बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती एक बार फिर से उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण कार्ड खेलने जा रही हैं। राज्य विधानसभा चुनावों से ठीक पहले मायावती का ब्राह्मण प्रेम एक बार फिर से जगने लगा है। इस बार उन्होंने पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखने वाले नेता सतीश मिश्रा को प्रदेश भर में ब्राह्मण समाज के सम्मेलन कराने की जिम्मेदारी सौंपी ही। बकौल मायावती भाजपा राज में जनता त्राही-त्राही कर रही है, विशेषकर ब्राह्मण समाज योगी आदित्यनाथ के कुशासन से बुरी तरह त्रस्त है इसलिए उसका भाजपा से मोहभंग हो चला है। मायावती के अनुसार बसपा राज में ब्राह्मणों का न केवल सम्मान होता था बल्कि वह उनके राज में सुरक्षित भी रहते थे। अब एक बार फिर से मायावती बहुजन समाज संग ब्राह्मणों की कवायद शुरू करने जा रही हैं। इसकी शुरुआत 23 जुलाई को अयोध्या में ब्राह्मण महासम्मेलन के जरिए होगी। बसपा सुप्रीमों का सवर्ण जातियों संग लंबा टकराव भरा रिश्ता रहा है।
पार्टी के संस्थापक काशीराम ब्राह्मणों और क्षत्रियों को दलित जातियों का दुश्मन करार देते थे। 14 अप्रैल 1984 को संविधान विशेषज्ञ डॉ बीआर अंबेडकर के जन्म दिवस पर काशीराम ने बसपा की नींव रखी थी। उस दौरान पार्टी के नारे पूरी तरह सवर्ण जातियों के खिलाफ हुआ करते थे। इनमें सबसे विवादित नारा था ‘तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’। इस नारे का तब सवर्ण जातियों द्वारा भारी विरोध तो पिछड़ी जातियों में स्वागत देखने को मिलता था। काशीराम भारतीय जनमानस को बखूबी समझते थे और राजनीति में नारों के महत्व की उन्हें गहरी समझ थी। उनके द्वारा पिछड़ों और दलितों के लिए बनाए गए संगठन डीएस-फोर का नारा इसी के चलते चर्चित भी रहा और विवादित भी। नारा था ‘ठाकुर, बामन, बनिया चोर, बाकी सब है डीएस- फोर’। लेकिन तब से अब तक देश की नदियों में खासा पानी बह चुका है और बसपा का सवर्ण विरोध भी 1992 में सत्ता पाने के साथ ही तेजी से बदला है। तब भाजपा को परास्त कर सपा संग गठबंधन सरकार बनाने वाली बसपा ने नारा दिया था ‘मिले मुलायम- काशीराम, हवा हो गए जय श्रीराम’ इस नारे से लेकिन बसपा का मोह गठबंधन सरकार के गिरते ही हवा हो गया। वैचारिक स्तर पर शून्य कहलाए जाने वाली बसपा सत्ता पाने के लिए श्रीराम की पार्टी संग हो ली।
2007 में मायावती ने पहली बार ब्राह्मण-दलित गठजोड़ बनाया। इस गठजोड़ का उन्हें भारी लाभ मिला और वे बगैर किसी बैसाखी का सहारा लिए उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन गईं। इन चुनावों में बसपा ने 86 टिकट ब्राह्मणों को दिए थे। समाजवादी सत्ता में खुद को हाशिए में महसूस कर रहे ब्राह्मण समाज ने जमकर मायावती का साथ दिया। अब खबर है कि मायावती आगामी विधानसभा चुनावों में 100 टिकट ब्राह्मण उम्मीदवारों को देने की रणनीति बना चुकी हैं। योगी राज में किनारे लगाए गए ब्राह्मण समाज की नाराजगी मात्र 8 ब्राह्मण विधायकों को मंत्री बनाए जाने से लेकर ज्यादातर इन्काउंटर में ब्राह्मणों के मारे जाने को लेकर बताई जा रही है। एक आरोप योगी सरकार पर एससी- एसटी एक्ट के तहत सबसे ज्यादा मुकदमे ब्राह्मणों पर दर्ज होने का भी है। लंबे अर्से से सत्ता से बाहर मायावती को उम्मीद है कि 2007 में पहली बार लागू किया गया फॉर्मूला, 2022 में भी कामयाब हो उनकी ताजपोशी करा देगा। होगा या नहीं भविष्य के गर्भ में छिपा है।