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रसातल पर मनरेगा स्कीम,हजारों करोड़ का भुगतान रुका

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार लोकसभा में कहा था कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम के तहद लोग कुदाल चलाते जाएंगे और इससे कांग्रेस की 60 साल की नाकामी उजागर होती जाएँगी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले 8 वर्ष के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस की नाकामी का तो पता नहीं, मनरेगा मज़दूर ज़रूर हाशिए पर चले गए है।

 

दरअसल, ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक 4,060 करोड़ रूपए मनरेगा मज़दूरों को भुगतान नहीं हो सका है। यह बेहद चिंताजनक बात है, और यह भारत सरकार के गरीबों के प्रति उदासीन रवैये का एक जीता-जगता उदाहरण भी है। कोरोना काल के दौरान से ही मज़दूर आर्थिक समस्या का सामना कर रहे है। बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में तो और बुरा हाल है। बिहार की अधिकतर आवादी अपनी आजीविका के लिए अन्य राज्यों पर आज भी निर्भर है। हर दिन बिहार से हज़ारों मज़दूर पलायन करते है। अब मनरेगा से मिलने वाले मजदूरी का भी भुगतान नहीं हो रहा है। जिससे समस्या और विकराल हो गई है। गौरतलब है कि देश के अधिकतर ग्रामीण अबादी और मज़दूर आज भी अपनी आजीविका चलने के लिए मनरेगा जैसे योजनाओं पर निर्भर है।

‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ के मुताबिक, भारत में बेरोजगारी दर में भी बड़ी गिरावट देखने को मिल रही है।जनवरी 2022 में देश में बेरोजगारी दर गिरकर 6.57 फीसदी पर पहुंच चुकी है। यह मार्च 2021 के बाद भारत में बेरोजगारी का सबसे निचला स्तर है। शहरी क्षेत्रों में जनवरी में बेरोजगारी दर 8.16 फीसदी रही, वहीं ग्रामीण अंचल में बेरोजगारी दर अब तक के अपने सबसे कम 5.84 फीसदी पर पहुंच चुकी है। सीएमआईई के रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर में भारत की बेरोजगारी दर 7.91 फीसद थी। तब नगरीय क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 9.30 फीसद और ग्रामीण क्षेत्रों में 7.28 फीसद थी।रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के ग्रामीण क्षेत्र सबसे ज्यादा बेरोजगारी का सामना कर रहा है।इसमें सबसे ज्यादा मनरेगा मजदूर बेरोजगारी की मार झेल रहा है।

इस वित्त वर्ष में मनरेगा के लिए 73000 करोड़ का ही बजट दिया गया है, जो पिछले वर्ष के 98000 करोड़ में से 25000 करोड़ कम है। वर्ष 2020 में जब देश में आर्थिक संकट कोरोना महामारी के कारण चरम पर था और रोजगार की कमी थी तब मनरेगा के तहद एक लाख करोड़ के बजट और नियमित काम मिलने के कारण ही ग्रामीण मजदूर इतने बड़ी महामारी को झेल सकें थें। तब लगभग देश के 11 करोड़ ग्रामीण मजदूरों का सहारा मनरेगा ही बना था।

क्या है मनरेगा

महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम(मनरेगा) के तहत सरकार को अधिक से अधिक बेरोजगार आबादी का रोजगार सृजन करने के लिए प्रतिबद्ध है। मनरेगा के नियम के अनुसार एक श्रमिक को वर्ष में 100 दिन का रोजगार देने के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन इस समय देश के अधिकतर राज्यों में केंद्र से आर्थिक मदद सही समय पर नहीं मिलने के कारण कमी आई है।

मनरेगा के अन्तर्गत भुगतान ना दिए जाने को लेकर सरकार पर निशाना साधते हुए कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि ‘केंद्र सरकार कहती है कि मनरेगा के लिए पैसे की कमी नहीं है, लेकिन अब मनरेगा के तहत लोगों को तय अवधी तक काम नहीं मिल रहा है। गरीबों और मजदूरों को नुकसान हो रहा है। 2021 में लोगों को औसतन 11.66 दिन का ही काम मिल सका है।’

लंबित भुगतान पर करवाई क्यों नहीं हुई ?

भुगतान को लेकर कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट में सामाजिक संस्था स्वराज अभियान की तरफ से एक याचिका दायर की गई है। इस याचिका में दावा किया गया है कि देश के ज्यादातर राज्यों में श्रमिकों के लंबित भुगतान को नकारात्मक राशी के साथ 30 दिनों के भीतर मजदूरों को दिया जाए। साथ ही साथ 26 राज्यों के कुल बकाया 9682 करोड़ की राशी को भी राज्यों को केंद्र की ओर से जारी किया जाए। इस याचिका की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना की खंडपीठ में शुरू हो रही है।

सामाजिक संस्था ‘स्वराज अभियान’के ओर से याचिका में 100 दिन के अलावा लाभार्थियों को 50 दिन का अतिरिक्त काम मुहैया कराने की भी मांग की गई है।

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