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मणिपुर में आए म्यांमार शरणार्थियों को भेजा जाएगा वापस

पिछले कुछ सालों से भारत के पडोसी देश म्यांमार की स्थिति काफी ख़राब बानी हुई है। जिसके चलते म्यांमार के हजारों लोगों ने भारत के मिज़ोरम और असम जैसे पूर्वोत्तर भारत में शरण ली है। इसी बीच इस बात की जानकारी भी मिली है कि म्यांमार के हालात इतने ख़राब हो चुके हैं कि  म्यांमार के 700 से ज्यादा नागरिक मणिपुर में प्रवेश कर चुके हैं।

दि प्रिंट के मुताबिक म्यांमार में सेना और नागरिक बलों के बीच चल रही झड़पों के कारण 301 बच्चों और 208 महिलाओं सहित म्यांमार के 718 नागरिक मणिपुर के चंदेल जिले में घुस आए हैं।हालांकि इस समय मणिपुर की स्थिति भी बहुत ख़राब है। जिसे देखते हुए मणिपुर के मुख्य सचिव विनीत जोशी ने कहा है कि राज्य सरकार ने असम राइफल्स से म्यांमार के नागरिकों को वापस भेजने के लिए कहा है।

वापस भेजने का आदेश

 

विनीत जोशी ने असम राइफल्स से इन शरणार्थियों से सम्बंधित एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है कि म्यांमार से इतनी बड़ी मात्रा में लोगों का मणिपुर में आने का क्या कारण है। जोशी का कहना है कि 700 से अधिक म्यंमार के नागिकों को उचित यात्रा दस्तावेजों के बिना भारत के चंदेल जिले में आने की अनुमति कैसे दी गई और वे किस प्रकार भारत आये। साथ ही राज्य सरकार ने असम राइफल्स से मणिपुर में आये म्यांमार के नागरिकों को तुरंत वापस भेजने का आदेश दिया है। उन्होंने इस बात की जानकारी भी दी है कि म्यांमार के नागरिकों ने मणिपुर में प्रवेश किया और अब जिले के कई स्थानों पर रहने लगे हैं जिसमें लाजांग, बोन्से, न्यू समताल, न्यू लाजंग, यांग्नोम्फाई, यांग्नोम्फाई सॉ मिल और ऐवोमजंग शामिल हैं।

 

क्या है म्यांमार की  राजनीतिक स्थिति  

 

म्यांमार को पहले बर्मा नाम से जाना जाता था। जिस पर ब्रिटेन का शासन था वर्ष 1948 ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की। जिसके बाद वर्ष 1962 तक वहां लोकतंत्र बरकरार रहा लेकिन 1962 में 1962 में तख्तापलट के बाद देश में लोकतंत्र निलंबित कर दिया गया था। जिसके बाद वहां सैन्य शासन लागू हो गया था। इसके बाद 1962 से 1988 तक, देश पर बर्मा सोशलिस्ट प्रोग्राम पार्टी द्वारा बर्मीज़ वे टू सोशलिज्म ने निर्देशित एक-दलीय राज्य के रूप में शासन किया। तब नए बर्मी नेताओं ने बर्मा को अलगाववाद और बर्मी श्रेष्ठता वाले एक समाजवादी गणराज्य में बदल दिया। वर्ष 1988 में इसके खिलाफ क्रांति ने जन्म लिया। जो साल 2011 तक जारी रही और इसका परिणाम यह हुआ कि सेना ने अपनी कुछ शक्तियाँ छोड़ दीं, जिससे अर्ध-लोकतांत्रिक व्यवस्था का निर्माण हुआ, हालांकि समस्याएं फिर भी ज्यों की त्यों बनी रहीं।

31 जनवरी 2021 को, कई मीडिया और समाचार आउटलेट्स द्वारा यह बताया गया कि सेना ने तख्तापलट कर दिया है और सत्ताधारी पार्टी, नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया है। दरअसल नवंबर 2020 में एक सफल चुनाव के बाद एनएलडी द्वारा जीत का दावा करने केसेना का गुस्सा भड़क उठा। जिसके कारण सेना ने बिना किसी सबूत या जांच के धोखाधड़ी का दावा करते हुए चुनाव के परिणामों पर आपत्ति जताई और चुनाव के परिणामों को गलत बताते हुए 1 फरवरी 2021 को सेना ने तख्तापलट कर दिया, और बलपूर्वक एनएलडी सरकार से राष्ट्रपति की शक्तियां छीन लीं। म्यांमार में अब तक स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है और सेना के क्रूर शासन ने लोगों की ज़िंदगी स्थिति बदतर बना रखी है जिसके कारण लोग लगतार अपने पडोसी देशों की और पलायन कर रहे हैं।

 

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