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  •              वृंदा यादव

 

वर्ष 2016 में हुई नोटबंदी को लोग अब तक नहीं भूल पाए हैं। अब करीब सात साल बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने 2 हजार रुपए के नोटों को चलन से हटाने का फैसला लिया है। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि कहीं यह कदम आर्थिक संकट के चलते तो नहीं उठाया गया है। क्या केंद्र सरकार किसी आर्थिक संकट में है? इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं। अर्थशास्त्रियों की मानें तो यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि सरकार कहीं से भी पैसा जुटाने की मुहिम में जुटी है। भारतीय रिजर्व बैंक से उसे इस बार करीब 90 हजार करोड़ रुपए का लाभांश मिलना है तो भारत के केंद्रीय बैंक का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले कुछ समय से बहुत उतार-चढ़ाव वाला रहा है। वहीं कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि दो हजार रुपए की करेंसी का सर्कुलेशन इतना है ही नहीं कि इसके बंद होने से अर्थव्यवस्था पर असर पड़े। जिस तरह से डिजिटल ट्रांजेक्शन में बड़ा उछाल आया है उसके बाद नोटों पर लोगों की निर्भरता कम हुई है

देश के इतिहास में सबसे बड़ी नोटबंदी का एलान आठ नवंबर 2016 में किया गया था। जिसे लोग अब तक नहीं भूल पाए हैं। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि आज रात 12 बजे से 500 और 1000 रुपए के नोट वैध नहीं रहेंगे। इन नोटों को बैंकों में जमा करने के लिए 10 नवंबर से 30 दिसंबर 2016 तक की समय-सीमा तय की गई थी। इस आदेश से पूरे देश में अफरातफरी मच गई थी, बैंकों के सामने लंबी-लंबी कतारों को अभी तक देश भूला नहीं है। अब करीब सात साल बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने ऐसा ही एक आदेश जारी किया है। हालांकि इस बार केवल 2 हजार रुपए के नोटों को चलन से हटाया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि कहीं यह कदम आर्थिक संकट के चलते तो नहीं उठाया गया है। क्या केंद्र सरकार किसी आर्थिक संकट में है?

कुछ अर्थशास्त्रियों की मानें तो यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि सरकार कहीं से भी पैसा जुटाने की मुहिम में लगी हुई है। भारतीय रिजर्व बैंक से उसे इस बार करीब 90 हजार करोड़ रुपए का लाभांश मिलना है तो भारत के केंद्रीय बैंक का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले कुछ समय से बहुत उतार-चढ़ाव वाला रहा है। डॉलर की कीमत को बढ़ने से रोकने के लिए रिजर्व बैंक ने बाजार में बहुत डॉलर निकाला। इसके अलावा बढ़ते आयात बिल और अंतरराष्ट्रीय हालात की वजह से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार छह सौ अरब डॉलर से नीचे आ गया था। मई 2021 में यह 645 अरब डॉलर पहुंच गया था, जो पिछले साल गिर कर 529 पर आ गया। अब फिर यह छह सौ अरब डॉलर के करीब पहुंच गया है। इसके बावजूद भारत सरकार करीब 90 हजार करोड़ रुपए का लाभांश ले रही है। यह पिछले साल के मुकाबले तीन गुना है। वित्त वर्ष 2021-22 में रिजर्व बैंक ने करीब 30 हजार करोड़ रुपए का लाभांश दिया था। माना जा रहा है कि सरकार को किसी तरह से वित्तीय घाटा कम दिखाना है और उसे साढ़े पांच फीसदी के करीब लाना है। इसके लिए सरकार को नकदी की जरूरत है। यह भी कहा जा रहा है कि विदेश में क्रेडिट कार्ड से खर्च करने वालों पर 20 फीसदी टैक्स लगाने का फैसला भी पैसा इकट्ठा करने की मुहिम का ही हिस्सा था। हालांकि भारी विरोध के बाद इसमें बदलाव हुआ है और कहा गया है कि सात लाख से कम खर्च करने पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। दो हजार के नोट बंद करने के फैसले को भी इससे जोड़ा जा रहा है। सरकार चाहती है कि लोगों का पैसा बैंक में लौटे, इसके कई फायदे हैं। वहीं कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि दो हजार रुपए की करेंसी का सर्कुलेशन इतना है ही नहीं कि इसके बंद होने से अर्थव्यवस्था पर असर पड़े। वैसे भी नोटबंदी के बाद जिस तरह से डिजिटल ट्रांजेक्शन में बड़ा उछाल आया है उसके बाद नोटों पर लोगों की निर्भरता कम हुई है। खासकर दो हजार रुपये के नोट पर।

लेकिन दो हजार रुपए के नोट बंद होने से उन लोगों को जरूर झटका लगा है जो टैक्स बचाने के लिए या भ्रष्टाचार की कमाई को छिपाने के लिए दो हजार के नोटों को छिपाकर रखते हैं। अब ऐसा करना उनके लिए मुश्किल होने वाला है। दरअसल रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 19 मई को ‘क्लीन नोट पॉलिसी’ के तहत एक अहम फैसला लेते हुए 2 हजार रुपए के नोट वापस लेने का फैसला लिया है। यानी अब 2 हजार रुपए के नोट चलन में नहीं होंगे। भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को सलाह दी है कि वे तत्काल प्रभाव से 2 हजार रुपए के नोट ग्राहकों को देना बंद कर दें। हालांकि ये नोट तब तक वैध रहेंगे जब तक आरबीआई ये नहीं कह देता कि इस तारीख के बाद ये अवैध हो जाएंगे। आरबीआई के आदेशानुसार 2 हजार के नोटों को बैंक में जमा करने और उन्हें बदलवाने की प्रक्रिया 23 मई से शुरू हो गई है। जिसकी अंतिम तारीख 30 सितम्बर 2023 है। लोग 2 हजार रुपए के नोटों को अपने बैंक खाते में जमा कर सकते हैं और किसी भी बैंक शाखा पर उसे अन्य मूल्यवर्ग के नोटों में बदलवा सकते हैं। बैंक खातों में पैसे जमा करने की प्रक्रिया सामान्य रूप में ही जारी है। सुविधा को सुनिश्चित करने की दृष्टि से तथा बैंक शाखाओं के नियमित कार्यकलापों को बाधित किए बिना कोई भी व्यक्ति एक दिन में 2 हजार रुपए के 20 हजार तक की राशि यानी (2 हजार के 10 नोट) को बदलवा सकते हैं।

कालेधन को बढ़ावा दे रहे थे नोट
केंद्र सरकार को उम्मीद थी कि 2016 में नोटबंदी के दौरान भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा घर में जमा किए गए कम से कम 3 से 4 लाख करोड़ रुपये का काला धन बाहर आ जाएगा। इस पूरे लेन-देन में केवल 1 .3 लाख करोड़ रुपए का काला धन निकला। लेकिन अब नोटबंदी के बाद जारी 500 और 2 हजार के नए नोटों में से 9 .21 लाख करोड़ रुपए गायब हो गए हैं। आरबीआई ने 2016 से अब तक 500 रुपए और 2 हजार रुपए के कुल 6 हजार 849 करोड़ नोट छापे हैं। जिसमें से 1 हजार 680 करोड़ से ज्यादा नोट बाजार से गायब हैं। गायब हुए इन नोटों की कीमत करीब 9 .21 लाख करोड़ रुपए है। कानून के मुताबिक जिस रकम पर टैक्स नहीं चुकाया जाता, उसे काला धन माना जाता है। इस 9 .21 लाख करोड़ रुपए में लोगों के घरों में जमा हुई बचत भी शामिल हो सकती है। आरबीआई के अधिकारियों ने भी नाम न छापने की शर्त पर स्वीकार किया कि मुद्रा से लापता धन को आधिकारिक तौर पर कालाधन नहीं माना जाता है, लेकिन राशि का एक बड़ा हिस्सा काला धन होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

नोटों की छपाई पर खर्च
2 हजार के नोट के मुद्रण में छोटे नोटों की तुलना में कम खर्च आता है लेकिन इससे कालेधन में बढ़ोतरी हो सकती है। जहां 2 हजार के एक नोट छापने पर सरकार 4 रुपए 18 पैसे खर्च करती है। वहीं 500 के नोट छापने में 2 रुपये 57 पैसे और 100 के नोट छापने में एक रुपया 51 पैसे का खर्च आता है। रिपोर्टों के अनुसार पुराने 500 के नोट को छापने में 3 रुपये 9 पैसे का खर्च आता था। यानी नए वाले नोटों की तुलना में 52 पैसे अधिक खर्च होते थे। इसी तरह पुराने 1000 के नोटों के मुद्रण में 3 रुपए 54 पैसे की लागत आती थी। जो 2 हजार के नोट की छपाई से तुलना में 64 पैसे अधिक था। रिपोर्ट के अनुसार साल 2018-19 में सिर्फ साढ़े 4 करोड़ रुपये के नोट छापे गए थे। जिसके बाद 2 हजार के नोटों की छपाई बंद हो गई। जिसके हिसाब से 2 हजार के कुल 20 हजार नोट हुए और इसकी छपाई लागत हुई 83 हजार 600 रुपए।

फैसले के पीछे की वजह
आरबीआई के मुताबिक दो हजार रुपए के नोट धीरे-धीरे चलन से बाहर हो रहे थे। आरबीआई के मुताबिक 31 मार्च 2018 तक बाजार में 6 .73 लाख करोड़ रुपए के दो हजार रुपए के नोट थे जो कुल नोटों का 37 .3 प्रतिशत है। जबकि 31 मार्च 2023 तक बाजार में कुल 3 .62 लाख करोड़ रुपए के दो हजार रुपए के नोट थे जो कुल नोटों का 10 .8 प्रतिशत ही है।

क्या नोटबंदी जैसा असर होगा

नवंबर 2016 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कालेधन, भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर प्रहार करते हुए अचानक पांच सौ रुपये और एक हजार रुपए के नोट को बंद करने की घोषणा की थी तो देश में अफरा-तफरी मच गई थी। कई महीनों तक बैंकों के बाहर नोट बदलने के लिए लाइनें लगी रही थीं और आम लोगों को भारी दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा था। विश्लेषक मानते हैं कि इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी व्यापक असर हुआ। लेकिन 2000 रुपए के नोटों को प्रचलन से बाहर करने का असर नोटबंदी जैसा नहीं होगा।2000 रुपए को बाजार से वापस लेने का ऐसा असर तो नहीं होगा जैसा नोटबंदी के समय हुआ था। जो लघु उद्योग अपनी कैश जरूरतों को पूरा करने के लिए दो हजार रुपए के नोट में मुद्रा रखते हैं या जो किसान अपनी बचत को इन नोटों में रख रहे होंगे, उन्हें निश्चित रूप से दिक्कत होगी। नोटबंदी के समय बैंकों पर भार बहुत ज्यादा बढ़ गया था और बैंक कर्मियों को कई महीनों तक अतिरिक्त काम करना पड़ा था। दो हजार रुपए का नोट वापस लेने से भी बैंकों का कामकाज प्रभावित हो सकता है।

अर्थव्यवस्था पर कितना असर
सरकार अगर सौ दिनों के भीतर इन सभी नोटों को वापस लेगी तो इसका मतलब यह है कि इस दौरान दस करोड़ अतिरिक्त ट्रांजेक्शन होंगे, इससे बैंकों पर बोझ बढ़ेगा और लोगों को बैंक में अतिरिक्त समय लगेगा। दो हजार रुपये के नोट को वापस लिए जाने या इसे बंद किए जाने को लेकर पहले भी कई बार कयास लगाए जा चुके थे। इसे बंद करने की मांग भी उठती रही थी और मीडिया रिपोर्टों में भी इसके बाजार से कम होने के बारे में जानकारी आती रही थी। हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि भले ही इससे बड़ी आबादी प्रभावित न हो लेकिन इसका असर कैश की विश्वसनीयता पर पड़ सकता है। इसके अलावा ये नोट बंद होने से अर्थव्यवस्था में कैश की विश्वसनीयता भी कम होगी। लोगों के मन में यह सवाल पैदा हो सकता है कि अगर दो हजार का नोट बंद किया जा सकता है तो पांच सौ का भी बंद किया जा सकता है। कैश का इस्तेमाल भुगतान के लिए किया जाता है। इसमें भी बाधा आ सकती है। भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से खराब स्थिति में है, असंगठित क्षेत्र पिट रहा है, वह और खराब स्थिति में जा सकता है। नोट में भरोसा कम होने से ट्रांजेक्शन भी कम हो सकते हैं और इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।

पहले भी लगा है नोटों की चलन पर रोक
यह पहली बार नहीं है जब आरबीआई ने नोटों को चलन से बाहर निकाला है। इससे पहले भी आरबीआई ने कई बार ऐसा फैसला लिया है। आरबीआई ने सबसे पहले वर्ष 1946 में ऐसा किया था तब 500, 1000 और 10 हजार के नोटों को बंद किया गया था। इसके बाद वर्ष 1978 में फिर से इसी तरह का एक और फैसला लिया गया जिसमें 1 हजार, 5 हजार और 10 हजार के नोटों को चलन से बाहर निकाला गया था। फिर साल 2014 में अलग तरीके से नोटों को चलन से बाहर किया गया। जिसके तहत आरबीआई ने साल 2005 से पहले छपे हुए सभी नोटों को मार्केट से निकाल दिया था और इसके बाद, नवंबर 2016 की नोटबंदी हुई जिसमें 500 और 1000 के नोटों को अवैध करार दिया गया।

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