मोदी युग में भाजपा का प्रचार तंत्र काफी हाईटेक हो गया है | हालांकि प्रचार के केंद्र में सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी होते हैं| इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से लेकर डिजिटल माध्यम पर भी इन्हीं का वर्चस्व है|
भाजपा की आईटी सेल मोदी के प्रचार के लिए उच्चतम न्यायालय के अधिकारिक और वेबसाइट तक का इस्तेमाल करने लगा था | उच्च न्यायालय को जब इसकी भनक लगी तो सरकार और पार्टी दोनों को आड़े हाथ लिया| जानकारी है कि कोई भी सरकारी अधिकारी अपनी सरकार ईमेल से किसी को मेल करता है तो उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर के साथ ” सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास” के नारे के साथ दिखाई देता है सुप्रीम कोर्ट की अधिकारिक मेल आईडी के फुटर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर और इसी नारे का इस्तेमाल किया जा रहा था| जिसको लेकर कोर्ट ने एनआईसी (नेशनल इनफॉर्मेटिक सेंटर) से आपत्ति दर्ज कराई थी | कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों की ईमेल में सुप्रीम कोर्ट की इमारत की फोटो का इस्तेमाल होना चाहिए | दूसरे प्रकार की तस्वीर से न्यायपालिका के कामकाज का कोई संबंध नहीं है इसे तत्काल प्रभाव से हटाया जाए| जिसके बाद इसको हटा दिया गया |
इसी तरह की एनएचआरसी (राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग) में भी दिखाई दी | जिसको लेकर एनएचआरसी के बड़े अधिकारी ने आपत्ति दर्ज कराई है| उन्होंने कहा है कि एनएचआरसी के भेजे गए आधिकारिक मेल में सरकार के नारे के साथ पीएम मोदी की तस्वीर जा रही है इससे आयोग की स्वतंत्रता के बारे में लोगों की राय प्रभावित होती है अधिकारियों ने बताया कि हम इस बात से अनजान थे कि हमारे मंच का इस्तेमाल नेशनल इनफॉर्मेटिक्स सेंटर प्रचार के लिए हो रहा है इससे पहले कोरोना वायरस का टीका लगाने के बाद भी लोगों को मिलने वाले सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की लगी तस्वीर को लेकर विवाद हुआ था | बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान भी इस पर विवाद हुआ था | कई सामाजिक कार्यकर्ता ने इस प्रकार के फोटो पर आपत्ति दर्ज कराकर वैक्सीन नहीं लगवाने का फैसला लिया हैं | अन्य किसी देशों में राजनीतिक व्यक्ति की तस्वीर नहीं है जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर चमनलाल ने अभी तक वैक्सीन नहीं ली सिर्फ इसलिए कि इसमें मोदी जी की तस्वीर है उनका कहना है कि उनकी तस्वीर की जगह किसी स्वास्थ्य अधिकारी के साइन होने चाहिए |