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भले ही कोरोना महामारी खत्म होने का नाम न ले रही हो लेकिन यूपी की राजनीति एक बार फिर से पुराने ढर्रे पर लौटती नजर आ रही है। हाल ही में बसपा प्रमुख मायावती ने योगी सरकार की मंशा पर आशंका जाहिर करते हुए एमओयू को छलावे की संज्ञा दे डाली। मायावती ने योगी सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा है कि लाखों की संख्या में बेरोजगार हो चुके श्रमिकों को सीधे काम देने के बजाए उन्हें एमओयू के नाम पर बहलाने का कोशिश की जा रही है। मायावती का यह भी कहना है कि हाल ही में एमओयू पर हस्ताक्षर करके वाहवाही लूटने वाली योगी सरकार यह क्यों नहीं बताती कि इससे पूर्व के कार्यकाल में जिन एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए थे, वे किस स्थिति में हैं।

बताते चलें कि पूर्व में इन्वेस्टर्स मीट के दौरान और उसके बाद दर्जनों की संख्या में अरबों की योजनाओं को लेकर उद्योगपतियों के साथ एमओयू साइन किए गए थे। इन योजनाओं को अभी तक धरातल पर नहीं उतारा जा सका है। ऐेसे में एक बार फिर से योगी सरकार द्वारा दिया जा रहा एमओयू का लाॅलीपाॅप भले ही आम जनता की समझ से परे हो लेकिन सत्ता विरोधी दल की नेता मायावती की नजरों से अछूता नहीं है। मायावती का यह भी कहना है कि सरकार को एमओयू साइन करवाकर मीडिया के सहारे चर्चा में बने रहने से अच्छा होता कि सरकार यह बताती कि इससे पूर्व साइन किए गए तमाम एमओयू का हश्र क्या हुआ?

बसपा प्रमुख मायावती अब इसी मुद्दे को लेकर मीडिया के सहारे जन-जन तक योगी सरकार के कार्यकलापों की धज्जियां उड़ाने का मन बना चुकी हैं। बसपा ने इस कार्य के लिए अपने पुराने और विश्वसनीय कार्यकर्ताओं को और पदाधिकारियों को चुना है। ये कार्यकर्ता और पदाधिकारी योगी सरकार के छलावे को आम जनता के समक्ष रखेंगे ताकि अगले विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे का भरपूर फायदा उठाया जा सके।

वैसे तो लम्बे अर्से से बसपा में यह परिपाटी चली आ रही है कि बसपा की तरफ से किसी प्रकार की टिप्पणी अथवा बयान देने का अधिकार सिर्फ बसपा प्रमुख मायावती को ही है इसके बावजूद बसपा के कुछ नेता गाहे-बगाहे नजरें बचाकर अन्दरखाने में चल रही गतिविधियों का प्रचार कर ही देते हैं। हाल ही में बसपा के एक कद्दावर नेता ने जानकारी दी है कि बसपा ने योगी सरकार के इस स्वांग को आम जनता के बीच भुनाने के लिए तैयारी पूरी कर ली है।


बसपा के हाथ कथित रूप से लगा ये मुद्दा बसपा को कितना लाभ पहुंचा पायेगा? यह भविष्य के गर्त में लेकिन इस मुद्दे ने लगभग ढाई माह पश्चात यूपी की राजनीति में एक बार फिर से गर्माहट पैदा कर दी है। हालांकि यूपी भाजपा नेता बसपा प्रमुख मायावती के बयान को कोई खास महत्व देते नजर नहीं आ रहे लेकिन माना जा रहा है कि ये मुद्दा अगले विधानसभा चुनाव में बसपा के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

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