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श्री डोनाल्ड ट्रंप और कश्मीर

अमेरिका के राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड ट्रंप ऐसे राष्ट्राध्यक्ष हैं जो ताश के खेल में ट्रम्प के चारों इक्के अपने पास रखते हैं। भारत के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है। टं्रप साहब के राष्ट्रपति बनते ही भारत उन्हें समझ ही रहा था कि उन्होंने बीजा वाला मामला ऐसा उछाला कि हम कुलाचें भरते रह गए। हाल ही में ट्रंप साहब ने भारत को ट्रेडवार में फंसा दिया। उन्हें अमेरिका के साथ हमारे व्यापार असंतुलन पर बड़ी चिंता है। उनका कहना है, अमेरिका को होने वाले निर्यात पर काफी छूटें हैं, जबकि अमेरिका से आयात होने वाली वस्तुओं पर भारत में ड्यूटी बहुत है। ट्रंप साहब के चलते भारत को प्राप्त जीएसपी का दर्जा समाप्त हो गया है। उनके बयानों से हम चिंतित हैं, मगर यह सोचकर कि मोदी जी के दोस्त हैं, कुछ रास्ता निकाल लेंगे। भारत मन को समझा ले रहा है। ईरान से अपने खराब संबंधों के चलते ट्रंप चाहते हैं कि हम ईरान से तेल न खरीदें। ईरान हमें सस्ता तेल देता है और हमारी मुद्रा में विनिमय करता है, मगर टं्रप साहब की दोस्ती चाहती है कि भारत ईरान से तेल खरीदना बंद करे। भारत की अर्थव्यवस्था को श्री टं्रप बर्बाद करने पर तुले हैं। अभी-अभी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से वार्ता के दौरान टं्रप साहब ने आकाशवाणी कर दी कि श्री नरेंद्र मोदी ने उनसे हाल में हुई भेंट के दौरान कश्मीर के मामले में मध्यस्थता करने का आग्रह किया है, सारा भारत स्तब्ध रह गया। भारत सरकार ने संसद में एवं संसद से बाहर सफाई दी। सरकार की ओर से विदेश मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने ऐसा कोई अनुरोध श्री टं्रप से नहीं किया है। उन्होंने विपक्ष के सदस्यों और देश को विश्वास दिलाया कि उनकी सरकार कश्मीर के प्रश्न को पाकिस्तान पोषित आतंकवाद का प्रश्न मानती है। मामले में केवल द्विपक्षीय वार्ता हो सकती है, तीसरा पक्ष मान्य नहीं है। पाकिस्तान से वार्ता तभी होगी, जब पाकिस्तान कश्मीर में आतंकी घुसपैठ रोकेगा आदि विदेश मंत्री जी ने भी कश्मीर पर हमारी राष्ट्रीय नीति को ही दोहराया। विपक्ष लगातार ट्रंप के बयान पर श्री मोदी से स्पष्टीकरण मांगता रहा। प्रधानमंत्री जी ने मौनव्रत नहीं तोड़ा। यूं भी मोदी जी किसी भी ऐसे घुमावदार प्रश्न पर बोलते नहीं हैं, दूसरों को बुलवाते हैं। प्रसिद्ध मौनी बाबा माननीय पूर्व प्रधानमंत्री, स्व श्री नरसिम्हा राव जी ने भी कुछ विवादास्पद मामलों में चुप्पी तोड़ी थी। मगर मोदी जी तो मौनम् सुखवर्धकम के सिद्धांत का अक्षरतः पालन कर रहे हैं।

खैर सच क्या है यह तो श्री टं्रप या श्री मोदी जी ही जानते हैं। मगर एक तथ्य हमें याद रखना चाहिए कि बिना आग के धुआं नहीं उठता है। जरा याद करिए पुलवामा, बालाकोट के दौरान भारत-पाक में तनाव घटने की घोषणा दुनिया के सम्मुख श्री टं्रप ने ही की थी, हमने तो केवल सर हिलाया था। भारत के जांबाज पायलट की रिहाई की घोषणा भी श्री टं्रप ने की थी। श्री ट्रंप ने कहा था कि अतिशीघ्र दोनों देशों अर्थात भारत, पाकिस्तान से खुश खबरी आने वाली है। बालाकोट के बाद जब पलटवार में पाकिस्तान की वायु सेना ने एफ-16 के साथ भारतीय सीमा में घुसने का दुस्साहस किया तो हमने पलटवार क्यों नहीं किया। क्या बालाकोट के साथ आतंकवाद खत्म हो गया था, क्या जैस का सरगना या प्रमुख कमांडर मारे गए थे, नहीं। फिर हमने पाक पर पलटवार का अवसर किसके कहने पर गवांया। सच तो यह है कि कश्मीर में मध्यस्थता की घोषणा करने का साहस हमने ही श्री टं्रप को दिया। श्री टं्रप कश्मीर में नहा-धोकर मध्यस्थता के लिए तैयार बैठे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, इस प्रश्न पर उनका सबसे हालिया बयान। एक तरफ अमेरिका के विदेश मंत्री से भेंट के दौरान हमारे विदेश मंत्री कश्मीर में केवल द्विपक्षीय वार्ता की बात कह रहे हैं और इसी समय श्री टं्रप का फिर बयान आया है कि मैं दोनों देशों के आग्रह पर मध्यस्थता के लिए तैयार हूं। एक अवांछित बयान को श्री ट्रंप यूं ही नहीं दोहरा रहे हैं।


भारत की लंबी कोशिशों के बाद लगभग सारी दुनिया ने यहां तक अरब देशों ने भी घोषित या अघोषित तौर पर इस तथ्य को मान लिया था कि कश्मीर में केवल एक ही समस्या है, वह पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवाद। मगर श्री टं्रप के मध्यस्थता संबंधी लगातार बयानों ने फिर से कश्मीर को वैश्विक चर्चा का विषय बना दिया है। हम कितना ही कहें, श्री टं्रप एक शातिर व्यापारी कम राजनेता या राष्ट्राध्यक्ष हैं। हमारे देश के कुछ विश्लेषक एवं प्रचार-तंत्र के लोग यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि भारत को श्री टं्रप के बयान को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। कुछ अखबार टं्रप के झूठे बोलों की संख्या गिनाते नहीं थक रहे हैं, ताकि उनके बयान की गंभीरता समाप्त मानी जाए। भैय्या जी एक बात मुझे कोई समझाये कि श्री ट्रंप ने इस झूठ को बोलने के लिए वही समय क्यों छांटा, जब लस्त-पस्त पाकिस्तान के प्रधानमंत्री श्री इमरान खान, श्री टं्रप एवं उनकी टीम से द्विपक्षीय वार्ता कर रहे थे। श्री टं्रप ने एक बड़े उद्देश्य को लेकर समयकाल एवं स्थिति को छांटा और अपने दिल की बात कह दी। ऐसी बात कह दी जो, श्री इमरान खान और उनके साथ अमेरिका गए पाक थल सेनाध्यक्ष आदि को मेहंदी हसन और नूरजहां की गजलों से भी मधुर लगी होगी। एक दिन पहले तक हम बड़े खुश थे कि अमेरिका ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को कोई भाव नहीं दिया, उन्हें अमेरिकन एयरपोर्ट में साधारण प्रोटोकॉल दिया गया। सत्यता यह है कि श्री टं्रप के बयान ने श्री इमरान को अमेरिका में सुपर प्रोटोकॉल दे दिया। इस एक छोटे से बयान ने पाकिस्तान में आतंकवादियों की असली संरक्षक पाकिस्तानी सेना के टूटे हुए मनोबल को कई गुना बढ़ाया होगा। मुझे डर है, अब पाक सेना और शक्ति एवं सक्रियता से आने वाले दिनों में कश्मीर में आतंकी घुसपैठ बढ़ाएगी। सीज फायर उल्लघंन की घटनायें भी नई ऊंचाई में पहुंचेगी। श्री टं्रप ने केवल एक विस्पोटक बयान ही नहीं दिया, बल्कि श्री इमरान को एफ-16 के दुरुपयोग के आरोप से भी मुक्त कर दिया। इसी समय अमेरिका में एक रिपोर्ट छपी, इस रिपोर्ट में बताया गया कि बालाकोट के बाद अमेरिका के रक्षाधिकारियों के दल ने पाकिस्तान को दिए गए एफ-16 लड़ाकू जहाजों को गिना एवं सबको यथास्थान पाया। अर्थात एफ-16 गिराने का भारत का दावा गलत है। टं्रप प्रशासन यही नहीं रुका है, अमेरिका ने इस एफ-16 बेड़े की मरम्मत एवं उच्चीकरण के लिए साढ़े बारह करोड़ डॉलर की सहायता भी मंजूर की है। इससे पहले अमेरिका, पाकिस्तान को आईएमएफ से बेल आउट आर्थिक पैकेज भी स्वीकøत करवा चुका है। हमें इस चिंताजनक समाचार के लिए तैयार होना चाहिए कि पाकिस्तान को उपलब्ध एफ-16, अब उच्चीकøत मिसाइलों के साथ सुखोई, मिराज एवं राफेल में लगी मिसाइलों और रूस से उपलब्ध करवाए जा रहे मिशायल सेस्टम का मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम हैं।

श्री ट्रंप घोषित रूप से श्री मोदी जी के अंतरंग मित्र हैं। श्री मोदी जी इतना तो जानते हैं कि यह साढ़े बारह करोड़ डॉलर्स का एफ-16 पैकेज, भारत द्वारा रूस से खरीदे गए मिसाइल सेस्टम का जवाब है। अमेरिका के खुले विरोध के बावजूद राष्ट्रहित में रूस से किया गया रक्षा सौदा श्री ट्रंप को अंदर तक चुभ गया था। ऐसा नहीं है, इन वर्षों में हमने अमेरिका से कोई कम रक्षा सामग्री खरीदी है। अकेले वर्ष 2017 में भारत ने अमेरिका से 13 अरब डॉलर से ज्यादा की रक्षा सामग्री खरीदी है। इनमें अपाचे हैलीकॉप्टर, हरक्यूलस विमान एवं हावित्जर तोपें भी सम्मिलित हैं। घोषित रूप से वर्तमान कालखण्ड में भारत और अमेरिकीय संबंधों को अंतरराष्ट्रीय रणनीति का केंद्र बिंदु माना जाता है। रूस एवं चीन की बढ़ती प्रगाढ़ता की स्थिति में अमेरिका जापान सहित पूर्वोत्तर में अपने हितों की रक्षा के लिए भारत पर भरोसा भी जताता है। इस सबके बावजूद यह तथ्य है कि सैंट्रां-कालिन दोस्ती के युग से, रिगन ड्रोक्ट्रीन काल में या बाद में भी अमेरिका विशेषतः पैंटागन का पाकिस्तान हमेशा चहेता रहा है।

अफगानिस्तान में रूस के हस्तक्षेप काल में यह निकटता अंतरगंता फिर अभिन्नता में बदल गई। सोवियत संघ (रूस) को अफगानिस्तान से खदेड़ने के लिए अमेरिका और पाकिस्तान ने मिलकर आतंकी संगठन खड़े किए, अब ऐसा ही एक संगठन तालिबान एवं हक्कानी नेटवर्क अफगानिस्तान में अमेरिका की नाक में दम किए हुए है। अमेरिका अपने डेढ़ हजार से अधिक सैनिकों को अफगानिस्तान में खो चुका है। अमेरिका, अफगानिस्तान में अपने को बुरी तरह फंसा हुआ महसूस कर रहा है। इस स्थिति से बाहर आने की तड़प ही श्री ट्रंप को किसी भी हद तक पाकिस्तान के सर्मथन में जाने को मजबूर कर रही है। पिछले दिनों हाफिज सईद की तथाकथित गिरफ्तारी पर श्री ट्रंप, श्री इमरान की पीठ थपथपाते ऐसा जता रहे थे, मानो श्री इमरान ने आतंकवाद के खिलाफ जंग जीत ली है। अमेरिका ने अफगानिस्तान में भारत के हितों जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा हित भी सम्मिलित हैं, कभी महत्व नहीं दिया। अमेरिका स्वभावतः व्यापारी राष्ट्र है, ट्रंप जी के साथ तो करेला उस पर भी नीम चढ़ा की कहावत चरितार्थ होती है। हाल ही में समाचार था कि तालीबान, पाकिस्तान, अमेरिकन प्रतिनिधियों की वार्ता में अफगान सरकार के मंत्री को केवल पर्यवेक्षक तौर पर बैठने की अनुमति मिली। एक सार्वभौम सरकार का यह अपमान था, परंतु अमेरिका, तालिबान के साथ समझौते के प्रश्न पर किसी भी सीमा तक जाना चाहता है। पाकिस्तान और उसकी सेना, उसकी विवशता को समझ रहे हैं। श्री ट्रंप अपने पुनः चुनाव लड़ने के निर्णय से पहले तालिबान से समझौता एवं अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी चाहते हैं। इसलिए काफी समय पूर्व अच्छे-बुरे तालिबान का चर्चा चला। सत्यता यह है कि 19 वर्ष बाद रूस की तरह अमेरिका भी अफगानिस्तान में लाचार सा दिख रहा है। अफगानिस्तान और भारत भाग्य भरोसे छोड़ दिए जा रहे हैं। हमें आने वाले भविष्य में आतंकवाद के एक और स्रोत से लड़ना होगा, वह श्रोत होगा अफगानिस्तान आतंकी नेटवर्क। अमेरिका नहीं, बल्कि हमारी नीतियां आतंक से लडें़गी। हमें पाक और अफगानिस्तान से आने वाले आतंकवाद से लड़ने के लिए अपने को तैयार करना चाहिए।

श्री ट्रंप, श्री पुतिन, श्री शी, श्री ऐबे, अब ब्रिटेन के श्री जॉनसन सब स्वहित पोषक राष्ट्रनेता हैं। स्टेट्समैन नहीं हैं। इनकी वैश्विक दृष्टि स्वहित तक सीमित है। बड़े राष्ट्रों में जर्मन चांसलर मार्केल शायद वैश्विक दृष्टि और सोच रखने वाली अंतिम बड़ी नेता हैं। श्री ट्रंप, ज्योफ कनेडी, क्लिंटन या बाराक ओबामा नहीं हैं, जो अपने हितों के साथ वैश्विक दृष्टि रखते थे और अपनी भूमिका को सीमित सीमा तक निभाते थे। नई पंक्ति के उपरोक्त सारे नेता दिखने में चमकीलें हैं, मगर उनकी चमक स्वः कल्याण तक सीमित है। मोदी जी दोराहे पर है, ट्रंप या ओबामा दोनों सोचों का एक साथ आनंद नहीं लिया जा सकता है। चुनौतियां भारत के पश्चिमोत्तर में कठिनत्तर होती जाएंगी। राष्ट्रहित या पार्टी हित में एक को चुनना पड़ेगा। जब कश्मीर में पीडीपी-भाजपा सरकार बनी, एक महापाप हुआ, परिणाम कश्मीर के वर्तमान चिंताजनक हालात हैं। केंद्र सरकार ने कश्मीर के वर्तमान हालात का एक समाधान निकाला है, जम्मू कश्मीर राज्य को समाप्त कर, दो केंद्र शासित क्षेत्र बनाने, धारा 370 तथा 35ए समाप्त करने का।

भगवान करे यह फार्मूला सफल हो, यदि कुछ भी गलत घटित हुआ तो परिणाम हम सबको झेलने पड़ेंगे। हम सेना एवं अर्द्धसैनिक बलों के महापराक्रम को प्रणाम करते हैं। उनके अदम्य पराक्रम पर हमें भरोसा है। देश स्थिति का समाधान चाहता है। रोज हमारे खून की बूंदें, कश्मीर में हमारी ही मिट्टी का अभिषेक कर रही हैं। मेरे विचार से सबको विश्वास में लेकर हल खोजा जा सकता था, ऐसा हुआ नहीं है। हमें पाकिस्तान एवं श्री ट्रंप दोनों से सावधान रहना होगा।

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