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नागालैंड की फांगनोन ने रचा इतिहास

  •    वृन्दा यादव, प्रशिक्षु

देश के पूर्वोत्तर राज्यों में से एक राज्य नागालैंड की राजनीति में महिलाओं की भूमिका या उनकी अनुपस्थिति के बारे में जब भी चर्चा होती है तो ‘मानसिकता’, ‘बदलाव’, ‘समाज’ और ‘उम्मीद’ आदि जैसे या इनसे मिलते- जुलते शब्द दोहरा दिए जाते हैं। लेकिन अब यहां भी बदलाव की ब्यार बहने लगी है। राज्य बनने के लगभग छह दशकों बाद एकमात्र राज्यसभा सीट के लिए मैदान में उतरीं बतौर भाजपा उम्मीदवार फांगनोन कोन्याक निर्विरोध चुनाव जीत गई हैं। ऐसा करके उन्होंने इतिहास भी रचा है। वह बीजेपी और राज्य की पहली महिला राज्यसभा सांसद हैं।
दरअसल मार्च के अंत में 13 सीटों पर होने जा रहे राज्यसभा चुनाव के लिए सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। पूर्वोत्तर के राज्य नागालैंड की एक सीट पर राज्यसभा का चुनाव 31 मार्च को होना था। नागालैंड भाजपा महिला ईकाई की अध्यक्ष फांगनोन कोन्याक ने 21 मार्च को मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष तेमजेन इल्मा अलोंग की उपस्थिति में अपना नामांकन दाखिल किया। 21 मार्च नामांकन दाखिल करने का आखिरी दिन था और तय समय तक अन्य किसी उम्मीदवार ने अपना नामांकन नहीं किया था। जिसके चलते बीजेपी प्रत्याशी कोन्याक बगैर लड़े ही निर्विरोध चुनाव जीत गईं। विपक्ष एकराय नहीं बना सका।

नागालैंड में सत्ताधारी नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव जिसे एनडीए का पूर्वोत्तर संस्करण कहा जाता है, के पास 60 सदस्यीय विधानसभा में 35 विधायक हैं। बीजेपी यहां नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के नेता और मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो की अगुवाई वाली सरकार में सहयोगी है। वहीं विधानसभा में विपक्षी दल नगा पीपुल्स फ्रंट के पास 25 विधायक हैं। 19 मार्च को एनपीएफ द्वारा बैठक की गई थी, जिसमें बीजेपी के खिलाफ प्रत्याशी उतारने पर फैसला लेना था, लेकिन बैठक बेनतीजा रही। ऐसे में फांगनोन कोन्याक को निर्विरोध विजेता घोषित कर दिया गया। इस चलते नागालैंड में अब चुनाव नहीं होगा। नागालैंड की राजनीति की बात करें तो वर्ष 1963 में नागालैंड अस्तित्व में आया था। उसके बाद से आज तक कोई महिला राज्यसभा सांसद यहां से नहीं बनी थी। हालांकि इससे पहले 1963 में अलग राज्य बनने के बाद 1977 में पहली बार रानो एम शाइजा लोकसभा के लिए निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनी गई थी।

नागालैंड में महिलाओं के राजनीति में न आने के कारण
नागालैंड में पितृसत्तात्मक समाज है जो महिलाओं को रसोई तक ही सीमित रखना चाहता है, उन्हें राजनीति में आने का मौका तो दूर की बात है। किसलय भट्टाचार्य जो कि एक पत्रकार हैं, का कहना है कि ‘नागालैंड की राजनीति या समाज में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कभी नहीं रहा है, महिलाएं समय-समय पर अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाती रहती हैं।’ सरकारी स्कूल की एक अध्यापिका का कहना है कि ‘महिलाओं को राजनीति में कभी कोई स्थान इसलिए भी नहीं मिल पाया है क्योंकि महिलाओं के संगठन कभी इसको लेकर संजीदा नहीं रहे हैं। महिलाओं के प्रति समाज का रवैया कुछ ऐसा है कि अगर चुनाव में कोई महिला उतरती है तो उसे पुरुष वोट ही नहीं देना चाहते। हमारे समाज में एक चीज अच्छी है। यहां भ्रूण हत्या और दहेज प्रथा नहीं है, लेकिन महिलाओं के खिलाफ हिंसा वैसी ही है जैसी देश के दूसरे प्रांतों में है। यहां बलात्कार, प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के मामले आम हैं। उसी तरह महिलाओं को राजनीति में भाग लेने की मनाही भी है। उन्हें संपत्ति का अधिकार भी नहीं दिया गया है।

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