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मोदी का टूटता तिलिस्म, सिकुड़ता साम्राज्य

बशीर बद्र का एक शेर है ‘मैं ये मानता हूं मेरे दिए तेरी आंधियों ने बुझा दिए, मगर एक जुगनू हवाओं में अभी रोशनी का इमाम है।’ नरेंद्र मोदी की आंधी ने कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के तमाम दिए बुझा डाले थे। लेकिन 2019 जाते-जाते इन दलों को नया उत्साह तो भाजपा खेमे में भारी बेचैनी और निराशा दे गया। झारखण्ड में मिली करारी पराजय एवं महाराष्ट्र में हाथ आई सत्ता का फिसलना अमित शाह की चाणक्य सरीखी छवि को प्रभावित कर चुका है। 2017 में देश के 71 प्रतिशत भूभाग पर शासन करने वाली भाजपा 2019 के अंत में मात्र 40 प्रतिशत पर जा सिमटी है

वर्ष 1980 में जन्मी भाजपा का असल भाग्योदय नरेंद्र मोदी और अमित शाह के युग में हुआ। 1984 में मात्र दो संसदीय सीटों का सफर मोदी की करिश्माई छवि और शाह की कुशल रणनीति एवं सांगठनिक क्षमता के चलते 2019 में 303 तक जा पहुंचा। 2014 में देशभर में चला मोदी का जादू अकेले अपने दम पर भाजपा की केंद्र में सरकार बनाने में सफल रहा था। इसके बाद एक-एक कर राज्यों में भाजपा की सरकारें बनने लगी और कांग्रेस का तेजी से सफाया होते गया। 2017 आते-आते भाजपा की 21 राज्यों में सरकार की हिस्सेदारी बन चुकी थी।

आंकड़ों की बात करें तो देश में 71 प्रतिशत आबादी पर भाजपा का शासन हो गया था। यह चरम की स्थिति थी। इसके बाद मोदी के जादू का असर कम होने लगा। 2018 के अंत में भाजपा हिंदी बेल्ट के तीन महत्वपूर्ण राज्यों से हाथ धो बैठी। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस ने अपनी सरकार बना मोदी मैजिक को तगड़ा झटका दिया। 2017 में 71 प्रतिशत आबादी पर राज कर रही भाजपा का साम्राज्य 2018 के अंत में 51 प्रतिशत पर आ गया। तीन महत्वपूर्ण राज्यों में सत्ता मिलने से मृतप्राय कांग्रेस में जान आती दिखी, लेकिन विपक्षी दलों के अरमानों पर पानी फेर 2019 के लोकसभा चुनाव नतीजे भाजपा को बम्पर जीत और मोदी मैजिक के बने रहने वाले साबित हुए। विपक्ष विशेषकर कांग्रेस पूरी तरह पस्त हो गई और पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपना इस्तीफा दे दिया। लेकिन पिक्चर अभी बाकी थी।

महाराष्ट्र और हरियाणा में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन अवश्य उभरी, नतीजे किंतु अपेक्षा अनुरूप नहीं रहे। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने जो मई, 2019 में केंद्र सरकार में गृहमंत्री बन चुके थे, हरियाणा में ‘अबकी बार पचहत्तर पार’ का नारा दिया था। हासिल केवल 40 सीटें हुई यानी 2014 से 7 कम। जोड़-तोड़कर हालांकि सरकार भाजपा ने बनाने में सफलता पाई, लेकिन वोट शेयर में भारी गिरावट के साथ। चुनाव के बाद शिव सेना संग गठबंधन टूटने के चलते महाराष्ट्र भी हाथ से निकल गया। 2019 के अंत में भाजपा का साम्राज्य 2017 के 71 प्रतिशत भूभाग पर सरकार होने से सिकुड़ कर दिसंबर 2019 में मात्र 40 प्रतिशत रह गया है।

यह निश्चित ही पार्टी के लिए खतरे की घंटी है। नागरिकता कानून में संशोधन के बाद देश भर में तनाव बढ़ा है। असम समेत पूर्वोत्तर के राज्यों में इस संशोधन का भारी असर रहना तय है जो वहां पार्टी के जनाधार को कम करने का सबसे बड़ा कारण बन सकता है। 2020 में दिल्ली और उसके बाद साल के अंत में बिहार में चुनाव होने हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की वापसी को लेकर सभी राजनीतिक विश्लेषक सहमत नजर आ रहे हैं। भले ही ‘आप’ 67 सीटों का आंकड़ा इस बार न छू सके, सत्ता में वापसी पूरे आसार हैं बिहार में भाजपा की जद (यू) के साथ गठबंधन सरकार है। यहां मामला फंस सकता है क्योंकि नीतीश कुमार एनआरसी के मुद्दे पर ढुलमुल रवैया अपना रहे हैं। यदि परिस्थितियां अनुकूल नहीं हुई तो नीतीश कुमार भाजपा संग गठबंधन तोड़ भी सकते है।

2021 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी में चुनाव होने हैं। इनमें से मात्र असम में भाजपा की सरकार है। वर्तमान में भाजपा से नाराज असम की जनता का आक्रोश इन चुनावों में उसकी सत्ता गंवाने का कारण बन सकता है। हालिया संपन्न झारखण्ड चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद अमित शाह की रणनीति और कार्यशैली पर भी भाजपा के भीतर और बाहर प्रश्न उठने लगे हैं। पार्टी आलाकमान का अति आत्मविश्वास यहां आजसू से गठबंधन टूटने का कारण बना जिससे पार्टी को नुकसान हुआ। भाजपा के इस दौरान कई गठबंधन साथी छिटके हैं। आंध्र प्रदेश में तेलगू देशम से अलगाव हुआ, जम्मू- कश्मीर में पीडीपी संग, महाराष्ट्र में शिवसेना और झारखण्ड में आसजू एनडीए से अलग हो चुकी है। बड़े राज्यों के नाम पर मात्र उत्तर प्रदेश और कर्नाटक ही भाजपा के पास रह गए हैं। बाकी सभी 14 राज्य छोटे राज्यों की श्रेणी में आते हैं।

हालांकि यह कहना अभी जायज नहीं कि मोदी का जादू पूरी तरह से समाप्त हो गया है, इतना लेकिन तय है कि 2014 में कालाधन, रोजगार के प्रचुर अवसर, तीन ट्रिलियन इकानॉमी, बुलेट ट्रेनों का जाल, स्मार्ट सिटी आदि 2019 तक आते-आते जुमले बन कर रह गए हैं। नोटबंदी और जीएसटी ने व्यापार की कमर तोड़ने और देश की अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुंचाने का काम कर डाला है। इस सबका असर विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार के रूप में सामने है। इससे यह निर्ष्कष निकलता है कि मोदी का जादू अब उतारा की तरफ है और अमित शाह की चाणक्य नीति का असर कम हो रहा है। दिल्ली चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा के भीतर से गुजरात की इस जोड़ी के खिलाफ स्वर बुलंद होने और नागपुर से भी इनके नेतृत्व को चुनौती देने की कवायद शुरू हो सकती है। हालांकि मोदी-शाह के राजनीतिक कौशल को कमतर आंकना भूल होगी। हो सकता है इनके तरकश से कोई ऐसा बाण बाकी हो जो 2024 आते- आते एक बार फिर मोदी के जादू को परवान चढ़ा दे।

बिछडे़ सभी बारी-बारी

नरेंद्र मोदी के 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी द्वारा भाजपा की स्वीकार्यता बढ़ाने और पार्टी की पैन इंड़िया उपस्थिति के उद्देश्य से बनाया गया एनडीए गठबंधन तेजी से छिटका है। 2014 से अब तक 18 दल एनडीए का साथ छोड़ चुके हैं। इनमें शिवसेना, असमगण परिषद, एमडीएमके, पीडीपी, पीएमके, हिंदुस्तान अवाम मोर्चा, नागा पीपुल्स फ्रंट, गोरखा जन मुक्ति मोर्चा, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, तेलगु देशम पार्टी, हरियाणा जनहित कांग्रेस आदि शामिल हैं।

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