देश में इन दिनों आजादी के अमृत महोत्स्व के तहत हर घर तिरंगे का अभियान जोरों पर है। जिसे लेकर राजनीति भी हो रही है लेकिन देश की आन-बान-शान कहे जाने वाले राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को ऊंचाई पर लहराते हुए देख ही देशवासियों के भीतर देश प्रेम की भावना जग उठती है और तिरंगे के प्रति एक अपनत्व और सम्मान का भाव उमड़ने लगता है। तिरंगे को केसरी और हरे रंग के बीच सफ़ेद पट्टी में नीले रंग के 24 तीलियों वाले अशोक चक्र लिए हुए हम आज जिस रूप में देखते हैं ये हमेसा से ऐसा नहीं था। समय- समय पर इसके रूप, आकर और नियमों में कई परिवर्तन हुए हैं। खास बात यह है कि तिरंगे का हर एक रंग कुछ ना कुछ कहता है। तिरंगे का सबसे ऊपरी रंग केसरिया साहस और बलिदान का प्रतीक, हरा रंग सम्पन्नता का प्रतीक और सफ़ेद रंग शांति और सच्चाई का प्रतीक है।
तिरंगे के स्वरुप में बदलाव
सबसे पहले तिरंगे की परिकल्पना पिंगली वेंकैया ने की थी जो एक सच्चे देशभक्त और कृषि वैज्ञानिक थे। उन्होंने कांग्रेस अधिवेशन में सबसे पहले भारत का अपना ध्वज होने की बात रखी जो महात्मा गाँधी को बहुत पसंद आई और उन्होंने भारत के ध्वज की परिकल्पना का कार्यभार पिंगली को सौंप दिया। उन्होंने वर्ष 1916 से 1921 तक विश्व भर के विभिन्न ध्वजों का शोध किया। इसके बाद वर्ष 1921 में हुए कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने तिरंगे के डिजाइन को पेश किया जो लाल और हरे रंग दो रंगों का था। जिसमें लाल रंग हिंदुओं का और हरा रंग मुसलामानों का प्रतीक था। गाँधी जी के सुझाव के बाद अन्य समुदायों केलिए सफेद रंग और चरखा भी जोड़ा गया था ।
इसके पहले भी ध्वज के लिए कई डिजाइन पेश किये गए थे। पहला डिजाइन 1904 में भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया गया था। जिसमें हरे , पीले और लाल रंग की पट्टियां थी और ऊपर की हरी पट्टी पर आठ कमल के फूल और नीचे की लाल पट्टी में सूरज और चाँद बनाये गए थे तो पीली पट्टी पर वंदे मातरम लिखा हुआ था।
दूसरा ध्वज 1907 में फहराया गया जो पहले ध्वज के ही सामान था बस इसकी ऊपरी पट्टी में एक कमल और सात सितारे थे। यह बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मलेन को प्रदर्शित करने के लिए किया गया था। इसके बाद 1917 में 4 लाल और 5 हरी पट्टियां थी जिसपर सप्तऋषि को प्रदर्शित करते हुए सात सितारे बनाये गए थे । बांए और कोने में यूनीओं जैक था और दूसरे कोने में अर्धचंद्र और सितारा भी था। जिसके बाद अंत में 1921 में पिंगली ने अपना ध्वज पेश किया। आखिर में वर्ष 1931 में उस ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए प्रस्ताव पारित किया गया और इसे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्यता प्रदान कर दी गई।
वर्ष 1947 में जब देश आजाद हुआ तो इसी ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार कर लिया गया लेकिन चरखे के स्थान अब अशोक चक्र को दे दिया गया । वर्तमान में यही ध्वज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है जिसे तिरंगा कहा जाता है।
आजादी के बाद फिर वर्ष 1968 में तिरंगे के निर्माण कार्य में एक संसोधन किया गया जिसमें सभी तिरंगे खादी के सिल्क या कॉटन से बनाए जाने थे । इसके अनुसार खादी के कपडे ही तिरंगे के लिए उपयुक्त माने जाते थे। साथ ही तिरंगे का साइज भी तय किये गए । जिसके अनुसार सबसे बड़ा तिरंगा 21 फिट लम्बा और 24 फ़ीट चौड़ा होता है।
तिरंगे के प्रयोग से सम्बंधित कुछ नियम
साधारण सी दिखने वाले इस तिरंगे से सम्बंधित कई नियम हैं ,जिससे जान लेना भी आवश्यक है। ऐसा ही एक नियम झंडे को घरों व दफ्तरों आदि में 2002 में लागू किया गया। जिसके अनुसार राष्ट्रीय दिवसों अतिरिक्त अन्य दिनों भी लोग अपने घरों में तिरंगा लगा सकते हैं लेकिन तिरंगे के सम्मान को ध्यान में रखते हुए।
तिरंगे को हमेशा सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच ही फहराया जाएगा।तिरंगे को कभी जानबूझकर जमीन पर रखा जाना तिरंगे का अपमान माना जायेगा। किसी अन्य ध्वज या पताका आदि को तिरंगे से ऊँचा नहीं फहराया जाएगा ।झंडे को किसी भी व्यक्ति को सलामी देने के लिए झंडे को झुकाया नहीं जा सकता केवल सरकारी आदेश पर ही झुकाया जा सकता है बिना सरकारी आदेश के झंडे को झुका कर फहराना गैरकानूनी है। तिरंगे को कभी पानी में नहीं डुबोया जा सकता। किसी भी भवन या संस्थान आदि में झंडे को पर्दे के रूप में नहीं लगाया जाएगा। साथ ही तिरंगे को किसी भी प्रकार का नुकसान पहुंचाना जलाना आदि भी तिरंगे का अपमान माना जाता है और मैले या गंदे तिरंगे को फहराना भी अपराध माना जाता है और यदि तिरंगा खराब भी हो गया है तो उसे एकांत स्थान पर ही नष्ट करना चाहिए आदि।