महाराष्ट्र को अंधविश्वास के अंधकार से निकालने वाले नरेंद्र दाभोलकर की हत्या साल 2013 में हो गई थी। जिसका फैसला करीब 11 साल बाद पुणे की एक विशेष अदालत ने हाल ही में सुनाया है। अदालत ने दाभोलकर हत्या के मास्टरमाइंड माने जाने वाले डॉ वीरेंद्र तावड़े सहित दो अन्य आरोपी वकील संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को कोर्ट ने सबूतों के अभाव में 10 मई को बरी कर दिया है। वहीं दो अन्य आरोपियों शरद कालस्करऔर सचिन एंडुरे को अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इन आरोपियों पर पांच लाख का जुर्माना भी लगाया गया है। दाभोलकर हत्या मामले में यह फैसला गैरकानूनी गतिविधियां अधिनियम से जुड़े मामलों की विशेष अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ए.ए. जाधव ने सुनाया है। आरोपियों पर हत्या और आपराधिक साजिश के लिए धारा 302 ,धारा 120 बी या 34 और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम की धारा 16 (आतंकवादी अधिनियम) और शस्त्र अधिनियम के प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए थे। इसके अलावा उन पर सबूतों के साथ छेड़छाड़ के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 201 के तहत भी आरोप लगाए गए थे।
मनुष्य को आंतरिक स्तर पर कमज़ोर बनाने वाले अंधविश्वास ने न जाने कितने लोगों की जिंदगियों को मुश्किल में डाल देता है। अंधविश्वास में पडकर लोग अपना सब कुछ गवां देता है। नर बलि के चलते न जाने कितने ही लोगों ने अपने परिवार के सदस्यों को खोया है। इस अंधविश्वास ने कई लोगों की जान ली है।
एनसीआरबी भी दावा करता रहा है कि भारत में अंधविश्वास की जड़ें गहराई से जुडी हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आकड़े बतात्ते हैं कि जादू-टोने ने 10 साल में एक हजार से ज्यादा लोगों की जान ली है। 2012 से 2021 के बीच देशभर में 1,098 लोगों की मौत का कारण जादू-टोना जैसा अंधविश्वास ही था। देश भर में कई राज्य ऐसे हैं जो अंधविश्वास की जकड़ में हैं। ऐसा ही एक राज्य महराष्ट्र रहा है। जहां बढ़ते अंधविश्वास को देखते हुए उसके खिलाफ आवाज उठाई गई। इसी के परिणाम स्वरूप महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति “एमएएनएस” या अंधविश्वास उन्मूलन समिति “सीईबीएफ” भारत में विशेषकर महाराष्ट्र राज्य में अंधविश्वास से लड़ने के लिए समर्पित एक संगठन बना । जिसकी स्थापना 1989 में नरेंद्र दाभोलकर ने की थी।
महाराष्ट्र को अंधविश्वास के अंधकार से निकालने वाले नरेंद्र दाभोलकर की हत्या साल 2013 में हो गई थी। जिसका फैसला करीब 11 साल बाद पुणे की एक विशेष अदालत ने हाल ही में सुनाया है। अदालत ने दाभोलकर हत्या के मास्टरमाइंड माने जाने वाले डॉ वीरेंद्र तावड़े सहित दो अन्य आरोपी वकील संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को कोर्ट ने सबूतों के अभाव में 10 मई को बरी कर दिया है। वहीं दो अन्य आरोपियों शरद कालस्करऔर सचिन एंडुरे को अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इन आरोपियों पर पांच लाख का जुर्माना भी लगाया गया है। दाभोलकर हत्या मामले में यह फैसला गैरकानूनी गतिविधियां अधिनियम से जुड़े मामलों की विशेष अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ए.ए. जाधव ने सुनाया है। आरोपियों पर हत्या और आपराधिक साजिश के लिए धारा 302 ,धारा 120 बी या 34 और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम की धारा 16 (आतंकवादी अधिनियम) और शस्त्र अधिनियम के प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए थे। इसके अलावा उन पर सबूतों के साथ छेड़छाड़ के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 201 के तहत भी आरोप लगाए गए थे।
नरेंद्र दाभोलकर हत्या के मामले में पुणे सत्र अदालत ने यह आरोप 15 सितंबर साल 2021 को आरोपियों के खिलाफ तय किए थे। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि दाभोलकर की हत्या के लिए साजिश रची गई थी, जिससे बड़े पैमाने पर लोगों के अंदर डर पैदा किया जा सके और कोई भी अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति’ का काम न कर सके। मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने अपनी अंतिम दलीलों में कहा था कि आरोपी अंधविश्वास के खिलाफ दाभोलकर के अभियान के विरोधी थे।
एमएएनएस द्वारा किए गए कार्य
गौरतलब है कि महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति द्वारा अन्धविश्वास के खिलाफ कई कार्य किए गए है। साल 1999 में इस समिति ने कथित चमत्कारों के आधार पर मदर टेरेसा को संत घोषित करने का विरोध किया था, लेकिन उन्होंने बीमारों और रोगियों के प्रति उनकी सेवा की प्रशंसा की थी। इसके अलावा इसने जल निकायों में गणेश मूर्तियों के विसर्जन के खिलाफ अभियान चलाया और लोगों से नदियों और झीलों को प्रदूषित करने से बचने के लिए छोटी मूर्तियों और वनस्पति रंगों का उपयोग करने का आग्रह किया।
साल 2011 में इस समिति ने अंधविश्वास के तहत मानसिक रूप से बीमार लोगों को प्रताड़ित करने का विरोध किया कि इससे वे ठीक हो जाएंगे। एमएएनएस ने चमत्कार दिखाने का दावा करने वाले बाबाओं को भी चुनौती दी है । दिसंबर 2002 में, सूचीबद्ध 12 चमत्कारों में से एक दिखाने वाले को 11 लाख रुपये का पुरस्कार देने की घोषणा की गई थी। इस सूची में पानी पर चलना, हवा में तैरना, गर्म अंगारों पर पांच मिनट तक खड़ा रहना, एक साथ दो स्थानों पर मौजूद रहना और पतली हवा से हार बनाना आदि शामिल हैं। एमएएनएस के सदस्यों ने इन बाबाओं का पर्दाफाश करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा किया था। इसके अलावा उन्होंने ज्योतिष शास्त्र के खिलाफ अभियान चलाया। अक्टूबर 2009 में, एमएएनएस ने 21 लाख की पुरस्कार राशि वाली एक प्रतियोगिता आयोजित की जिसमें ज्योतिषियों को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणामों की कम से कम 80% सटीकता के साथ भविष्यवाणी करने की चुनौती दी गई।
सीबीआई ने मामला लिया हाथ में
महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक दाभोलकर कई वर्षों से समिति चला रहे थे, उन्होंने अंधविश्वास उन्मूलन से संबंधित कई पुस्तकें प्रकाशित की थी। इसके अलावा कई कार्यशालाओं का आयोजन भी किया था। साल 2013 में पुणे के ओंकारेश्वर ब्रिज पर सुबह की सैर पर निकले दाभोलकर की 20 अगस्त को गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। इस हत्या के बाद काफी बवाल मचा था। बाद में दाभोलकर की बेटी और बेटे द्वारा दायर याचिकाओं पर महाराष्ट्र हाईकोर्ट ने मामले को पुणे पुलिस से केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित कर दिया था। दाभोलकर हत्या मामले में सीबीआई द्वारा मुख्य साजिशकर्ता का आरोप तावड़े पर लगाया गया था। शुरुआत में इस मामले की जांच पुणे पुलिस कर रही थी, लेकिन न्यायालय के आदेश के बाद हत्या का मामला पुणे पुलिस से 2014 में सीबीआई ने अपने हाथ में ले लिया। उसके बाद जून 2016 में हिंदू दक्षिणपंथी संगठन सनातन संस्था से जुड़े डॉ. वीरेंद्र सिंह तावड़े को गिरफ्तार कर लिया गया । इसके अलावा सीबीआई ने सचिन आंदुरे और शरद कालस्कर को गिरफ्तार किया था। सीबीआई ने आरोपियों के खिलाफ 2016 में आरोप पत्र दायर किया । इन तीनों के अलावा वकील संजीव पुनालेकर और उनके सहायक विक्रम भावे के खिलाफ 2019 में आरोप पत्र दायर किया गया था। उस दौरान सीबीआई ने आरोपियों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत भी आरोप लगाए।
सीबीआई के अनुसार दाभोलकर कि हत्या के पीछे की मुख्य वजह महाराष्ट्र अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति और सनातन संस्था के बीच का टकराव रही। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आरोपी डॉ तावड़े 22 जनवरी 2013 को अपनी बाइक से पूणे गया था। इस बाइक का इस्तेमाल वह 2012 से ही कर रहा था। उसी पर बैठकर हत्यारों ने 20 अगस्त 2013 को डॉ नरेंद्र दाभोलकर पर गोलियां दागी थीं। घटना के बाद भी तावड़े बाइक का इस्तेमाल करता रहा। उसे पुणे के एक गैराज में ठीक भी करवाया गया था। बाद में इसी बाइक को लेकर वो कोल्हापुर भी गया, जहां 16 फरवरी 2015 में कॉमरेड पंसारे का मर्डर हुआ था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, तावड़े हत्या के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक था। उसने दावा किया कि सनातन संस्था दाभोलकर की संस्था महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति द्वारा किए गए कार्यों का विरोध करती थी। इसी संस्थान से तावड़े और कुछ अन्य आरोपी जुड़े हुए थे। सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में शुरुआत में सारंग अकोलकर और विनय पवार को शूटर बताया था लेकिन बाद में सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को गिरफ्तार किया और एक पूरक आरोपपत्र में दावा किया कि उन्होंने दाभोलकर को गोली मारी थी। इसके बाद, केंद्रीय एजेंसी ने अधिवक्ता संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को कथित सह-साजिशकर्ता के तौर पर गिरफ्तार किया। तावड़े, अंदुरे और कालस्कर जेल में बंद हैं जबकि पुनालेकर और भावे जमानत पर बाहर हैं।
गौरी लंकेश हत्याकांड
गौरतलब है कि सनातन संस्था का नाम 2017 में हुए एक और हत्याकांड के पीछे आया था। दिवंगत पत्रकार गौरी लंकेश का हत्याकांड। नरेंद्र दाभोलकर के हत्या के चार साल बाद ही 5 सितंबर 2017 की रात 8 बजे गौरी लंकेश की बाइक सवार लोगों ने, उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी। पिछले साल ही कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस हत्याकांड के एक आरोपी मोहन नायक को 15 दिसंबर को रिहा कर दिया।
रिहाई के फैसले के खिलाफ गौरी की बड़ी बहन कविता लंकेश ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की । मोहन नायक वह आरोपी है जिस पर हत्या करने वाले निशानेबाजों को आश्रय देने के लिए घर किराए पर लेने सहित रसद उपलब्ध कराने का आरोप था। पत्रकार गौरी लंकेश हत्याकांड के आरोपी को कर्नाटक हाई कोर्ट के द्वारा रिहाई के फैसले के खिलाफ इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। कर्नाटक पुलिस के मुताबिक, गौरी लंकेश को श्री राम सेना का एक सदस्य परशुराम वाघमेर ने गोली मारी थी। इंडिया टुडे ने एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट अनुसार गौरी लंकेश हत्याकांड में राम सेना समिति का हाथ था। वहीं लंकेश हत्याकांड का मास्टरमाइंड अमोल काले हिंदू जनजागृति समित का संयोजक था और अन्य आरोपी अमित देगवेकर किसी सनातन संस्था में साधक था। हत्या की जांच के लिए बनाई गई एसआईटी ने पाया था कि गौरी लंकेश की हत्या की प्लानिंग हत्या के एक साल पहले की गई थी।
बीबीसी की एक रिपोर्ट मुताबिक गौरी लंकेश को उनकी विचारधारा, लेखों और भाषणों पर उन्हें हत्या की धमकियां मिलती रही थी। वह दक्षिणपंथी ताकतों के निशाने पर थीं। बीबीसी के मुताबिक गौरी ने बार-बार लिखा कि मैं एक सेकुलर देश की इंसान हूं और मैं किसी भी तरह की धार्मिक कट्टरता के खिलाफ हूं। गौरी लंकेश कन्नड़ साप्ताहिक पत्रिका लंकेश में संपादिका के रूप में काम करती थी। लेखक मंगलेश डबराल के कहने अनुसार लंकेश पत्रिका’ काफ़ी लोकप्रिय थी और उसका समाज पर एक असर था। उस असर को मिटाने के लिए उन ताकतों को गौरी लंकेश को ही मिटाना पड़ा। वो कहते हैं “इससे पहले वहां कलबुर्गी की हत्या हुई थी। नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे जी की जो हत्या हुई, पता चल रहा है कि उनको मारने का तरीका भी एक जैसा ही है। अनेक बार इन हत्याओं के सिलसिले में सनातन संस्था का नाम आया है।
दाभोलकर की हत्या के बाद आया विधेयक
एमएएनएस लंबे समय से महाराष्ट्र में लोगों के अंधविश्वास के शोषण को रोकने के लिए एक कानून के लिए अभियान चला रहा था। साल 1989 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार ने इस दिशा में एक कानून बनाने का संकेत दिया था। साल 1995 में विधान परिषद में यह मुद्दा फिर उठा। महाराष्ट्र को अंधविश्वास विरोधी कानून लागू करवाने में एमएएनएस की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के सदस्यों ने इस विषय पर राज्य के निष्क्रियता के विरोध में 28 जुलाई 2003 को राज्य विधानसभा के बाहर भूख हड़ताल का आयोजन किया। इसके अलावा 2 मार्च साल 2009 में इस समिति के सदस्यों ने खून से एक पत्र लिखकर तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को भेजा। जिसमें कानून पारित करने की दिशा में कदम उठाने का आग्रह किया गया था। इसके बाद 7 अप्रैल 2011 को, उन्होंने कानून के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए एक रैली का आयोजन किया। महाराष्ट्र में अंधविश्वास को खत्म करने के लिए 7 जुलाई से 25 जुलाई 2011 तक टेलीग्राम -सेंडिंग अभियान भी चलाया ,मुख्यमंत्री को तार भेजे गये।
गौरतलब है कि इस समिति के संस्थापक नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के विषय में तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा था कि दाभोलकर की हत्या प्रगतिशील महाराष्ट्र की छवि पर आघात है। वहीं एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने दावा किया था कि गोडसे की विचारधारा मानने वाले लोग दाभोलकर की हत्या इसके लिए जिम्मेदार हैं। दाभोलकर की हत्या के बाद उधर राज्य में अंधविश्वास विरोधी कानून लागू करने की जबरदस्त बहस चल रही थी। इस हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।
उस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा था कि अंधविश्वास विरोधी विधेयक पारित करवाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री और एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा था कि जिस प्रगतिशील विचार के लिए उन्होंने अपनी जान दी, वह राज्य में नहीं मरेगा। ऐसा लगता है कि उनके विचारों के खिलाफ किसी ने उनकी हत्या की। दाभोलकर की मृत्यु के चार दिन बाद ही महाराष्ट्र राज्य में लंबित अंधविश्वास और काला जादू विरोधी अध्यादेश चव्हाण के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने लागू कर दिया,जिसे वह 2003 से पारित कराना चाहती थी। साल 2013 में महाराष्ट्र मानव बलि और अन्य अमानवीय कृत्य की रोकथाम एवं उन्मूलन अधिनियम पारित किया ताकि राज्य में अमानवीय प्रथाओं तथा काला जादू आदि को प्रतिबंधित किया जा सके।
कौन थे नरेंद्र दाभोलकर
अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले नरेंद्र दाभोलकर महाराष्ट्र के एक सामाजिक कार्यकर्ता थे। उनका जन्म 1 नवंबर 1945 को हुआ था। नरेंद्र दाभोलकर अच्युत गांधीवादी समाजवादी देवदत्त दाभोलकर के छोटे भाई थे। मिराज के सरकारी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर वे राष्ट्रीय सेवा दल के संपर्क में आए और इसकी विचारधारा से बहुत प्रभावित हुए। समाज में प्रचलित अंधविश्वास का मुकाबला करने और तर्कवाद और वैज्ञानिक तर्क लाने के उद्देश्य से वह राष्ट्रीय सेवा दल से जुड़ गए।
दाभोलकर ने चिकित्स्क के रूप में 12 साल तक काम किया। सामाजिक कार्यों के प्रति जैसे जैसे उनका जुनून बढ़ता गया ,उन्होंने अपना यह पेशा पूरी तरह से छोड़ दिया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार शुरुआत में दाभोलकर प्रोफेसर श्याम मानव की अध्यक्षता वाली अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (ABANS) में शामिल हुए थे। लेकिन प्रोफेसर मानव के साथ मतभेदों के कारण कुछ वर्षों के बाद दाभोलकर ने ABANS छोड़ दिया। इसके बाद दाभोलकर ने अपने नव स्थापित संगठन अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति महाराष्ट्र के जरिए अपनी गतिविधियों को जारी रखा।