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केंद्र से टकराव लेने को तैयार ठाकरे सरकार 

मुंबई मेट्रो -3 परियोजना की शुरुआत वर्ष 2014 में भाजपा-शिवसेना गठबंधन  के समय में हुई थी। यह परियोजना 2021 में पूरी होनी थी । इसके लिए ही गोरेगांव के आरे कॉलोनी में कारशेड तैयार किया जा रहा था, लेकिन ठाकरे सरकार ने इसको कांजुरमार्ग में स्थान्तरित  कर दिया। इसके बाद से कारशेड विवादों में आया और मामला कोर्ट में पहुंच गया। बुधवार को बांबे हाईकोर्ट ने मुंबई उपनगरीय जिला कलेक्टर के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसके तहत मेट्रो कारशेड के निर्माण के लिए कांजुरमार्ग में 102 एकड़  जमीन आवंटित की गई थी।

अहमदाबाद-मुंबई फर्स्ट कॉरिडोर  बुलेट ट्रेन अब मुंबई में मेट्रो -3 कारशेड विवाद की चपेट में आ गई है। कांजुरमार्ग में मेट्रो कारशेड के निर्माण कार्य पर रोक संबंधी हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य की ठाकरे सरकार बांद्रा-कुर्ला कांप्लेक्स (बीकेसी) में प्रस्तावित रेलवे ट्रेन के स्थान पर मेट्रो कारशेड बनाने की संभावनाएं तलाश रही हैं। भाजपा नेता व पूर्व मंत्री आशीष शेलार ने कहा कि सरकार का यह प्रस्ताव  रेल परियोजना के खिलाफ है।

इस बीच शुक्रवार को राज्य के शहरी विकास मंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि मुंबई के लोगों के लिए मेट्रो बहुत जरूरी है। अदालत के फैसले के बाद हम इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या मेट्रो कारशेड बीकेसी में बनाया जा सकता है। शिंदे ने कहा कि राज्य सरकार ने अधिकारियों को बीकेसी में बुलेट ट्रेन के लिए प्रस्तावित स्टेशन के स्थान पर मेट्रो कारशेड बनाने की संभावनाएं तलाशने करने का आदेश दिया है। हालांकि ठाकरे सरकार यह अच्छी तरह जानती है कि बीकेसी में मेट्रो कारशेड बनाने से न केवल राजनीतिक विवाद बढ़ेगा बल्कि मेट्रो के साथ बुलेट ट्रेन परियोजना भी प्रभावित होगी। फिरभी टकराव मोल लेने को तैयार है।

विपक्ष के नेता देवेन्द्र फडणवीस ने बीकेसी में मेट्रो कारशेड बनाने की सोच को हास्यास्पद और बचकाना करार दिया है। उन्होंने कहा कि पिछली बार यहाँ 1800 करोड़ रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन खरीदी  थी। अगर कारशेड के लिए 25 हेक्येटर जमीन ली जाती है तो उसकी कीमत लगभग 30,000 करोड़ रुपये होगी। बुलेट ट्रेन टर्मिनल तीन लेबल जमीन के नीचे जा रहा है और जमीन पर सिर्फ 500 मीटर की जगह लेगा। टर्मिलन इस तरह डिजाइन किया गया है कि वित्तीय केंद्र की इमारत उसके ऊपर बनेगी। अगर, मेट्रो कारशेड को जमीन के नीचे बनाया जाएगा तो 500 करोड़ की जगह 5000 करोड़ से भी ज्यादा लागत आएगी और उसका रखरखाव खर्च पांच गुना ज्यादा हो जाएगा। इससे पूरी मेट्रो नॉन फिजबल हो जाएगी। मुझे पता नहीं सरकार को डुबोने की ऐसी सलाह कौन दे रहा है।

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