चार जुलाई को केंद्र सरकार ने खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की। इसकी घोषणा करते समय केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, ‘हमने किसानों को फसल की लागत का कम से कम डेढ़ गुना दाम दिलाने का अपना वायदा पूरा किया। अब सरकार किसानों की आय दोगुना करने की दिशा में काम कर रही है।’ सरकार ने यह निर्णय ऐसे समय लिया है जब कई महीनों से आधा दर्जन से ज्यादा राज्यों के किसान आंदोलन कर रहे हैं। कर्ज ओर कृषि उपजों के दाम गिरने से किसान परेशान हैं। किसान सरकार से कर्ज माफी और स्वामीनाथन रिपार्ट को लागू करने की मांग कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम साल में एमएसपी बढ़ाने का फैसला लिया। इसलिए विपक्ष और कृषि विशेषज्ञ इसे चुनाव से जोड़ कर देख रहे हैं।

भारत में किसानों की दुर्दशा किसी से छुपी नहीं है। खासकर मध्यम और छोटे किसान कर्ज के तले दबा हुआ है। एक आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2001 से वर्ष 2015 तक (15 साल में) दो लाख 34 हजार से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या किया है। केंद्र एवं प्रदेश सरकारें किसानों अपने को किसानों का हितैषी बता है, फिर भी किसाना की दशा में सुधार नहीं होता। इसका सीधा सा अर्थ है कि सभी सरकारों ने किसानों को छला और धोखा दिया है। जानकारी के मुताबिक देश में करीब 25 करोड़ लोग खेती- किसान करते हैं। जबकि 50 करोड़ लोग भारत में कृषक मजदूर हैं। बताया जा रहा है कि वर्तमान सरकार ए2$एफएल फॉर्मूला को अपनाने का प्रस्ताव लेकर आई है। फिलहाल, बाजरा, उड़द, अरहर जैसे कुछ फसलों के लिए ये फॉर्मूला लागू किया गया है।
सरकार से अभी भी कुछ किसान संगठन खुश नहीं है। उनका मानना है कि एमएसपी तय करने का जो फॉर्मूला स्वामीनाथन आयोग ने सुझाया था, उसे नहीं माना गया है। 18 नवंबर 2004 को तत्कालीन केंद्र सरकार ने एमएसपी तय करने और किसान के हितों के लिए एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया था। इस आयोग ने साल 2006 में अपनी रिपोर्ट दी। जिसमें किसानों की दुर्दशा को दूर करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं।

कुछ लोगों का मानना है कि कोई भी फार्मूला सटीक नहीं है। क्योंकि कहीं का किसान अपनी फसल में ज्यादा खाद और दवा डालता है और कहीं बहुत कम। ऑर्गेनिक खेती करने वाला किसान खाद नहीं खरीदता। एक ही फसल की लागत किसी प्रदेश में ज्यादा तो किसी में कम हो सकती है। इसलिए कोई भी फार्मूला सटीक नहीं हो सकता। वहीं सी2 के तहत जमीन का किराया भी अलग-अलग स्थानों पर अलग होता है।
एमएसपी तय करने का उद्देश्य यह माना जाता है कि अगर बाजार में सरकारी कीमत के नीचे किसी अनाज की कीमत जाती है, तो सरकार एमएसपी के आधार पर किसानों से अनाज खरीदेगी। आमतौर पर उम्मीद की जाती है कि किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य से ज्यादा कीमत मिले। मगर पिछले चार वर्षों में ऐसा कभी नहीं हुआ जब गेहूं और धान को छोड़कर किसी भी उत्पादन का बाजार भाव एमएसपी के बराबर भी पंहुचा हो।

स्वराज इंडिया के संस्थापक योगेंद्र यादव से बातचीत
खरीफ फसलों का एमएसपी सरकार ने घोषित की है। क्या अब किसानों की समस्या खत्म हो जाएगी?
एमएसपी तो समय-समय पर तय होती रही है। कभी थोड़ा ज्यादा, कभी कम। किसानों की समस्या सिर्फ एमएसपी से जुड़ा हुआ नहीं है। किसानों को अपने हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता। आखिर वह देशभर का पेट भरता है। एमएसपी तब लागू होता है जब फसल सरकार खरीदती है। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि पूरे उपज का केवल 10 फीसदी ही सरकार खरीदती है। यानी 90 फीसदी किसानों की उपज बाजार के हवाले होता है।
लेकिन किसान खुश तो होंगे?
सरकार का यह फैसला किसान आंदोलन की एक छोटी जीत है। किसानों के ऐतिहासिक संघर्ष ने इस किसान विरोधी सरकार को मजबूर किया कि वो चुनावी साल में अपने पिछले चुनावी वादे को आंशिक रूप से लागू करे। सरकार ने जो नई एमएसपी घोषित की है, वो किसानों की मांग के मुताबिक नहीं है। ये एमएसपी वो ड्योढ़ा दाम नहीं है जो किसान आंदोलन ने मांगा था। ये वो दाम नहीं है, जिसका वादा मोदीजी ने किया था। ये सिर्फ वादा है, जो सरकारी खरीद पर निर्भर है। ये अस्थाई है, जो अगली सरकार की मर्जी पर निर्भर है। किसानों को संपूर्ण लागत पर डेढ़ गुने दाम की गारंटी चाहिए।
फसलों की कीमत बहुत ज्यादा बढ़ाई गई तो महंगाई नहीं बढ़ेगी?
देश में महंगाई न बढ़े, यह सरकार को देखना है। सरकार के पास ऐसी नीति बनाने की पूरी छूट है। किसानों को उनकी फसल का सही दाम मिले और महंगाई भी न बढ़े। यही तो एक अच्छी सरकार की पहचान है। आप किसान को मार नहीं सकते।
यह कैसे संभव है?
इसे कई तरह से संभव किया जा सकता है। यदि किसान आलू एक रुपए किलो बेचता है तो शहर में खुदरा विक्रता उसे पंद्रह से बीस रुपए बेचता है। पंद्रह से बीस गुणा मुनाफा कौन कमा रहा है। इसे खत्म कर आप महंगाई ही, बल्कि आज से भी सस्ता खाद्यान्न लोगों को उपलब्ध करा सकते हैं।
‘हमने वादा पूरा किया’
भाजपा के किसान मोर्चा के अध्यक्ष विरेंद्र सिंह मस्त से बातचीत
खरीफ फसलों का एमएसपी घोषित होने के बाद भी किसान संगठन खुश नहीं हैं। क्यों?
किसने कहा किसान खुश नहीं हैं। मोदी सरकार ने किसानों से जो वादा किया था, उसे पूरा किया है। अब सरकार किसानों को उनकी लागत का दो गुना कीमत दिलाने पर काम कर रही है। यही नहीं सरकार ने एमएसपी तय करने के लिए जो फॉर्मूला इस्तेमाल किया है, उसमें किसान परिवारों का खेतों में काम करने की मजदूरी को भी शामिल किया गया है। किसान की यही सबसे बड़ी मांग थी, जिसे कांग्रेस सरकार ने नहीं माना था।
एमएसपी से किसानों को कितना लाभ मिलेगा?
इस सरकार ने कई फसलों का दाम करीब 50 फीसदी तय बढ़ाया है। मसल रागी का एमएसपी पहले 1900 रुपए प्रति क्विंटल था, वह अब करीब 2900 रुपए हो गया है। मूंग का पुराना एमएसपी 5575 रुपए प्रति क्विंटल था, उसे बढ़ाकर 6975 रुपए किया गया है। आप ही बताएं क्या इससे किसानों को लाभ नहीं मिलेगा।
पर सरकार तो किसानों से बहुत कम मात्रा में फसल खरीदती है। ऐसे में किसानों तो बिचौलिये के हवाले है?
एमएसपी सिर्फ सरकार द्वारा खरीदी गई फसल पर लागू नहीं होता। फसल की एमएसपी घोषित होने के बाद कोई भी व्यापारी उससे कम दाम पर उक्त फसल किसान से नहीं खरीद सकता। व्यापारी को कम से कम एमएसपी का दाम तो किसान को देना ही पड़ेगा। हां, व्यापारी फसल की जितना ज्यादा दे, उस पर कोई रोक नहीं है।
आपकी पार्टी ने 2014 में स्वामीनाथन आयोग का सुझाव लागू करने का वादा किया थी। पर वादा पूरा नहीं हुआ?
नहीं हमने स्वामीनाथन आयोग के कई सुझाव को लागू कर दिया है। एक-दो रह गए हैं। 2019 में हमारी सरकार आई तो इसे भी पूरा करने का कोशिश किया जाएगा।