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मोदी की आक्रामकता के मायने

लोकसभा चुनाव के अंतिम दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस और विपक्षी दलों के खिलाफ जो आक्रामक तेवर दिखाए उनके गहरे राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं। मोदी के आक्रामक तेवर ही नहीं, बल्कि उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को लेकर उनका नरम रुख भी राजनीतिक विश्लेषकों की दिलचस्पी का कारण बना हुआ है। राजनीतिक पंडितों के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी कोई भी बात एक ठोस रणनीति के तहत कहते हैं। चक्रवाती तूफान ‘फैनी’ से निपटने के मामले में जहां एक ओर उन्होंने मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पीठ थपथपाई है तो दूसरी ओर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हमला करने से भी नहीं चूके। ऐसा इसलिए कि पार्टी को दोनों राज्यों में बेहतर परिणामों की उम्मीदें हैं।

चूंकि तूफान से पहले उड़ीसा में चुनाव संपन्न हो चुका था, इसलिए यहां नवीन पटनायक की प्रशंसा करने से कोई दिक्कत नहीं थी। फिर एक संभावना शायद मोदी यह भी देखते हों कि यदि चुनाव नतीजे संतोषजनक नहीं रहे और केंद्र में समर्थन लेने की जरूरत पड़े तो नवीन पटनायक मददगार साबित हो सकते हैं। लिहाजा पटनायक की प्रशंसा करने में कोई हर्ज नहीं है। दूसरी तरफ उन्हें लगा कि बंगाल में बेहतर प्रदर्शन करना है, तो रणनीतिक रूप से ममता बनर्जी पर हमला करना ही होगा। यही मोदी ने किया भी है। एक चुनावी रैली में मोदी ने कहा कि उन्होंने तूफान से उपजे जमीनी हालत का जायजा लेने के लिए राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को दो बार फोन किया था, लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया। हालांकि ममता बनर्जी भी कहां चुप रहने वाली थीं। उन्होंने कहा कि वह तूफान के हालात का जायजा लेने के लिए खड़गपुर में थीं। इसलिए प्रधानमंत्री से फोन पर बात नहीं कर सकीं। इससे पहले तृणमूल की ओर से यहां तक कहा गया कि प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से मुख्यमंत्री के दफ्तर में कोई फोन नहीं आया था।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को अहसास है कि उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य राज्यों में भी भाजपा को काफी नुकसान होने जा रहा है। कहीं ऐसा न हो कि उसकी स्थिति शतक लगाने की तरफ बढ़ रहे उस क्रिकेट खिलाड़ी की तरह न हो जाए जो नर्वस नाइंटी का शिकार हो जाता है। लिहाजा इस नुकसान की भरपाई वह बंगाल से करने के मूड में हैं और पंजाब पर भी भाजपा की नजर थी। दिल्ली की सातों सीटों को बचाए रखने की चुनौती अलग से है। आम आदमी पार्टी के संयोजक और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पूरे जोर-शोर से मोर्चा खोल दिया था। यही वजह है कि मोदी को आम आदमी पार्टी के खिलाफ भी आक्रामक तेवर दिखाने पड़े।


कांग्रेस के प्रति प्रधानमंत्री मोदी खासकर आक्रामक हुए हैं। वे अपना दर्द बयां कर रहे हैं कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कैसे- कैसे अपशब्द उनके लिए इस्तेमाल किए हैं। किस तरह प्रधानमंत्री पद की गरिमा का भी ख्याल नहीं रखा है। कांग्रेस के खिलाफ उन्होंने जिस प्रकार से आक्रामक तेवर अपनाए हैं, उसे वोटों के ध्रुवीकरण के तौर पर देखा जा रहा है। वे पूरी कांग्रेस और गांधी परिवार को भ्रष्ट करार देने की कोशिश में हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि रामलीला मैदान में उन्होंने पूर्व पीएम स्वर्गीय राजीव गांधी पर आरोप लगाया कि पूर्व पीएम ने सैन्य युद्धपोत आईएनएस विराट का इस्तेमाल अपने परिवार और ससुरालवालों की पिकनिक मनाने के लिए किया। इस आरोप के जरिये उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की कि उनकी सरकार सैन्य राष्ट्रवाद को बढ़ावा दे रही है, जबकि कांग्रेस की सरकार ने सैनिकों का इस्तेमाल निजी काम के लिए किया। पिछले दिनों पीएम मोदी ने स्वर्गीय राजीव गांधी को नबंर वन भ्रष्टाचारी भी बताया था और उनके उस बयान को निशाने पर लिया था कि केंद्र से चले 100 पैसों में से मात्र 25 पैसे गांव तक पहुंचते हैं।

ऐसा समझा जा रहा है कि छठे चरण में 12 मई को दिल्ली, हरियाणा समेत सात राज्यों की कुल 59 सीटों पर वोट पड़ने थे। उससे पहले राजीव गांधी को भ्रष्ट कहकर नरेंद्र मोदी ने एक तरह से सिख वोटों का धु्रवीकरण करने की कोशिश की है। दरअसल, 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली और आस-पास के इलाकों में बड़े पैमाने पर सिख दंगे भड़के थे। चूंकि इंदिरा गांधी की हत्या दो सिख जवानों ने की थी, इसलिए दिल्ली और आस-पास के इलाकों में सिखों के खिलाफ हिंसा हुई थी। कांग्रेस पर सिख दंगाइयों को बचाने और दंगा करवाने के आरोप लगते रहे हैं। जब ये दंगे भड़के थे, तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। लिहाजा पीएम मोदी राजीव गांधी के बहाने सिखें को कांग्रेस के खिलाफ एकजुट कर उसका सियासी फायदा उठाने की रणनीति में दिखाई देते हैं। पंजाब में पूर्व पीएम इंदिरा गांधी को लेकर भी एक बड़े तबके में नाराजगी है, क्योंकि उनके शासनकाल में 3 से 6 जून 1984 के बीच ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ था। खालिस्तान समर्थकों और जनरैल सिंह भिंडरवाले से अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को सेना ने इस ऑपरेशन के दौरान खाली कराया था। इस ऑपरेशन में भारी खून खराबा हुआ था। 83 सैनिकों समेत 300 से ज्यादा लोग मारे गए थे। आज भी सिख समुदाय उसे ब्लैक ऑपरेशन कहता है और उस वजह से गांधी परिवार से नाराजगी रखता है।

खास बात यह है कि भाजपा के अन्य नेता भी मोदी की राह पर ही आक्रामक हैं। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने ममता बनर्जी पर हमला किया कि वे बगदादी से प्रेरित होकर बगदीदी बनना चहाती हैं। भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह तो यह संदेश दे रहे हैं कि यदि सीआरपीएफ नहीं होती तो उनका बंगाल से बचकर आना नामुमकिन था। उन्होंने कहा कि चुनाव में बंगाल के अलावा और कहीं हिंसा नहीं हुई है। दूसरी तरफ ममता ने भी पलटवार किया है कि बंगाल में हिंसा की बड़ी वजह भाजपा है।

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक जहां एक ओर मोदी और भाजपा नेता आक्रामक हैं, वहीं दूसरी तरफ नर्वस नाइंटी की आशंकाओं से भयभीत उनके सहयेगी नई संभावनाएं भी तलाशने लगे हैं। एनडीए का कुनबा बढ़ाने की तैयारियां भी होने लगी हैं। इस बीच भाजपा की सहयेगी पार्टी जनता दल यूनाईटेड (जेडीयू) के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने एक महत्वपूर्ण बयान दिया हैं।

उन्होंने बीजू जनता दल के नवीन पटनायक और वाईएसआर कांग्रेस के जगन मोहन रेड्डी से अपने साथ आने का आह्नान किया हैं। उन्होंने कहा कि नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक जनता दल से जुड़े रहे हैं। इस तरह उनका और हमारा (जेडीयू) का डीएनए एक है। जगन मोहन रेड्डी आंध्र में ज्यादा सीटें ला रहे हैं। हम चाहते हैं कि पटनायक और जगन जैसे क्षेत्रीय क्षत्रय हमारे साथ आए। केसी त्यागी के इस बयान के स्पष्ट मायने हैं कि भाजपा और एनडीए में शामिल सहयोगी पार्टियों को आशंका है कि 2019 में 2014 जैसी जीत मिलनी मुश्किल है। लिहाजा आक्रामक होने के साथ ही नरम तेवर भी अपनाए जा रहे हैं।

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