देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा पर कई दशकों पहले ही रोक लगाई जा चुकी है और क़ानूनी रूप से इसे अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
लेकिन मुस्लिम समुदाय के पर्स्नल लॉ के अनुसार इसे अपराध नहीं माना जाता जिसके कारण यह समय- समय पर विवाद होता आया है। पिछले दिनों ऐसा ही एक मामला केरल हाई कोर्ट के सामने आया जिसपर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर दो पक्षों के अंतर्गत शादी होती है और उनमें से एक नाबालिग है तो अपराध होने की स्थिति में उससे जुड़ा मामला पॉक्सो एक्ट के तहत ही चलाया जायेगा। फिर चाहे वह शादी धार्मिक कानूनी प्रावधानों के आधार पर अमान्य ही क्यों न हो।
क्या है मामला
यह फैसला जस्टिस बच्चू कुरियन थॉमस ने उस शख्स की जमानत याचिका को खारिज करते हुए सुनाया जिसे 16 साल की नाबालिग लड़की का रेप करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। यह मामला पश्चिम बंगाल का है। आरोपी ने पहले 16 वर्षीय लड़की का अपहरण कर उसके साथ बलात्कार किया और उसके बाद उसी लड़की से जबरजस्ती शादी कर ली। जब आरोपी ने लड़की अपहरण किया था तब उसकी उम्र केवल 14 साल थी। पुलिस को इस बात की जानकारी तब मिली जब एक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर ने आधार कार्ड के आधार पर पुलिस को इस बात की जानकारी दी कि 15 साल 8 महीने की एक गर्भवती लड़की इंजेक्शन के लिए उनके जांच केंद्र में पहुंची है। लेकिन आरोपी का कहना है कि उसने लड़की से कानूनी रूप से शादी की थी और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड युवावस्था प्राप्त करने के बाद समुदाय की लड़कियों की शादी की अनुमति देता है। इसलिए उस पर पॉक्सो के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। अपने दावों का समर्थन करते हुए आरोपी ने हरियाणा, दिल्ली और कर्नाटक के उच्च न्यायालयों में सुनाये गए फैसलों का भी हवाला दिया। जिसमें कहा गया था कि ‘कानून के मुताबिक मुस्लिम लड़कियों की शादी ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के तहत होती है। ऐसे में 15 साल की उम्र में मुस्लिम लड़की निकाह के योग्य हो जाती है।’ लेकिन कोर्ट ने इन दावों से सहमत होने से इनकार कर दिया।