भारत की राजनीति में उत्तर प्रदेश को बहुत महत्व दिया जाता है। कहा जाता है कि भारत के प्रधानमंत्री का फैसला उत्तर प्रदेश की लोकसभा की सीटें ही तय करती हैं। इसलिए इस प्रदेश पर पूरे देश की निगाहें होती हैं। यहां तक कि राजनीति में जातिवाद का बहुत महत्व है। एक समय था जब बहुजन समाज पार्टी का उत्तर प्रदेश में खासा प्रभाव था और दलितों की शुभचिंतक के तौर पर पहचानी जाती थी। चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी बसपा प्रमुख मायावती पिछले कुछ समय से खामोश थीं, मगर अब जब राज्य में निकाय और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं तो वह अपने पुराने नारों को लेकर सफाई देती फिर रही हैं।
दरअसल, जिन राजनीतिक नारों ने मायावती को बहुजन समाज का नेता बनाया अब वे उन नारों पर सफाई दे रही हैं। वे कह रही हैं ये नारे बसपा ने कभी दिए ही नहीं थे, बल्कि समाजवादी पार्टी ने बसपा को बदनाम करने के लिए इन नारों का प्रचार किया था। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि अगर ऐसा है तो मायावती या कांशारीम ने उस समय इन नारों का विरोध क्यों नहीं किया था? बसपा के कार्यकर्ताओं को इस तरह के नारे लगाने से रोका क्यों नहीं गया था? जाहिर है उस समय इन नारों से फायदा दिख रहा था इसलिए इन्हें अपनाया गया और अब जबकि मायावती ने अपने राजनीतिक सिद्धांतों को पूरी तरह से बदल दिया है तो वे इन नारों से पीछा छुड़ा रही हैं।
इस बीच उन्होंने तीन ट्वीट किए, जिसमें नब्बे के दशक में चर्चित हुए नारों का विरोध किया और कहा कि ये नारे सपा ने गढ़े थे, बसपा को बदनाम करने के लिए। जब मुलायम सिंह और कांशीराम ने सपा और बसपा के बीच तालमेल किया था और 1993 का चुनाव लड़ा था। तब एक नारा चर्चित हुआ था ‘मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्रीराम’। इसका जिक्र करते हुए मायावती ने ट्वीट किया कि यूपी के विकास एवं जनहित की बजाय जाति द्वेष एवं अनर्गल मुद्दों की राजनीति करना सपा का स्वभाव रहा है। इसके बाद अगले ट्वीट में उन्होंने लिखा ‘मान्यवर कांशीराम जी ने मिशनरी भावना के तहत गठबंधन बनाया था लेकिन मुलायम सिंह यादव के गठबंधन का सीएम बनने के बावजूद उनकी नीयत पाक-साफ न होकर बसपा को बदनाम करने और दलित उत्पीड़न जारी रखने की रही’। उनका तीसरा ट्वीट था, ‘इसी क्रम में अयोध्या, श्रीराम मंदिर एवं अपरकास्ट समाज आदि से संबंधित जिन नारों को प्रचारित किया गया था वे बीएसपी को बदनाम करने की सपा की शरारत और सोची-समझी साजिश थी। सपा की ऐसी हरकतों से खासकर दलित, अन्य पिछड़ों एवं मुस्लिम समाज को सावधान रहने की सख्त जरूरत है।’
गौरतलब है कि नब्बे के दशक में उच्च जातियों को लेकर बसपा का एक नारा चर्चित रहा, ‘तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार।’ अब मायावती कह रही हैं कि अपरकास्ट को लेकर नारे भी सपा ने लिखे थे। बहरहाल, मायावती ने जिस अंदाज में एक के बाद एक तीन ट्वीट करके धर्म और ऊंची जाति वालों के लिए बनाए गए नारों से पीछा छुड़ाया है उससे लग रहा है कि वे अब पूरी तरह से बैकफुट पर आकर भाजपा की लाइन पर राजनीति कर रही हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भाजपा के लिए अभी जरूरी हो गया है कि वह समाजवादी पार्टी को हिंदू विरोधी साबित करे। सपा के नेता रामचरितमानस पर बेतुके बयान देकर खुद ही यह काम कर रहे हैं। अब मायावती ने भी भाजपा की तर्ज पर सपा को निशाना बनाया है। इससे उनका बचा-खुचा मुस्लिम वोट भी हाथ से निकलेगा। दलित वोट टूट ही रहा है। सवर्ण वोट कितना मिलेगा यह कहा नहीं जा सकता।