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पोर्न का शिकार होते नाबालिग

भारत सहित पूरी दुनिया में बच्चों के खिलाफ यौन शोषण के मामले बढ़ते जा रहे हैं। आश्चर्यजनक ढंग से जब पूरी दुनिया अपने-अपने घरों में कैद (लॉकडाउन) थी, उस दौरान इस मामले में और तेजी आई। क्यों और कैसे? इसका जवाब इंटरनेट है। लॉकडाउन के समय इंटरनेट के इस्तेमाल में जबरदस्त उछाल आया। बच्चे और बड़े सभी के लिए इंटरनेट जरूरत बन गया। कई बार बच्चों को पता ही नहीं चलता और वे किसी की हवस का शिकार बन जाते हैं। पोर्न संसार में लॉकडाउन के दौरान बच्चों की इंट्री ने अब बहुत बड़े बिजनेस का रूप ले लिया है। बताया जाता है, ‘बाल यौन शोषण करोड़ों का बिजनेस हो चुका है।’ इंटरनेट से पॉपअप के जरिये दुनिया भर में पोर्न वीडियो परोसी जाती हैं। भारत के अलावा दुनिया के अलग-अलग देशों में कई गिरोह इस वीडियो को बनाने का काम करता है। फिर उसे सोशल मीडिया पर अपलोड करते हैं। यह सब पोर्न वेबसाइट यूजर को बढ़ाने और इसकी आड़ में सेक्स रैकेट भी चलाया जाता है। हालांकि भारत में बाल यौन शोषण को रोकने के लिए ‘पॉक्सो एक्ट’ है। जिसे 2019 में संशोधित कर और सख्त बनाया गया है। फिर भी मामले घटने के बजाय बढ़ ही रहे हैं।

बीते पखवाड़े सीबीआई ने ऐसे ही मामले में बड़ी कार्यवाही की है। उसने एक साथ 14 राज्यों के 77 ठिकानों पर छापेमारी की। इस छापेमारी में दस लोगों को हिरासत में लिया गया। 83 आरोपियों के खिलाफ ऑनलाइन बाल यौन शोषण से संबंधित 23 अलग-अलग मामले दर्ज किए गए। जिन राज्यों में छापेमारी की गई, वे राज्य हैं, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, तमिलनाडु, राजस्थान, महाराष्ट्र, यूपी, बिहार, उड़ीसा, गुजरात, हरियाणा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश। इंटरनेट पर पोर्न के बढ़ते कारोबार को देखते हुए सीबीआई ने दो साल पहले एक यूनिट गठित की थी। इस यूनिट को देश भर में बच्चों के साथ होने वाले ऑनलाइन यौन शोषण को रोकने का जिम्मा दिया गया। सीबीआई को कुछ ऐसे ही इंटरनल इनपुट इन राज्यों से मिल रहे थे। इसी इनपुट के आधार पर 17 नवंबर को देशभर में एक साथ छापेमारी की गई।

इंटरनेट की इस आभासी दुनिया में अच्छाई के साथ-साथ बुराइयों का भी बोलबाला है। सेक्स कहें या पोर्न की नई दुनिया ने इस आभासी माध्यम को अपने भंवर जाल में घेर लिया है। इसके शिकार सबसे ज्यादा बच्चे हो रहे हैं। जानकारी के आभाव में वे पोर्न की दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं, जिसके बाद उनका यौन शोषण होने लगता है। पिछले दिनों सीबीआई ने 14 राज्यों के 77 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की। इसमें कइयों को गिरफ्तार किया गया। इन सब पर बाल यौन शोषण का आरोप लगाया गया है

सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश से वर्ष 2016 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक 2001-16 तक भारत में 1,09,065 बच्चों ने आत्महत्या की। 1,53,701 बच्चों का यौन शोषण किया गया। 2,49,383 बच्चों का अपहरण हुआ। हाल के वर्षों में बच्चों के साथ होने वाले अपराध में और वृद्धि हुई है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार 2014 में बच्चों के साथ अपराध की कुल 89,423 घटनाएं दर्ज हुई। 2015 में यह बढ़कर 94,172 मामले हो गए, 2016 में इसमें और वृद्धि हुई। उस साल कुल 1,06,958 मामले दर्ज हुए।

2016 में बच्चों के साथ घटी कुल 1,06,958 आपराधिक घटनाओं में से 36,022 मामले पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज किए गए थे। इसमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 4,954 मामले सामने आए थे। उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र 4,815 और मध्य प्रदेश 4,717 का नंबर आता है। 2017 में बच्चों के साथ होने वाले अपराध की कुल 1,29,032 घटनाएं दर्ज की गई थी। इसमें बाल यौन शोषण के 32,559 मामले दर्ज हुए थे। 2018 में यौन शोषण के 33,356 मामले दर्ज हुए थे। 2019 में बच्चों के खिलाफ अपराध के 1,48,185 मामले दर्ज हुए थे और दुष्कर्म के कुल 32,033 मामले सामने आये थे। जब पूरे देश में लॉकडाउन लगा था तो इन आंकड़ों में बेतहाशा वृद्धि हुई। 2019 के 32,033 मामलों की तुलना में 2020 में पॉक्सो एक्ट के तहत कुल 47,223 मामले दर्ज किये गए। इसमें उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 6898 मामले दर्ज किये गए थे। महाराष्ट्र में 5687 और मध्य प्रदेश में 5648 मामले दर्ज हुए थे।

कैसे चलता है यह धंधा?
इंटरनेट पर बच्चों को अपना शिकार बनाने के लिए गेम या फिर एजुकेशन साइट का इस्तेमाल किया जाता है। जब बच्चे गेम या फिर पढ़ने के लिए संबंधित साइट में जाते हैं तो उसमें एड फ्लैश के जरिए अश्लील साइट्स के पॉपअप आ जाते हैं।
जानकारी न होने के कारण कई बार बच्चे इन साइट्स को क्लिक कर देते हैं। इसी गलती से बच्चे यौन शोषण का शिकार हो जाते हैं और उन्हें पता ही नहीं चलता है। इन पॉपअप से ऑनलाइन यौन शोषण, अश्लील संदेशों का आदान-प्रदान, पोर्नोंग्राफी के संपर्क में आना, यौन शोषण सामग्री, साइबर-धमकी तथा ऑनलाइन उत्पीड़न जैसे कई अन्य गोपनीयता- संबंधी जोखिमों का सामना बच्चों को करना पड़ता है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक अध्ययन रिपोर्ट ‘चाइल्ड एब्यूज्ड इन इंडिया’ में बताया गया है कि भारत में 53 ़22 प्रतिशत बच्चों के साथ एक या एक से ज्यादा तरह का यौन दुर्व्यवहार हुआ है। यह आंकड़े चौंकाने वाले हैं। और तो और इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 95 प्रतिशत मामलों में परिजन और परिचित ही बच्चों का अपनी यौन कुंठा की पूर्ति के लिए इस्तेमाल करते हैं। कई लोग बच्चों के खिलाफ हिंसा, शोषण और दुर्व्यवहार की रिपोर्ट देने में हिचकिचाते हैं। इस कारण यौन हिंसा का सामना करने वाले बच्चों की संख्या की जानकारी वास्तविकता से कहीं कम है। नतीजतन इन अपराधों की जांच कम हो पाती है और बहुत कम दोषियों को जिम्मेदार ठहराया जाता है।

दो वर्ष पहले जम्मू के कठुआ में नशे की दवाई देकर आठ साल की बच्ची के साथ कई दिनों तक गैंगरेप किया गया। दरिंदों ने अपनी हवस का शिकार बनाने के बाद बच्ची की गला घोंटकर हत्या कर दी। गुजरात के सूरत में भी ऐसा ही हादसा हुआ था। नौ वर्ष की बच्ची के साथ दरिंदगी की सारी हदें पार कर गई थी। इस बच्ची को लगातार आठ दिनों तक यौन उत्पीड़न कर पीट-पीटकर मार दिया गया था। दिल्ली का निर्भया कांड ने पूरे देश को झकझोर और आंदोलित कर दिया था। बाल सुधार गृह में बच्चों को सुधारने के लिए भेजा जाता है। वह भी सेफ नहीं है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां शेल्टर होम में बच्चों के दुष्कर्म के मामले सामने आये हैं। 2018 में ‘टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज’ के विंग ‘कोशिश’ ने बिहार के मुजफ्फरपुर शेल्टर होम की सोशल ऑडिट रिपोर्ट में बड़ा खुलासा किया था। इस रिपोर्ट के अनुसार मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में 40 से ज्यादा बच्चियों के यौन शोषण की बात कही गई थी। इस शेल्टर होम में नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म सहित अन्य वीभत्स घटना को अंजाम दिया जाता था। इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होते ही बवाल मच गया था। इसके बाद बिहार के ही बोधगया शेल्टर होम में भी यौन उत्पीड़न के मामले उजागर हुए थे। उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे कई अन्य राज्यों में भी होम शेल्टर से यौन उत्पीड़न के मामले सामने आये थे।

इस आधुनिक युग में इंटरनेट पर ही सेक्स के सारे धंधे चलते हैं। बच्चों के यौन उत्पीड़न के वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, वीपीएन, फाइल शेयरिंग आदि जैसे एप्लीकेशन पर शेयर होते हैं। इंटरनेट इस आभासी दुनिया का एक छोटा हिस्सा है। इसे सरफेस वेब कहते हैं। इंटरनेट की दुनिया में डार्क वेब वह कोना है, जहां कई सारे गैर कानूनी धंधे चलते हैं। इसे डीप वेब कहते हैं। डीप वेब के पेज को आम यूजर सर्च इंजन में ढूंढ़ नहीं सकते। डेटाबेस, स्टेजिंग स्तर की वेबसाइट, पेमेंट गेटवे आदि जहां हजारों वेबसाइट गुमनाम रह कर कई तरह के काले बाजार चलाती है, वहीं इन वेबसाइट विक्रेता को यह पता नहीं होता कि खरीदने वाला कौन है। और खरीदने वाले को यह पता नहीं होता कि बेचने वाला कौन है। ऐसी ही वेबसाइट पर ‘सेक्स सेल’ होता है। यह एक तरह की मानसिकता वाले लोग हैं जो मेसेजिंग ऐप्स पर सीसैम कंटैंन शेयर करते हैं। बहुत से राज्यों की पुलिस इंटरनेट की इस काली दुनिया का भंडाफोड़ करने की कोशिश भी कर रही है लेकिन इसमें कुछ हद तक केरल पुलिस को सफलता मिली है। केरल पुलिस के विशेष विंग ‘काउंटर चाइल्ड सेक्सुअल एक्सप्लॉयटेशन सेंटर’ में सॉफ्टवेयर एक्सपर्ट दोषियों के आईपी एड्रेस को ढूढ़ने में अधिकारियों की मदद कर रहा है। इस आइकोप्स (पबबवचे) को ‘इंटरनेट क्राइम्स अगेंस्ट चिल्ड्रन एंड चाइल्ड ऑनलाइन प्रोटेक्टिव सर्विसेज’ नाम दिया गया है। पिछले वर्षों से जब इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया, तब से अब तक करीब 1500 तलाशी अभियानों को अंजाम दिया जा चुका है। साढ़े तीन सौ से ज्यादा लोगों को गिफ्तार भी किया गया है।

इंटरनेट की इस आभासी दुनिया में अच्छाई


के साथ-साथ बुराइयों का भी बोलबाला है। सेक्स कहें या पोर्न की नई दुनिया ने इस आभासी माध्यम को अपने भंवर जाल में घेर लिया है। इसके शिकार सबसे ज्यादा बच्चे हो रहे हैं। जानकारी के आभाव में वे पोर्न की दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं, जिसके बाद उनका यौन शोषण होने लगता है। पिछले दिनों सीबीआई ने 14 राज्यों के 77 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की। इसमें कइयों को गिरफ्तार किया गया। इन सब पर बाल यौन शोषण का आरोप लगाया गया है

बाल यौन उत्पीड़न पर कानून यौन अपराधों से बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए 2012 में ‘पॉक्सो’ एक्ट लाया गया था। इस एक्ट में 2019 में संशोधन किया गया था। इस संशोधन से कानून को और कड़ा किया गया था। संशोधन कर दोषियों को मृत्यु-दण्ड का प्रावधान किया गया था। लेकिन इस कानून के तहत पहली एफआईआर दो साल बाद दर्ज की गई थी। 2014 में ‘पॉक्सो’ कानून के तहत 8,904 और बाल यौन शोषण के 13,766 मामले दर्ज किए गए थे। 2015 में ‘पॉक्सो’ के तहत 1493 मामले दर्ज किए गए और 2016 में 36,022 मामले ‘पॉक्सो’ और अन्य धाराओं में मामले दर्ज किए गए थे।

 

ऑनलाइन से पोर्न के शिकार होते बच्चे!
हैदराबाद की रहने वाली 13 साल की काजल (बदला हुआ नाम) एक मध्यम वर्गीय परिवार से आती है। काजल के पिता सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और माता डॉक्टर। काजल का पढ़ाई के बाद बहुत समय इंटरनेट पर ही बीतता था। काजल की 2018 में सोशल मीडिया पर एक व्यस्क महिला से दोस्ती हुई। कुछ दिनों तक ‘हाय, हल्लो’ से बातचीत हुई। कुछ दिनों बाद पर्सनल बातें भी सोशल मीडिया के जरिए होने लगी। काजल का
बॉडीशेप अच्छा नहीं है, इसका अहसास उक्त महिला ने उसे कराया। फिर महिला उसे बॉडी शेप ठीक करने का लालच देती है। काजल लाइव के जरिए फिजिकल ट्रेनिंग लेने लगती है। कुछ दिनों बाद काजल को कपड़े उतारकर प्राइवेट पार्ट से जुड़ी कुछ एक्सरसाइज करने के लिए कहा जाता है। काजल को पता ही नहीं होता कि उसका वीडियो भी बन रहा है। लगभग 4 माह बाद काजल का चचेरा भाई नेट स्क्रिन पर चाइल्ड पोर्न वीडियो देखता है। इसमें उसे अपनी बहन काजल का बेहद गंदा वीडियो दिखाई देता। तब इस बात का खुलासा हुआ। जब यह बात उसकी फैमली को पता चली तो वह बहुत बुरी तरह से डर गयी। उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया। काजल के परिवार ने कोई केस या एफआईआर दर्ज करने से साफ मना कर दिया।

दूसरा मामला नोएडा के रहने वाले अक्षय (बदला हुआ नाम) का है। इसकी उम्र मात्र 8 वर्ष है। वह अपने दोस्तों के साथ इंटरनेट पर काफी एक्टिव था। अक्षय को 2016 में सोशल मीडिया पर एक शख्स से दोस्ती हो गयी। कुछ दिनों बाद अचानक उसने अक्षय को प्राइवेट पार्ट की फोटो भेजना शुरू कर दिया। अक्षय ने भी उसको अपने प्राइवेट पार्ट की फोटो भेजी। बाद में उस शख्स ने अक्षय को बैल्कमेल करना शुरू कर दिया। उसे फोटो और वीडियो बना कर भेजने के लिए कहा। मजबूरी में अक्षय को सेक्सुअल वीडियो शूट करके देने पड़े। बाद में पेरेंट्स को इस बात का पता चला तो पुलिस में रिपोर्ट कराई गई। इंटरपोल की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2017 से 2020 के बीच भारत में ऑनलाइन चाइल्ड सेक्सुअल अब्यूज के 24 लाख मामले सामने आए हैं। शिकार बनाए गए बच्चों में 8 प्रतिशत 14 साल से कम उम्र की बच्चियां हैं।

 

आज चाइल्ड पोर्न को रोकना देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। इसे चलाने वाला रैकेट जिस तरह से नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है, वह और भी खतरनाक है। दिल्ली महिला आयोग ने खुद कई बार इस तरह के मामले को रेड डालकर पकड़ा है। इसमें कहीं -न-कहीं पुलिस के असहयोग का भी मसला है। सरकार और पुलिस इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। सबको मिलकर इस पर काम करना होगा।
स्वाति मालीवाल, अध्यक्ष दिल्ली महिला आयोग

 

चाइल्ड पोर्न रैकेट को खत्म करने के लिए कारगर कानून के साथ राजनीतिक, सामाजिक और तकनीक को मिलकर काम करना होगा। यह एक देश से संभव नहीं है। इसके लिए सभी बड़े देशों को एक साथ आना चाहिए। इस अपराध को परिभाषित करने और इसे अपने राष्ट्रीय दंड संहिता में शामिल करना चाहिए। अपने देश में हमलोगों ने बाल यौन शोषण के खिलाफ जागरूक करने के लिए देशव्यापी ‘भारत यात्रा’ का आयोजन किया था। कुछ समय पहले चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर गठित राज्यसभा की समिति ने सुझाव दिए हैं। उस सुझाव पर अमल करने से भी भारत में बच्चों के यौन शोषण को रोकने में मदद मिलेगी। बच्चों को इससे बचाने के लिए इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर और आईटी कंपनियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। हमें इन कंपनियों को जिम्मेदार और जवाबदेह बनाना होगा।
कैलाश सत्यार्थी, नोबेल पुरस्कार विजेता

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