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मिशन 377 : फतह हुआ किसान आंदोलन 

14 सितंबर 2020 का दिन था, जब कृषि कानून बिल लोकसभा में पेश किया गया। यह बिल 17 सितंबर 2020 को पास हो गया। इसके बाद देशभर में किसानों के द्वारा विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए गए। इसके बाद 27 सितंबर 2020 को दोनों सदनों से पास बिलों पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हस्ताक्षर कर कानून पर अंतिम मोहर लगा दी थी। इसके बाद देश में आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020, कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून 2020 अस्तित्व में आ गया।
किसान आंदोलन के 377 दिन बहुत ही उठापटक के रहे । इस आंदोलन को मिशन 370 दिन का नाम भी दिया जा रहा है। इस दौरान कई घटनाएं ऐसी घटी जिनसे न केवल कानून व्यवस्था बल्कि सरकार भी हिलती नजर आई । लखीमपुर खीरी कांड में चार लोगों की मौत हुई तो आंदोलन के दौरान पूरे देश में करीब 700 लोग इस आंदोलन की भेंट चढ़ गए । इन 377 दिनों के दौरान राकेश टिकैत देश के बड़े किसान नेता के रूप में स्थापित हुए। यही नहीं बल्कि देश में किसान आंदोलन आंदोलनकारियों की एक नजीर बना। तीन कृषि बिल संसद के दोनों सदनों में पास होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस मुद्दे पर बैकफुट पर आना ही किसानों की सबसे बड़ी जीत रही। यही नहीं बल्कि सरकार ने तीनों कृषि बिल जिस तरह से संसद के दोनों सदनों से पास कराए थे उसी तरह कानून वापसी का प्रस्ताव पास कराया गया ।
सबसे पहले किसानों के प्रति लचीलापन प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की तरफ से हुआ। मोदी ने 19 नवंबर को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया था।  इसके बाद 21 नवंबर को अपनी 6 मांगों के साथ एक चिट्ठी केन्द सरकार को लिखी गई। दो सप्ताह तक उस पर कोई जवाब नहीं आया। लेकिन 7 दिसंबर के दिन सरकार की ओर से एक प्रस्ताव आया था। जिसमें किसान नेताओं की तरफ से सरकार को कुछ बदलाव बताए थे। उसके बाद 8 दिसंबर को केंद्र सरकार की तरफ से फिर एक प्रस्ताव आया और आज केंद्र सरकार के कृषि सचिव संजय अग्रवाल की ओर से चिट्ठी आई ।  जिसके बाद किसानों ने आंदोलन को स्थगित करने का फैसला लिया है।
फिलहाल केंद्र सरकार ने किसानों की छह मांग मान ली है। जिसमें मृतक किसानों के परिजनों को मुआवजा देने के साथ ही किसानों पर दर्ज किए गए सभी के केस वापस लिए जाएंगे। इसके साथ ही रेलवे की तरफ से भी दर्ज केस वापस होंगे । पराली के मुद्दे पर भी केंद्र सरकार ने किसानों के पक्ष में फैसला किया है। जिसमें पराली जलाने पर किसानों के खिलाफ कानून की धारा 15 में जुर्माने का प्रावधान खत्म करना और पराली को लेकर किसानों पर हुए केस वापस लिए जाने का फैसला किया गया है। इसके अलावा केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी और उनके पुत्र पर लखीमपुर खीरी कांड के मामले में एक जांच कमेटी का गठन कर दिया गया है। जबकि किसानों की सबसे प्रमुख मांग एमएसपी पर संयुक्त किसान मोर्चा की 5 सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया गया है। इस कमेटी में पंजाब से बलवीर राजेवाल, उत्तर प्रदेश से युद्धवीर सिंह, मध्य प्रदेश से शिवकुमार, महाराष्ट्र से अशोक धावले और हरियाणा से गुरनाम चढूनी का नाम प्रमुख है। यह 5 सदस्यीय कमेटी केंद्र सरकार को एमएसपी पर 3 महीने में सुझाव बनाकर देगी। जिस पर केंद्र सरकार विचार करने के बाद अमल करेगी।
किसानों ने अपना आंदोलन कल से खत्म करने का ऐलान किया है। भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि वह आंदोलन आज से ही खत्म कर देते।  लेकिन विजय दिवस नहीं मना पाते। इसलिए कल से किसान अपने अपने घरों की तरफ जाना शुरू हो जाएंगे। इके बाद 15 दिसंबर को एक समीक्षा बैठक होगी। जिसमें यह समीक्षा की जाएगी की किसान आंदोलन के दौरान क्या खोया गया और क्या पाया गया ।
इस दौरान देश में क्या-क्या हुआ इस पर एक नजर –
यह पहली बार था जब पंजाब और हरियाणा के किसान घरों से निकलकर किसानों के विरोध में सड़क पर आ गए थे। यही नहीं बल्कि धरना प्रदर्शन हो रहे थे। इस दौरान जेल भरो आंदोलन से लेकर अन्नदाता जागरण अभियान शुरू किए गए।
2 अक्तूबर के बाद पंजाब हरियाणा के अलावा अन्य राज्यों में फैला आंदोलन- 
कृषि बिल कानून के विरोध में सबसे पहले पंजाब और उसके बाद हरियाणा के किसान सामने आए थे। लेकिन धीरे-धीरे यह आंदोलन दूसरे राज्यों में भी अपनी जड़ जमाने लगा। पंजाब और राजस्थान सरकार ने बकायदा विधानसभा में कृषि कानूनों का विरोध किया। इसके बाद कृषि बिल कानून पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलावा कई प्रदेशों में जड़े जमा गया।
5 नवंबर को हुआ भारत बंद- 
कृषि बिल कानूनों के विरोध में पहली बार इस दिन भारत बंद का आह्वान किया गया । जिसमें देश के दर्जनों किसान संगठनों ने अपनी भागीदारी की। हालांकि यह भारत बंद पूरे देश में तो सफल नहीं हुआ, लेकिन पंजाब हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसका व्यापक असर देखने को मिला।
संयुक्त किसान  मोर्चा का गठन, पहली बैठक 7 नवंबर को – 
भारत बंद के आह्वान के बाद देश के किसान संगठन केंद्र सरकार के खिलाफ लामबंद होने लगे । दर्जनों किसान संगठन एकजुट हो गए। इसी दौरान संयुक्त किसान मोर्चा का गठन किया गया। जिसकी बैठक पहली बार दिल्ली में 7 नवंबर को की गई। इस दौरान संयुक्त मोर्चा के किसानों की 9 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया।
किसानों का दिल्ली कूच –
24 नवंबर को पंजाब के किसान संगठनों ने दिल्ली कूच शुरू किया तो वही दूसरी तरफ 25 नवंबर को हरियाणा के किसान अपने-अपने घरों से दिल्ली की ओर बड़ी तादात में निकल पड़े। इस दौरान किसानों ने अपने ट्रैक्टरों में राशन पानी के साथ ही ठंड आदि से बचने के लिए कंबल और रजाईया ले रखी थी। बहुत से किसान तो अपने परिवारों के साथ ही दिल्ली कूच पर निकल पड़े। इसके बाद 26 नवंबर को दिल्ली हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलावा कई प्रदेशों के किसान दिल्ली की सीमाओं पर आ डटे। इसी दिन से किसानों ने दिल्ली बॉर्डर पर करीब 6 जगह तंबू गाड़ दिए।
26 नवंबर 2020 से शुरू हुआ दिल्ली बॉर्डर पर धरना –
24 सितंबर से ही कृषि बिल कानून के विरोध में पंजाब के साथ ही हरियाणा में जगह-जगह रेल रोकी गई। यही नहीं बल्कि कई जगह तंबू गाडकर रेलवे ट्रैक और हाईवे पर डेरा डाला गया। किसान संगठनों में हाईवे पर लगे टोल फ्री करना शुरू कर दिए थे। इसके बाद 26 नवंबर से किसानों ने दिल्ली में आकर डेरा डाल दिया। दिल्ली के टिकरी बॉर्डर से लेकर सिद्धू बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर किसान तंबू गाडकर बैठ गए। हालांकि दिल्ली कई  बॉर्डर पर किसानों ने धरना प्रदर्शन किया। जिनमें अंतिम समय तक तीन बॉर्डर पर किसान जमे रहे।
सरकार से हुई 11 दौर की वार्ता- 
इस दौरान केंद्र सरकार और किसानों के बीच रस्साकशी चलती रही। केंद्र सरकार ने किसानों को समझाने के काफी प्रयास किए। लेकिन किसान तीनों कानून वापस करने पर अड़े रहे। इस दौरान सरकार और किसानों के प्रतिनिधियों के बीच 11 दौर की वार्ता हुई। बावजूद इसके कानून वापसी पर पेच फंसा ही रहा।
11 जनवरी सुप्रीम कोर्ट का कानून पर रोक लगाने का आदेश –
किसानों को इस आंदोलन में पहली बार बल उस समय मिला जब इस दिन सर्वोच्च न्यायालय ने तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगाने का आदेश जारी किया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एक 4 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया। जिसमें अशोक गुलाटी, डॉ प्रमोद जोशी, अनिल धनवत तथा भूपिंदर मान को शामिल किया गया। हालांकि बात में भूपेंद्र मान ने अपने आप को इस कमेटी से अलग कर लिया।
26 जनवरी की किसान रैली और लाल किले पर हिंसा – 
26 जनवरी के दिन एक तरफ जहां देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले से जनता को संबोधित कर रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ किसान हजारों ट्रैक्टरों के साथ दिल्ली में प्रवेश कर रहे थे। इस दौरान दिल्ली पुलिस ने किसानों और उनके ट्रैक्टरों को रोकने की बहुत कोशिशें की। जिसमें बहुत से किसान लाल किले तक पहुंचने में कामयाब हो गए। लाल किले पर पुलिस और किसानों के बीच जमकर हिंसा हुई । जिसमें खूब लाठी डंडे चले। यहां तक कि लाल किले की प्राचीर पर झंडा फहरा दिया गया। झंडा फहराने में दीप सिद्धू नामक एक कलाकार का नाम आया। लाल किले पर फहराए गए झंडे को खालिस्तानी समर्थकों का उपद्रव प्रचारित किया गया।
लाल किला हिंसा के बाद एकबारगी लगा कि आंदोलन  खत्म हो गया –
26 जनवरी को लाल किले पर हुई हिंसा के बाद किसान आंदोलन कमजोर पड़ता दिखाई दिया। दिल्ली पुलिस ने बहुत से किसानों के ट्रैक्टर जब्त कर लिए। इस दौरान एक किसान की मौत हुई। तब किसानों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए। आंदोलनकारियों पर खालिस्तानी समर्थकों के आरोप लगे। इसके बाद बाहरी प्रदेशों के अधिकतर किसान दिल्ली से लौटने लगे। तब एक बार यह लगने लगा कि किसान आंदोलन खत्म होने वाला है।
28 जनवरी की रात टिकेत के आंसुओ ने पलट दिया पासा
– यह 28 जनवरी की रात थी, जब दिल्ली के कई बॉर्डर से अधिकतर किसान अपने अपने घरों को लौटना शुरू हो गए थे । किसान आंदोलन खत्म करने की अनौपचारिक घोषणा की जा चुकी थी। यहां तक की भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने यह घोषणा कर दी थी कि यूपी बॉर्डर पर बैठे किसान जल्द ही वहां से घरों की तरफ चल रहे है। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत गाजीपुर बॉर्डर से अपना बोरिया बिस्तर समेटने की तैयारी कर ही रहे थे। इसी दौरान बताया गया कि लोनी के भाजपा विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने अपने साथियों के साथ आकर राकेश टिकैत और किसानों को धमकाया। जिससे राकेश टिकैत भावुक हो गए और मीडिया के सामने रोने लगे। राकेश टिकैत के आंसुओ ने हारी बाजी को जीतने का काम किया। उनके आसुओं से जनसैलाब बह निकला। रातो रात लोग घरों से निकलकर गाजीपुर बॉर्डर की तरफ बढ़ने लगे । सुबह तक गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों का भारी हुजूम इकट्ठा हो गया। यहीं से एक बार फिर किसान आंदोलन ने यू-टर्न ले लिया और राकेश टिकैत देश के किसान नेता के रूप में स्थापित हो गए।
किसानों ने बंगाल विधानसभा चुनाव में किया भाजपा का विरोध –
किसान नेताओं ने अपनी घोषणा के अनुसार पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा का जमकर विरोध किया। जिसमें भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के साथ कई किसान नेताओं ने पश्चिम बंगाल में भाजपा की किसान विरोधी नीतियों को जनता के बीच उजागर किया । 2 मई को विधानसभा के चुनाव में भाजपा की हार सामने आई। पश्चिमी बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार बनी।
3 अक्तूबर का लखीमपुर खीरी कांड- 
इस दिन उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के लखीमपुर दौरे से पहले किसानों ने प्रदर्शन किया। इस दौरान भड़की हिंसा में आठ लोग मारे गए थे। किसानों का आरोप था कि घटना में केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे ने एक एसयूवी से चार किसानों को कुचल दिया जो तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। बाद में गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने कथित तौर पर भाजपा के दो कार्यकर्ताओं और एक चालक को पीट-पीटकर मार डाला। इस हिंसा में एक स्थानीय पत्रकार की भी जान चली गई। इस मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा और अन्य के खिलाफ हत्या की धारा में मुकदमा दर्ज किया गया ।
किसानों के समर्थन में आए मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक –
 सतपाल मलिक को मेघालय के राज्यपाल के रूप में कम जाना गया जबकि वह किसानों के पक्ष में बयान जारी करने के मामले में चर्चा में अधिक रहे। वह समय-समय पर केंद्र की भाजपा सरकार को किसानों के आंदोलन को लेकर सचेत करते रहे। यहां तक कि उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी का कोई भी नेता किसानों की मर्जी के बिना घुस भी नहीं पाएगा।

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