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50 वर्ष से जल रही ‘अमर जवान ज्योति’ विपक्ष ने लगाया इतिहास से छेड़छाड़ का आरोप

भारतीय इतिहास में पिछले पांच दशकों से दिल्ली के इंडिया गेट की पहचान रही ‘अमर जवान ज्योति’ अब राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की पहचान बनेगी। 21 जनवरी को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘अमर जवान ज्योति’ विलय राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में जल रही लौ में कर दिया गया। इसके साथ ही अब इंडिया के पास एक नया बदलाव देखने मिलेगा।

 

दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की है इंडिया गेट के पास नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगाई जाएगी। इस घोषणा से पहले ही विपक्ष और मोदी सरकार के बीच इंडिया गेट पर 70 के दशक से जल रही अमर जवान ज्योति को लेकर टकराव की स्थिति पैदा हो गई। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार इतिहास को बदलने की कोशिश कर रही है। वहीं केंद्र सरकार ने विपक्ष के आरोप को नकारा। है।

इंडिया गेट के पास लगाई जाएँगी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति

 

अमर जवान ज्योति की स्थापना वर्ष 1971 में राजपथ पर इंडिया गेट के पास हुई थी। इसे पाकिस्तान के खिलाफ वर्ष 1971 के युद्ध में शहीद होने वाले लगभग 3,843 भारतीय जवानों की याद में बनाया गया था। 26 जनवरी 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसका उद्घाटन किया था।

 

‘अमर जवान ज्योति’ की 26 जनवरी 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसका उद्घाटन किया था।

क्या है पूरा मामला?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक , 21 जनवरी को ख़बरें आईं कि केंद्र सरकार अमर जवान ज्योति की लौ को पास ही में स्थित राष्ट्रीय समर स्मारक की ज्योति के साथ मिलाने का फ़ैसला किया है। ख़बर आने साथ सोशल मीडिया में वायरल। इस ख़बर ने देखते ही देखते सियासी रंग ले लिया क्योंकि अमर जवान ज्योति की स्थापना कांग्रेस सरकार के समय हुई थी और अब जिस राष्ट्रीय समर स्मारक में इसका विलय किया जा रहा है उसका निर्माण मोदी सरकार ने करवाया है। कांग्रेस के साथ ही अन्य दलों ने भी इसे लेकर मोदी सरकार पर सीधा हमला बोला और इसे बीजेपी की एक साज़िश करार दिया।

कांग्रेस पार्टी ने एक ट्वीट कर लिखा- ‘अमर जवान ज्योति को बुझाना, उन वीरों के साहस और बलिदान का अपमान है, जिन्होंने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के दो टुकड़े किए थे। वीरता के इतिहास को मिटाने की भाजपा साजिश को कोई देशभक्त बर्दाश्त नहीं करेगा। शहीदों के अपमान का मोदी सरकार का ये रवैया बहुत घृणित है।’

 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी ट्वीट कर के है कि इसे दोबारा जलाया जाएगा। इतना ही नहीं राहुल गांधी ने आगे लिखा लिखा ‘बहुत दुख की बात है कि हमारे वीर जवानों के लिए जो अमर ज्योति जलती थी, उसे आज बुझा दिया जाएगा.कुछ लोग देशप्रेम व बलिदान नहीं समझ सकते। कोई बात नहीं…हम अपने सैनिकों के लिए अमर जवान ज्योति एक बार फिर जलाएंगे’

आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने भी इसका विरोध करते हुए एक ट्वीट में लिखा, मोदी जी आप ‘न किसान के हैं न जवान के”। 1971 के भारत-पाक युद्ध में हमारे जवानों ने अपनी शहादत दी। उनकी याद में 50 वर्षों से ये “अमर जवान ज्योति” जल रही है। आप उस ज्योति को बुझाकर वीर जवानों की शहादत का अपमान कर रहे हैं। ये देश आपको माफ नहीं करेगा।

 

सरकार का क्या कहना है?

एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमर जवान ज्योति को शिफ्ट करने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि दो जगहों पर लौ का रख रखाव करना काफी मुश्किल हो रहा है। सेना के अधिकारियों का यह भी कहना है कि अब जबकि देश के शहीदों के लिये नेशनल वॉर मेमोरियल बन गया है, तो फिर ‘अमर जवान ज्योति’ पर क्यों अलग से ज्योति जलाई जाती रहे। इनके मुताबिक नेशनल वॉर मेमोरियल में सारे शहीदों के नाम हैं, शहीदों के परिवार के लोग यहां आते हैं। ऐसे में ‘अमर जवान ज्योति’ को शिफ्ट करना सही रहेगा।

केंद्र सरकार के शहरी विकास राज्य मंत्री कौशल किशोर अमर जवान ज्योति पर लिए गए फ़ैसले की पुष्टि करते हुए इसे एक उचित क़दम बताया है। कौशल किशोर ने मीडिया से कहा कि इंडिया गेट पर जो अमर जवान ज्योति जलती थी, अब वहाँ (राष्ट्रीय समर स्मारक) जलेगी जहाँ देश के तमाम लोग, चाहे वो आज़ादी का आंदोलन हो, या देश की सुरक्षा के लिए युद्ध हुआ हो, वहाँ जब ज्योति जलेगी और जब देश के लोग आएँगे, और उन लोगों के नाम पढ़ेंगे, तो एक राष्ट्र भावना जागृत होगी और मैं समझता हूँ कि ये अच्छा क़दम है।

42 मीटर ऊंचे इंडिया गेट का निर्माण ब्रिटिश सरकार ने किया था

 

गौरतलब है कि 42 मीटर ऊंचे इंडिया गेट का निर्माण ब्रिटिश सरकार ने किया था। ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1914-21 के बीच पहले विश्व युद्ध और तीसरे अफगान युद्ध में ब्रिटिश सेना की तरफ से शहीद होने वाले लगभग 84,000 भारतीय सैनिकों की याद में इसे बनाया था। इस पर उन सैनिकों के नाम भी लिखे हुए हैं। सरकार जहां इस कदम को शहीद सैनिकों को सच्ची श्रद्धांजलि के तौर पर पेश कर रही है वहीं विपक्ष इसे मोदी सरकार की इतिहास से छेड़छाड़ की एक और घटना के तौर पर देख रहा है।

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