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मानसून सत्र ने जगाई कांग्रेस की उम्मीदें

मानसूत्र सत्र में हंगामे को लेकर पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, लेकिन सच यही है कि सार्थक प्रयास दोनों तरफ से नहीं हुए
संसद के मानसून सत्र में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी विपक्षी नेताओं की बैठक करने में जिस तरह कामयाब रहे और उन्होंने सरकार के विरुद्ध जो तेवर दिखाए उससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं को नई उम्मीदें जगी हैं। उन्हें लगता है कि राहुल आगामी लोकसभा चुनाव में भी विपक्षी पार्टियों को सरकार के खिलाफ एकजुट करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।  राजनीतिक पंडितों के मुताबिक राहुल की सक्रियता को देखते हुए कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी भी प्रसन्न हैं और अब वे भी पूरी ऊर्जा के साथ भाजपा विरोधी फ्रंट के लिए सक्रिय होने जा रही हैं।
विपक्ष की एकजुटता और मजबूती प्रदान करने के लिए सोनिया गांधी खुद मैदान में उतरेंगी। 20 अगस्त को वह कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों  सहित महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से बातचीत करेंगी। यही नहीं सोनिया, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, स्टालिन सहित कई विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं से भी बातचीत करेंगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सोनिया और राहुल की यह सक्रियता भले ही विपक्षी दलों को एकमंच पर न ला सके, लेकिन कांग्रेस को इसका इतना सियासी फायदा अवश्य होगा कि उसके कार्यकर्ताओं में एक नई जान आएगी।
मानसून सत्र के दौरान भी कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं और देश की जनता को बराबर यही संदेश देती रही है कि सरकार जन मुद्दों पर गंभीर नहीं है। सत्र के दौरान कांग्रेस और विपक्षी दल लगातार हमलावर रहे। बताया जा रहा है कि हंगामे के चलते संसद का मानसून सत्र अपने निर्धारित समय से दो दिन पहले ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। पेगासस जासूसी मामले और विवादित तीन कृषि कानूनों सहित कई मुद्दों पर विपक्षी दलों के हंगामे के कारण लोकसभा में 22 फीसदी और राज्यसभा में 28 प्रतिशत ही कामकाज हो पाया। बीते सात सालों में संसद में सबसे ज्यादा हंगामा इसी सत्र में देखा गया। इसके बावजूद राज्यसभा में साल 2014 के बाद से दूसरी बार ऐसा हुआ है जब सबसे ज्यादा बिल पारित हुए हों। इस सत्र में राज्यसभा में 74 घंटे 26 मिनट बर्बाद हुए। सिर्फ 17 दिन ही राज्यसभा की कार्यवाही चली और इसके बावजूद औसतन हर दिन 1.1 बिल को पारित किया गया। साल 2020 में जब देश कोरोना महामारी से लड़ रहा था, उस समय मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा में हर दिन औसतन 2.5 बिल पास किए गए थे, जो कि साल 2014 के बाद से सबसे ज्यादा थे।
राज्यसभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किए जाने से पहले करीब छह घंटे तक चर्चा कर ओबीसी से संबंधित संविधान (127वां संशोधन) विधेयक को पारित किया गया। हालांकि इसके बाद विपक्षी सदस्यों ने विभिन्न मुद्दों पर हंगामा शुरू कर दिया। हंगामे के बीच तीन और विधेयकों को पारित किया गया। इसके बाद उपसभापति हरिवंश ने सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने की घोषणा की।
राज्यसभा सचिवालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार वर्तमान सत्र में मात्र 28 प्रतिशत कामकाज हुआ। इस दौरान सदन में 28 घंटे 21 मिनट कामकाज हुआ और हंगामे के कारण 74 घंटे 26 मिनट का कामकाज बाधित हुआ। सत्र के दौरान 19 विधेयक पारित किए गए और पांच विधेयकों को पेश किया गया।
संसद का हंगामेदार मानसून सत्र खत्म हो गया। इस दौरान विपक्ष ने सरकार को संसद में रोकने की हरसंभव कोशिश की जो कि कामयाब होती भी दिखी। सरकार को संसद सत्र का तय समय से पहले समापन कोई नई बात नहीं है। लेकिन पूरे सत्र के दौरान विपक्ष के जोरदार हंगामे के बीच सरकार ज्यादातर विधाई कामकाज निपटाने में सफल रही। विपक्ष भी अपनी आक्रामकता दिखाने में कामयाब रहा। इस सत्र में अहम मुद्दों, जनता से जुड़े सरोकारों पर चर्चा नहीं हो पाई। लोगों से जुड़े प्रश्न नाममात्र के लिए पूछे जा सके। शून्यकाल का समय भी हंगामे की भेंट चढ़ा। सत्र को लेकर पक्ष-विपक्ष अपने-अपने जो भी दावे करे, लेकिन सत्र को सार्थक बनाने में दोनों नाकाम रहे हैं। जिन मुद्दों पर सरकार पर सवाल उठ रहे हैं, उन मुद्दों पर विपक्ष अपना मजबूत पक्ष नहीं रख पाया। हालांकि विपक्ष ने हंगामा खूब किया, लेकिन यदि जन मुद्दों को लेकर खुलकर सदन में अपनी बात रखता तो वह सरकार को कटघरे में खड़ा करता और जनता के बीच उसे ज्यादा फायदा होता।
लोकसभा के पूर्व अपर सचिव एवं संसदीय प्रणाली के जानकार देवेन्द्र सिंह के मुताबिक पूरे सत्र के दौरान दोनों सदनों में पेगासस जासूसी विवाद छाया रहा। सरकार ने स्वतः संज्ञान लेकर बयान दिया। लेकिन ऐसा बयान संसद में होने वाली चर्चा और उसमें उठाए जाने वाले प्रश्नों का जवाब नहीं हो सकता। इसी प्रकार पूरे सत्र में हंगामा करने वाला विपक्ष ओबीसी आरक्षण विधेयक पर चर्चा के लिए तैयार हुआ। क्योंकि इसमें सभी राजनीतिक दलों को अपना फायदा नजर आ रहा है। रोज हंगामा कर रहा विपक्ष इसलिए विधेयक के पक्ष में खड़ा हो गया क्योंकि वह आरक्षण का विरोधी नहीं दिखना चाहता है। हालांकि इस पर हुई चर्चा में भी विपक्ष घटती सरकारी नौकरियों और सरकारी संस्थानों के निजीकरण के चलते घटते आरक्षण पर सरकार की घेराबंदी करने में विफल रहा।
जानकारों का कहना है कि सत्र के दौरान लोकसभा में और राज्यसभा में बार-बार संसदीय मर्यादा को छिन्न-भिन्न करने वाली कई घटनाएं हुई हैं, यह घटनाएं सरकार को फायदा पहुंचाती हैं तथा विपक्ष के रवैये पर सवाल उठाती हैं। विभिन्न विषयों पर चर्चा की मांग करना विपक्ष का अधिकार है। जैसे किसानों से जुड़े मुद्दे, पेगासस जासूसी प्रकरण और कोरोना महामारी की दूसरी लहर के मुद्दे बेहद अहम थे। राज्यसभा में कोरोना महामारी पर चर्चा हुई भी लेकिन लोकसभा में नहीं हो सकी। इसी प्रकार किसानों के मुद्दे पर चर्चा राज्यसभा में नियमों के फेर में उलझकर रह गई। जबकि पेगासस पर साफ नजर आ रहा था कि सरकार चर्चा के लिए तैयार नहीं है।
 पेगासस पर चर्चा होना सरकार के लिए भी बेहतर था क्योंकि जब भी संसद में कोई चर्चा होती है तो बात रखने का सबसे ज्यादा वक्त सरकार को मिलता है। इसलिए उसके पास विपक्ष की तरफ से उठाए जाने वाले प्रश्नों का जवाब देने का मौका था। इसी प्रकार किसानों या कोरोना आदि को लेकर जिस भी नियम के तहत सरकार तैयार हो रही थी, विपक्ष को मान जाना चाहिए था। चर्चा में भाग लेकर विपक्ष के पास सरकार की नीतियों और तैयारियों की खामियां को उजागर करने का मौका था।
अब जब संसद के दोनों सदन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिए गए तो राज्यसभा में हुए हंगामे को लेकर विपक्षी दलों के सांसदों ने संसद से विजय चौक तक पैदल मार्च किया। इस मार्च में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी शामिल हुए। इस दौरान राहुल गांधी ने सरकार पर आरोप लगाया कि विपक्ष को संसद में बोलने की अनुमति नहीं है। यह लोकतंत्र की हत्या है। इससे पहले राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के कार्यालय में विपक्षी दलों के नेताओं ने बैठक की थी।
राहुल गांधी ने कहा, सरकार ने किसानों के मुद्दे पर चर्चा नहीं करवाई। जासूसी कांड पर भी सरकार ने चर्चा करने से इंकार कर दिया। सरकार विपक्ष की आवाज दबा रही है। देश की 60 प्रतिशत जनता की आवाज नहीं सुनी गई। जनता की आवाज का अपमान हुआ है।  हम किसानों के मुद्दे संसद के अंदर नहीं उठा सके, इसलिए बाहर आए हैं। यह लोकतंत्र की हत्या से कम नहीं है।
मार्च में शामिल शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा, मार्शल्स की ड्रेस में बाहर से प्राइवेट लोगों ने जो महिला सदस्यों के साथ किया, उससे लगा जैसे मार्शल लॉ लगा हो। मुझे लगा मैं पाकिस्तान बॉर्डर पर खड़ा हूं कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि सरकार इस देश को तानाशाही से चला रही है। ये देश की तासीर के खिलाफ है।  विपक्ष को बोलने नहीं दिया जा रहा।
 देश को बदनाम कर रहा है विपक्ष: सरकार
विपक्ष के प्रदर्शन को लेकर केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा है, कांग्रेस पार्टी और कुछ और विपक्ष के लोग तो शुरू से ही कह रहे थे कि हम संसद के सत्र को वाशआउट करने के लिए वाशिंग मशीन लेकर आए हैं। आप सिर्फ संसद को ही बदनाम नहीं कर रहे हैं, बल्कि पूरे देश को बदनाम करने की षड्यंत्र और साजिशें कर रहे हैं।

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