पुलवामा में फिदायीन हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चारों तरफ से दबाव में हैं। देश की जनता की भावना है कि पाकिस्तान को तत्काल सबक सिखाया जाना चाहिए। आतंकियों का समूल नाश हो। शहीदों के प्रति उमड़े जन भावनाओं के सैलाब के बीच बहुत से ऐसे लोग भी हैं जिनसे देश का अंदररूनी माहौल खराब होने की आशंका है। ये लोग बिना सोचे-समझे वही कदम उठा रहे हैं जैसा कि देश- विरोधी ताकतों की मंशा रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी और सरकार के सामने चुनौती है कि कैसे विश्व समुदाय को बता सकें कि पाकिस्तान आतंकवाद को शह दे रहा है। इसके अलावा सियासी दबाव अलग से है। आज की परिस्थति में भले ही विपक्षी दल सरकार के साथ हैं, लेकिन देर-सबेर वे सवाल उठाएंगे ही कि आखिर पुलवामा में जो हुआ उसके पीछे चूक कहां से हुई?
आतंकवाद और पाकिस्तान के प्रति भारत की जनता में उमड़े ‘जन आक्रोश’ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक दौर में बीहड़ों में कुख्यात रहे पूर्व दस्यु सरगना मलखान सिंह भी कह रहे हैं कि अपने 700 बागी साथियों के साथ पाक के खिलाफ जंग में जाने को तैयार हैं। इसके लिए कोई वेतन भी नहीं लेंगे। देश की जनता के बीच से पाक को नेस्तनाबूद करने के स्वर उठ रहे हैं। हालांकि यह सेना और रक्षा विशेषज्ञों का विषय है कि विरोधियों को जवाब देने के लिए अनुकूल स्थितियां कब और कौन सी हो सकती हैं, लेकिन अभी जनभावनओां का सरकार पर जो दबाव है, उसको देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी को कुछ न कुछ अवश्य सोचना होगा।
आतंकी हमले के बाद देश में कुछ जगहों पर आम कश्मीरी छात्रों और नागरिकों के साथ कुछ लोगों द्वारा जो व्यवहार किया गया उसे देखते हुए सरकार ने त्वरित कार्रवाई की। उन्हें सुरक्षा मुहैया कराई, लेकिन इसमें देखने वाली बात यह भी है कि आखिर वे कौन लोग हैं जिन्होंने इस विषम परिस्थिति में राष्ट्र के सामाजिक ताने-बाने के खिलाफ माहौल बनाने का काम किया? सोचने का अहम विषय यह भी है कि आखिर क्यों कोई कश्मीरी युवा आतंकवादियों की कठपुतली बन जाता है? क्यों देश विरोधी ताकतें कश्मीरी युवाओं का नाजायज फायदा उठाएं? इन तमाम सवालों के लिए न सिर्फ वर्तमान सरकार बल्कि अतीत की सरकारें भी उत्तरदायी हैं और हालात नहीं सुधरे तो भविष्य की सरकारें भी रहेंगी। लेकिन फिलहाल वर्तमान सरकार की चुनौती स्वाभाविक रूप से बढ़ गई है कि भटके हुए कश्मीरी युवाओं को कैसे राष्ट्र की मुख्यधारा में वापस लाया जाए?
कूटनीतिक मोर्चे पर भी सरकार की चुनौतियां बढ़ गई हैं। ठीक है कि पाक की ओछी हरकतों को देखते हुए ईरान और अफगानिस्तान सरीख्े मुल्क हमारे पक्ष में हैं, लेकिन जरूरत सारे विश्व समुदाय का समर्थन लेने की है। आज पाकिस्तान बड़े घमंड से कह रहा है कि यदि आतंकवाद के पीछे हम हैं तो भारत सबूत दे। ऐसे में भारत सरकार को बड़ी सूझ-बूझ और मजबूती के साथ दुनिया को अहसास कराना होगा कि पाकिस्तान आतंकवाद का प्रमुख केंद्र बन चुका है। जहां इस्लामिक स्टेट (आईएस) से लेकर तालिबानियों के सुरक्षित ठिकाने हैं। ये खतरनाक संगठन न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया और मानवता के लिए भारी समस्या हैं। यदि समय रहते इनका समूल नाश नहीं किया गया तो मानवता के लिए नासूर बन जाएंगे। इस वक्त पूरी दुनिया को अपने पक्ष में गोलबंद करने का दबाव मोदी सरकार पर है।
इस सबके साथ सियासी दबाव अलग से है। आगामी लोकसभा चुनाव के चलते सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी गोटियां बिठा रही हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री को यह भी ध्यान रखना होगा कि कहीं सियासी मोर्चे पर उनकी पार्टी पिछड़ न जाए। खासकर तब जबकि विपक्षी दल उनके खिलाफ निरंतर महागठबंधन बनाने के प्रयास में जुटे हुए हैं। सियासी मोर्चे पर प्रधानमंत्री मोदी के सम्मुख आगे और भी बड़ी चुनौती आने वाली है। यह सही है कि आज की परिस्थितियों में विपक्षी दल सरकार के साथ हैं, लेकिन जब वे चुनावी मोर्चे पर होंगे तो क्या सरकार पर हमला करने का मौका चूक जायेंगे? देश के कुछ पूर्व सैन्य अधिकारी मानते हैं कि पुलवामा में जो हुआ उसमें कहीं न कहीं से हमारी लापरवाही रही है। आखिर क्या गारंटी है कि कल विपक्ष सरकार को कटघरे में खड़ा नहीं करेगा कि आतंकवद से निपटने में उससे चूक हुई है। शहीदों के नाम पर राजनीति करने का आरोप विपक्षी पार्टियों की ओर से भाजपा पर लगाया जाने लगा है। अब देखना है कि मोदी इस चौतरफा दबाव से कैसे उबर पाते हैं।