के नेताओं की महत्वाकांक्षाएं उनसे भी ज्यादा बड़ी हैं। कांग्रेस हर हाल में चाहती है कि गठबंधन का नेतृत्व वही करे और राहुल प्रधानमंत्री बनें।
 उत्तर प्रदेश जहां लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटें हैं, वहां सपा-बसपा और कांग्रेस के बीच बात फाइनल नहीं हो पाई है। यूपी में मायावती सबसे ज्यादा सीटों पर दावा जताती रही हैं और प्रधानमंत्री बनने की उनकी महत्वाकांक्षा स्पष्ट झलकती रही है।   ममता बनर्जी के बारे में भी यह नहीं कहा जा सकता कि वह कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने को तैयार होंगी या नहीं। सीपीआई (एम) के सीताराम येचुरी से नायडू की मुलाकात क्या ममता को अच्छी लगी होगी। ममता भी तो कम महत्वाकांक्षी नहीं हैं। फिर उनकी छवि भी साफ-सुथरी है।

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