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सत्तर के दशक में एक फिल्म आई थी ‘शोले’। उसके कई चर्चित डायलॉग में से एक था- ‘गांव वालों, गब्बर से सिर्फ एक आदमी तुमको बचा सकता है-खुद गब्बर।’ राजनीतिक परिदृश्य को अगर थोड़ी देर के लिए फिल्म मान लें, तो हमें यह भी मान लेना चाहिए कि खलनायक ही नायक है और नायक से ज्यादा लोकप्रियता उसी की है। वैसे भी हम जिस दौर में जी रहे हैं उसमें अच्छा-बुरा, नायक-खलनायक के बीच का फर्क लगातार कम होता जा रहा है। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जोड़कर विचार किया जाए तो हम पाते हैं कि बातें कुछ भी हों मगर पिछले लोकसभा चुनाव से लेकर आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव तक मुद्दा मोदी ही हैं।

प्रधानमंत्री बनने से लेकर अभी तक नरेंद्र मोदी ने कई बातें की। बतौर प्रधानमंत्री उन्होंने कई कड़े फैसले लिए। इस दौरान भाजपा भी कई मद्दों पर मुखर हुई। लेकिन वह सारी बातें छोटी पड़ गई। ऐसा भी हुआ कि वह सारी बातें और मुद्दे विस्तार पाकर मोदी में मिल गए। आज आलम यह है कि तटस्थ लोगों की तादात नगण्य है। लोग-बाग या तो मोदी के पक्ष में हैं या विपक्ष में। मोदी देश के मन-सोच की विभाजन रेखा हैं। इसी के फलस्वरूप कई संवेदनशील, मुद्दों यहां तक कि किसी अबोध बालिका के साथ बलात्कार के मामले का हिन्दू- मुसलमान के रूप में बंट जाना भी है।

चुनाव लगभग साल भर दूर है। लेकिन उस चुनाव में भाजपा की तरफ से क्या मुद्दे बन सकते हैं, इसे लेकर अटकले अभी से लगाई जा रही हैं। भाजपा इस बात को शिद्दत के साथ महसूस कर रही है कि अकेले विकास के मुद्दे पर लोकसभा चुनाव को फतह नहीं किया जा सकता। ऐसे में 2019 में पांच मुद्दों को भाजपा प्रमुखता से उठाकर विपक्ष को मात देने की तैयारी कर सकती है-ये मुद्दे हैं- राममंदिर, ट्रिपल तलाक, आतंकवाद बनाम पाकिस्तान, आरक्षण का जिन्न, बेनामी संपत्ति बनाम काल धन। इसमें अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण भाजपा का सबसे पुराना मुद्दा है। इसी भरोसे वह 2 सांसदों की स्थिति से सत्ता तक पहुंचने में कामयाब रही। यह उसका आजमाया हुआ मुद्दा है। राम मंदिर निर्माण को लेकर चुनाव पूर्व सुप्रीम कोर्ट का कोई भी अहम फैसला आ सकता है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की मौजूदगी को इसी नजरिये से देखा जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि अदालत का कोई भी निर्णय भाजपा को चुनावी जीत दिला सकता है। क्योंकि फैसले से हिन्दुओं का हर हाल में धुव्रीकरण होगा। ऐसा माना जा रहा है कि ट्रिपल तलाक का मामला मुसलमानों के भीतर सेंधमारी कर सकता है। खासकर मुस्लिम महिलाएं भाजपा के पक्ष में माहौल बना सकती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लागतार यह कहते रहे हैं कि ट्रिपल तलाक का मसला मजहबी नहीं महिला अधिकार से जुड़ा है। आतंकवाद, पाकिस्तान और सर्जिकल स्ट्राइक को भी भाजपा चुनाव में भुनाने की कोशिश करेगी।

कुछ ऐसे भी मुद्दे हैं जिनको विपक्ष चुनाव के दौरान उछालेगा। और मुद्दे प्रधानमंत्री मोदी को मुश्किलों में डाल सकते हैं। यह मुद्दे हैं- बेरोजगारी, किसान का संकट आर्थिक मंदी पाक को माकूल जवाब नहीं। चुनाव प्रचार के लिए विज्ञापन एजेंसियों को भी हायर करने की बातचीत हो रही है। वर्ष 2004 में ‘ग्रे वर्ल्डवाइड’ नामक एजेंसी ने अटल बिहारी वाजपेयी के लिए ‘इंडिया शाइन’ अभियान का सृजन किया था। उसके नतीजे से हम सब वाकिफ हैं। पिछले चुनाव में ‘अच्छे दिन आयेंगे’ और ‘अब की बार मोदी सरकार’ जैसे नारे भाजपा ने दिए थे। विपक्ष आरोप लगाएगा कि अच्छे दिन कहीं नहीं आए, यह भाजपा भी मानती हैं।

अटकलें कुछ भी लगाई जाएं और दावे कुछ भी क्यों न करें। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान मुद्दा सिर्फ और सिर्फ मोदी ही होंगे। तमाम राजनीतिक दल और देश के नागरिक या तो उनके पक्ष में होंगे या विपक्ष में। दोनों बातों के लिए अपनी दलील होगी। कुछ तथ्य भी पेश किये जायेंगे। यह भाजपा विपक्ष और जनतंत्र के लिए कितना अच्छा है, कितना बुरा यह बाद की बात है। लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव के केंद्र में एक व्यक्ति यानी नरेंद्र मोदी नरेंद्र मोदी का होना तय है।

जैसे ही नरेंद्र मोदी चुनावी मुद्दे में तब्दील हांगे। उसके साथ ही कट्टरता भी केंद्र में आएगी और हिन्दू-मुसलमान भी। ऐसा होते ही भाजपा के सत्ता वापसी का रास्ता सुगम हो सकता है जो अभी मुश्किल दिखाई दे रहा है। भाजपा ने 300 सीटें पाने का लक्ष्य रखा है, जो उनको मिलता नहीं दिख रहा है। भाजपा को दिक्कत उन लोगों से हो सकती है जो तमाम कोशिशों के बावजूद हिन्दू-मुसलमान मे नहीं बंटते। वह काम देखते हैं। अच्छा-बुरा देखते हैं। ऐसे लोग जिनकी संख्या में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है वह मोदी का आकलन उनके काम से करेंगे। कुछ लोग जो अब भी सांस रोक कर यह प्रतीक्षा कर रहे हैं कि बचे हुए चंद दिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोई चमत्कार कर सकते हैं, उनका तो ईश्वर ही मालिक है।

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