कोरोना महामारी के चलते देशभर के कई राज्यों में स्कूल-कॉलेज बंद हैं। वहीं इस कठिन दौर में निजी स्कूलों की मोटी-मोटी फीस देना अभिभावकों के लिए एक चिंता का विषय बन गया है। कोरोना प्रसार को रोकने के लिए लगे लॉकडाउन से संक्रमण रूका या नहीं रूका नहीं मालूम पर लोगों की जिंदगी को जरूर रोक दिया है। लॉकडाउन में कई लोगों की जॉब छूट गई तो किसी का व्यवसाय ठप पड़ गया।
इन सब के बीच स्कूल की ओर से लगातार अभिभावकों पर स्कूल फीस का बोझ बढ़ गया। निजी स्कूलों की तरफ से फीस के लिए अभिभावकों पर दवाब बनाया जा रहा है। ऐसे में सरकार तक अपनी आवाज और तकलीफ पहुंचाने के लिए अभिभावक तमाम तरह के माध्यमों का सहारा ले रहे हैं।
स्कूलों के मनमाने रवैये और फीस माफी को लेकर देश के कई जगहों पर आंदोलन शुरू हो गया है। अभिभावक हर राज्य में कोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर रहे हैं। पेरेंट्स द्वारा ‘नो स्कूल, नो फीस’ आंदोलन चलाया जा रहा है।
गौरतलब है कि संवैधानिक अधिकारों में 14 साल तक के बच्चों को फ्री एजुकेशन दिलाना शामिल है। साथ ही केंद्र सरकार प्रगति जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से मुफ्त ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है।
लेकिन इस पर भी राज्य सरकारें कोई जवाब नहीं दे रही हैं। पेरेंट्स एसोसिएशन का कहना है कि कोई भी स्कूल इस तरह की रियायत तब तक नहीं देता जब तक राज्य सरकार नियम नहीं बनाती।
सुप्रीम कोर्ट में लॉकडाउन के दौरान स्कूल फीस में छूट की मांग को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि बिना कोई सेवा प्रदान किए स्कूल फीस और अन्य खर्चों की मांग करना ‘अवैध’ है। स्कूल के प्रवेश फार्म में ऐसा कोई फोर्स मेजर क्लॉज नहीं है। स्कूल अपने प्रवेश पत्र के नियमों और शर्तों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।
दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस मामले में सुनवाई पर कहा था कि स्कूलों को ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करने के लिए शिक्षकों को भुगतान करना है। साथ ही ऐसी कक्षाओं को चलाने के लिए उपकरणों, सॉफ्टवेयर और इंटरनेट कनेक्शन जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करना है।