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दिल्ली महिला आयोग की टीम ने एक अगस्त को पुलिस के साथ मिलकर पहाड़गंज इलाके के एक होटल से 39 नेपाली लड़कियों का रेस्क्यू किया। हफ्ते भर में आयोग का यह तीसरा ऑपरेशन था। इन तीन ऑपरेशन में कुल 73 लड़कियों को छुड़ाया गया है। अंतरराष्ट्रीय वेश्यावृति रैकेट इन लड़कियों को नेपाल से यहां वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेलने के लिए लाया था। वसंत विहार पुलिस थाना क्षेत्र से 18 महिलाओं को छुड़ाया गया। इनमें 16 महिलाएं नेपाल की थीं। ये महिलाएं कई दिनों से बंद कमरे में कैद थीं।
पुलिस के मुताबिक इन महिलाओं को पिछले कुछ दिनों से घर में बंद रखा गया था। उन्हें जल्द ही तस्करी के जरिए खाड़ी देशों में भेजा जाने वाला था। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि नेपाली महिलाओं को नौकरियों का झांसा दिया गया और उन्हें पहले उत्तर प्रदेश के वाराणसी लाया गया। जुलाई के पहले हफ्ते में दो नेपाली महिलाएं तस्करी करने वालों के चंगुल से भागने में कामयाब रहीं। उन्होंने नेपाल में पुलिस को इसके बारे में बताया। जिसके बाद नेपाल पुलिस ने नेपाल दूतावास से संपर्क किया।
दूतावास की सूचना के आधार पर वाराणसी पुलिस ने पिछले हफ्ते वाराणसी में एक दर्जन ठिकानों पर छापेमारी की। वहां गिरफ्तार एक शख्स के बयान पर ही दिल्ली में छापेमारी की गई। छुड़ाई गई महिलाओं की उम्र 18 से 30 साल के बीच है। नेपाली महिलाओं में अधिकतर वर्ष 2015 में आए भूकंप प्रभावित क्षेत्र से हैं। उस भयंकर भूकंप में लाखों लोगों का सब कुछ बर्बाद हो गया था। जिसके बाद इस तरह की खबरें लगातार आईं कि भूकंप प्रभावित क्षेत्रों की लड़कियों की तस्करी कर उन्हें वेश्यावृति में धकेला जा रहा है।
नशीली दवाओं और हथियारों के कारोबार के बाद मानव तस्करी विश्व भर में तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है। दुनिया भर में 80 प्रतिशत से ज्यादा मानव तस्करी यौन शोषण के लिए की जाती है। बाकी बंधुआ मजदूरी के लिए। भारत को एशिया में मानव तस्करी का गढ़ माना जाता है। महानगर से लेकर ग्रामीण स्तर पर मानव तस्करों के जाल फैले हुए हैं। इस जाल के तार विश्व स्तर पर भी जुड़े हुए हैं। भारत के साथ-साथ विश्व स्तर पर लचर कानून ने इस अपराध को खतरनाक स्तर तक पनपने का मौका दिया है। सरकार के आंकड़ों के अनुसार अपने देश में हर 8 मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। सन् 2011 में लगभग 35,000 बच्चों की गुमशुदगी दर्ज हुई थी। इसके अलावा यह माना जाता है कि कुल मामलों में से केवल 30 प्रतिशत मामले ही रिपार्ट किए गए और वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है।
संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के द्वारा मानव तस्करी पर जारी एक ताजा रिपोर्ट से पता चलता है कि सन् 2012 में तमिलनाडु में मानव तस्करी के 528 मामले थे। यह वास्तव में एक बड़ा आंकड़ा है और पश्चिम बंगाल, जहां यह आंकड़ा 549 था, को छोड़कर किसी भी अन्य राज्य की तुलना में सबसे अधिक है। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार चार सालों में कर्नाटक में मानव तस्करी के 1379 मामले रिपोर्ट हुए, तमिलनाडु में 2244 जबकि आंध्र प्रदेश में मानव तस्करी के 2157 मामले थे। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के नए आंकड़ों के अनुसार ट्रैफिकिंग में यह दूसरा सबसे बड़ा अपराध है, जो पिछले 10 सालों में 14 गुणा बढ़ा है और वर्ष 2014 में 65 फीसदी तक बढ़ा है।
यह संख्या दुनिया भर में सबसे अधिक है। हालांकि भारत के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मानव तस्करी की समस्या को बेहद कम करके आंका गया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो में 2014 में महज 5,466 मामले ही दर्ज हुए हैं। भारत में साल 2016 के दौरान तकरीबन 20 हजार महिलाएं और बच्चे मानव तस्करी का शिकार हुए। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने सदन में बताया कि 2016 में तस्करी के 19,223 मामले दर्ज किए गए जो साल 2015 में 15,448 थे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ये मामले साल 2015 की तुलना में 25 फीसदी बढ़े हैं।
सिर्फ भारत में ही नहीं यूरोपीय देशों में भी मानव तस्करी बड़ी समस्या है। यूरोपीय सुरक्षा और सहयोग संगठन ओईसीई के मुताबिक हर साल मध्य और पूर्वी यूरोप से सवा लाख से पांच लाख के बीच महिलाओं की तस्करी पश्चिमी यूरोप में की जाती है और इन्हें देह व्यापार में धकेला जाता है। इनमें से अधिकतर लड़कियां बालिग नहीं होती।
ट्रैफिकिंग की पीड़ित लड़कियों या महिलाओं का पुनर्वास बहुत ही संवदेनशील मुद्दा होता है। चूंकि पीड़ित न सिर्फ शारीरिक, बल्कि मानसिक शोषण और प्रताड़ना से गुजरती हैं। इसके अलावा उन्हें ढेरों यौन संक्रमण भी हो जाते हैं। सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि परिवार भी इन्हें अपनाने से कतराते हैं, क्योंकि इसे वे समाज में बदनामी से जोड़कर देखते हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा जरूरत इस बात की होती है कि पीड़ित को सुरक्षा मिले। मानसिक रूप से भी उसे सामान्य किया जाए। उसे बेहतर भविष्य की ओर आशान्वित किया जाए। तब कहीं जाकर पूरी तरह से कामयाबी मिल पाएगी।
  • ह्यूमन ट्रैफिकिंग में लड़कियां और महिलाएं सबसे अधिक निशाने पर रहती हैं। यह पिछले दस सालों में देशभर के ह्यूमन ट्रैफिकिंग केसेज का 76 फीसदी है।

  • विदेशों से लड़कियों को खरीदना और वेश्यावृत्ति के लिए लड़कियों की खरीद-फरोख्त करने जैसे मामले ह्यूमन ट्रैफिकिंग के अंतर्गत ही रजिस्टर होते हैं।

  • भारत में ह्यूमन ट्रैफिकिंग का जाल लगभग हर राज्य में फैला हुआ है। इसमें तमिलनाडु 9701 केसेज के साथ सबसे ऊपर है। उसके बाद 5861 केसेज के साथ आंध्र प्रदेश, 5443 केसेज के साथ कर्नाटक, 4190 केसेज के साथ पश्चिम बंगाल और 3628 केसेज के साथ महाराष्ट्र का नंबर आता है।

  • ये 5 राज्य ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मुख्य स्रोत और गढ़ भी हैं। ह्यूमन ट्रैफिकिंग के रिपोर्टेड केसेज में 70 फीसदी इन्हीं राज्यों से हैं।

  • यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु से युवा लड़कियों की तस्करी मुंबई और दिल्ली के रेड लाइट इलाकों में होती है।

  • पिछले कुछ समय से तमिलनाडु में इस तरह के मामलों की कमी देखी गई है। पश्चिम बंगाल में ये बढ़ रहे हैं।

  • वर्ष 2009 से लेकर 2014 के बीच ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मामलों में 92 फीसदी बढ़ोतरी हुई है।

  • बात अगर सजा की जाए तो पिछले 5 सालों में ह्यूमन ट्रैफिकिंग के फाइल्ड केसेज में 23 फीसदी में दोष सिद्ध हुआ।

  • इस मामले में लगभग 45,375 लोगों की गिरफ्तारी हुई और 10,134 लोगों को दोषी करार दिया गया।

  • पिछले 5 सालों में आंध्र प्रदेश में सर्वाधिक गिरफ्तारियां लगभग 7450 हुईं। महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर आता है। उसके बाद कर्नाटक, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल हैं।

‘सरकार है दोषी’
गैर सरकारी संगठन प्रज्वल्ला की संस्थापक सुनिता कृष्णन से बातचीत
 
मानव तस्करी की बढ़ती संख्या के पीछे क्या कारण है?
इसका मुख्य कारण गरीबी है। मानव तस्कर दूर-दराज के गांवों में ऐसे परिवारों को अपना निशाना बनाते हैं, जो बेहद गरीब हैं। कुछ मामले में तस्कर गरीब परिवार को थोड़ा पैसा देकर लड़की को खरीद लेते हैं। कहीं शादी करने के नाम पर लड़कियों को लाया जाता है। कई बार नौकरी दिलाने के नाम पर। मतलब किसी न किसी बहाने पहले उसे परिवार से अलग कर दिया जाता है। उसके बाद छोटे शहरों से होते हुए मैट्रो सिटी में लाया जाता है। यहां उसे वेश्यावृति या दूसरे देशों में बेच दिया जाता है। गरीबी के अलावा बढ़ता शहरीकरण और कम समय में ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना भी कारण है।
क्या इसके लिए सिर्फ सरकार दोषी है?
सौ फीसदी। सरकार और उसकी व्यवस्था दोषी है। अमीर और गरीब की खाई किसने बढ़ाई है। सरकार को इस पर सख्त कदम उठाने चाहिए। सख्त कानून बनाने चाहिए। ताकि मानव तस्करी को रोका जा सके।
मानव तस्करी को कैसे रोका जा सकता है?
इसके लिए गरीब परिवार के स्तर को उठाना होगा। उन्हें मदद करनी होगी। ताकि वे मुख्यधारा में शामिल हो सकें। गरीबों को आर्थिक मदद करनी होगी। लड़कियों को परिवार का भार नहीं, बल्कि गर्व समझना होगा।
‘बड़े लोग इसके पीछे’
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल से बातचीत
आपने एक हफ्ते में करीब 73 महिलाओं का रेस्क्यू किया। इतनी बड़ी तादाद में मानव तस्करी का क्या कारण मानती हैं?
 दिल्ली में जिन लड़कियों को बचाया गया, उनमें से ज्यादातर नेपाल की हैं। कुछ पश्चिम बंगाल और झारखण्ड की थीं। नेपाल के भूकंप में सबकुछ गंवाने वाली लड़कियों को नौकरी का झांसा देकर यहां लाया जा रहा है। यहां लाकर उन्हें नौकरी के नाम पर दूसरे देशों में बेच दिया जाता है। कुछ को दिल्ली या अन्य महानगरों में वेश्यावृति में धकेल दिया जाता है। पश्चिम बंगाल और झारखण्ड की लड़कियां भी गरीब परिवार से हैं। इन्हें भी नौकरी का झांसा देकर यहां लाया गया था।
महिला आयोग की सक्रियता के पीछे क्या कारण है?
इस तरह के क्राइम पर रोक लगाने का काम दिल्ली पुलिस का है। दिल्ली पुलिस इस पर अंकुश लगाने के बजाए, इनके पनाहगार जैसा व्यवहार कर रही है। जब महिला आयोग को इन लड़कियों को बारे में पता चल जाता है तो स्थानीय पुलिस को क्यों नहीं पता चलता है। पुलिस को सब कुछ पता होता है। मगर किसी वजह से कार्यवाही नहीं करती है। किसके दबाव में कार्यवाही नहीं की, यह दिल्ली पुलिस को बताना होगा। दिल्ली पुलिस की गुप्तचर एजेंसी क्या कर रही थी। मैदानगढ़ी में जिस फ्लैट से 16 लड़कियां पकड़ी गई वहां के पड़ोसियों ने बताया कि इस घर में हमेशा लड़कियों को रखा जाता था। फिर भी पुलिस को भनक न लगना विश्वसनीय नहीं है।
आप क्या कहना चाहती हैं कि इनके पीछे किन्हीं बड़े  लोगों का हाथ है, जिस कारण पुलिस कार्यवाही नहीं कर रही?
बड़े लोगों के संरक्षण के बिना इतने बड़े स्तर पर लड़कियों की तस्करी नहीं हो सकती। इसमें दिल्ली के कई बड़े लोग शामिल हैं।
कौन लोग हैं?
यह अभी नहीं बता सकती।

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