राजस्थान में कुछ वक्त पहले तक लग रहा था कि कांग्रेस अपनी सरकार बचा लेगी। लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस के अभी और बुरे दिन आने वाले हैं। विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई अपनी याचिका को सोमवार को वापस ले लिया। इससे साफ है कि कांग्रेस को कोर्ट और राज्यपाल दोनों से ही कोई उम्मीद नहीं बची है।
विधानसभा अध्यक्ष ने न्यायालय से कहा कि 24 जुलाई को आदेश पारित किया गया था जिसमें कई मामलों को उठाया गया और हमें अपने कानूनी विकल्पों पर विचार करना होगा। दूसरी तरफ खबर है कि राज्यपाल कलराज मिश्र ने विधानसभा सत्र बुलाने के प्रस्ताव पर राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। उन्होंने पूछा है कि क्या आप विश्वास मत लाना चाहते हैं? प्रस्ताव में इसका उल्लेख नहीं है लेकिन आप मीडिया में इसके बारे में बोल रहे हैं।
राज्यपाल कलराज मिश्र ने ये भी पूछा है कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर सभी विधायकों को विधानसभा सत्र के लिए बुलाना मुश्किल होगा। क्या आप विधानसभा सत्र बुलाने पर 21 दिन का नोटिस देने पर विचार कर सकते हैं?
प्रदेश की राजनीति वैसे पहले से ही त्रिकोणीय थी पर अब बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की इंट्री ने इसे अधिक पेचीदा बना दिया है। ये बात सामने आ चुकी है कि प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की वरिष्ठ नेता वसुंधरा राजे नहीं चाहती कि अशोक गहलोत की सरकार अभी जाए। यही वजह है कि राजे किसी भी बयान से अभी तक बचती आ रही हैं। हालांकि, उन्होंने बीते हफ्ते केंद्रीय नेतृत्व के दबाव बनाने के बाद बहुत ही शॉफ्ट तरीके से बयान दिया। उसके बाद फिर से उनकी तरफ से खामोशी छा गई।
किसी से यह छिपा नहीं है कि राजस्थान में भाजपा भी दो हिस्सों में बंट हुई है। मोदी नेतृत्व और राजे धड़ा पहले ही एक-दूसरे को नहीं सुहाता। पिछले दो चुनावों में दोनों पक्षों की आपसी रार साफ देखने को मिली। दरअसल, भाजपा और संघ नेतृत्व बहुत पहले से राजे को राजस्थान की राजनीति से किनारा करना चाहती है पर विकल्प के अभाव में राजे भाजपा की अभी तक मुखिया बनी हुई हैं।
जिस प्रकार मध्य प्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान को किनारा करने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी में लाया गया है उसी प्रकार राजस्थान में राजे को किनारा करने के लिए भाजपा सचिन पायलट को पार्टी में लाने को ब्याकुल है। लेकिन राजे भलीभांति जानती हैं कि पायलट का आना उनके लिए खतरा है। यहीं वजह है कि वो गहलोत के खिलाफ खुलकर कुछ नहीं बोलतीं।
इसी बात की तरफ भाजपा के सहयोगी दल राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल ने बीते दिनों इशारा किया था। उन्होंने वसुंधरा राजे पर आरोप लगाते हुए कहा था कि महारानी राजस्थान की गहलोत सरकार को बचाने की कोशिश कर रही हैं। बेनीवाल ने एक कदम आगे बढ़कर ये भी कहा कि महारानी ने कांग्रेस के कई विधायकों को फोन किया और गहलोत का साथ देने की वकालत की।
बेनीवाल ने एक ट्वीट कर कहा था कि राजस्थान में मुख्यमंत्री गहलोत और वसुंधरा राजे का गठजोड़ जनता के सामने खुलकर आ गया है। दोनों ने मिलकर एक-दूसरे के शासन में हुए भ्रष्टाचार पर पर्दा डालते आ रहे हैं। यही वजह है कि गहलोत और पूर्व की राजे सरकार ने माथुर आयोग प्रकरण, रीको में नियम विरुद्ध सीपी कोठारी को निदेशक बनाने के साथ कई मामलों में लोकायुक्त की सिफारिशों को नकारा।
बेनीवाल ने ये भी आरोप लगाया था कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने राजस्थान कांग्रेस में अपने करीबी विधायकों से फोन पर बात कर उनसे अशोक गहलोत का साथ देने की बात कही थी। सीकर और नागौर जिले के एक एक जाट विधायक से खुद राजे ने इस मामले में बात की थी और उनसे सचिन पायलट से दूरी बनाने को कहा था।
अब मायावती ने कांग्रेस के खिलाफ जाने का फैसला किया है। बसपा ने राजस्थान उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें राज्य में छह बसपा विधायकों के कांग्रेस पार्टी के साथ विलय के खिलाफ भाजपा द्वारा याचिका दायर करने की मांग की गई है। बसपा ने कल यानी रविवार को एक व्हिप जारी किया था।
दरअसल, बसपा के सभी छह विधायकों ने बीते साल कांग्रेस का दामन थाम लिया था। अब मायावती ने कहा है कि पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए अपने सभी छह विधायकों के खिलाफ वो कोर्ट में याचिका दायर करेंगी।
बीते साल सिंतबर महीने में बसपा के सभी छह विधायकों ने स्पीकर सीपी जोशी को एक पत्र लिखा था और उन्होंने कांग्रेस में विलय को मंजूरी देने की बात कही थी। जिसे विधानसभा स्पीकर ने स्वीकार कर लिया गया था।
अब पूरा घटनाक्रम ये है कि राजस्थान में सचिन पायलट और उनके साथ 18 विधायकों के बगावत के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्यपाल को एक चिट्ठी लिखी है। उन्होंने 102 विधायकों के समर्थन होने अपने पास होने की बात कहकर विधानसभा सत्र बुलाने की मांग की है। लेकिन असल खेल ये है कि अशोक गहलोत विधानसभा सत्र बुलाकर शक्ति परीक्षण कराना चाहते हैं। पर गहलोत की तरफ राज्यपाल को दी गई चिट्ठी में फ्लोर टेस्ट का कोई जिक्र नहीं है।
ऐसा माना जा रहा है कि सत्र के दौरान ही सरकार किसी पेडिंग बिल को पास कराने के लिए व्हिप जारी कर दे। ऐसी स्थिति में सचिन पायलट और बागी विधायकों के लिए नई मुश्किल खड़ी हो जाएगी। या तो वो सरकार के पक्ष में वोट करेंगे या फिर उन्हें दल बदल कानून का सामना करना पड़ेगा।
लेकिन इन सब कयासों के बीच बसपा ने जिस तरह से इंट्री मारी है उसने कांग्रेस को फेरे में डाल दिया है। बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा है कि उनकी पार्टी एक राष्ट्रीय पार्टी है। संविधान की दसवीं अनुसूची के पैरा चार के तहत पूरे देश में हर जगह समूची पार्टी का विलय हुए बगैर राज्य स्तर पर विलय नहीं हो सकता है। अब अगर बसपा के छह विधायक पार्टी व्हिप के खिलाफ जाकर मतदान करते हैं, तो वे विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य हो जाएंगे।
कांग्रेस के सामने अब यहां ये चुनौती खड़ी हो गई है कि मुख्यमंत्री गहलोत ने जिन 102 विधायकों के समर्थन की चिट्ठी सौंपी है उसमें बसपा के छह विधायक भी शामिल हैं। 200 सदस्यों वाली राजस्थान की विधानसभा में बहुमत के लिए 101 विधायक चाहिए हैं। अगर इन बसपा के छह विधायकों को हटा दें तो कांग्रेस के पास 96 विधायकों की संख्या बचेगी।
अशोक गहलोत के लिए अब और अधिक मुश्किलें बढ़ सकती हैं। कुल मिलाकर गहलोत सरकार को अभी और कई खतरों का सामना करना है। जब कांग्रेस की सरकार बनी थी तक बसपा ने समर्थन दिया था। लेकिन आगे चलकर कांग्रेस ने मायावती के विधायकों को पार्टी में शामिल कर उन्हें धोखा दिया। अब मायावती के पास उसका बदला लेने का समय आ गया है। अगर वो पीछे हटने की कोशिश भी करें तो भाजपा कदम पीछे नहीं हटने देगी। क्योंकि सरकारी एजेंसियों पहले ही मायावती के पीछे हैं।