पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को अपने कार्यकाल में चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियां बनवाने में खर्च किया गया सरकारी धन लौटाना होगा। एक वकील की तरफ से दायर किए गए केस की सुनवाई के दौरान यह संभावित विचार आज सुप्रीम कोर्ट की तरफ से व्यक्त किए गए हैं। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सार्वजनिक धन का प्रयोग अपनी मूर्तियां बनवाने और राजनीतिक दल का प्रचार करने के लिए नहीं किया जा सकता।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ इस केस की सुनवाई कर रही थी। पीठ ने संभावित विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि मायावती को अपनी और चुनाव चिन्ह की मूर्तियां बनवाने पर खर्च हुआ सार्वजनिक धन सरकारी खजाने में वापस जमा करना होगा। इसके साथ ही पीठ ने मामले की अंतिम सुनवाई के लिए दो अप्रैल की तारीख तय की है। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि यह अभी संभावित विचार है क्योंकि मामले की सुनवाई में कुछ वक्त लगेगा। ज्ञात हो हाथरस निवासी गौरव अग्रवाल की आरटीआई के जवाब में उत्तर प्रदेश निर्माण निगम ने जानकारी दी थी कि मायावती की लखनऊ में लगी मूर्तियों पर 3.50 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। कुछ मूर्तियां डीपीएम डिजायन अहमदाबाद ने बनाईं। इन पर 322 लाख रुपये खर्च हुए। रामसुतार फाइन आर्ट वकर््स, नोएडा द्वारा तैयार मूर्ति पर 13.62 लाख रुपये खर्च हुए।
फिलहाल लोकसभा चुनाव तैयारियों के बीच मायावती के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट के फैसले को राजनीतिक नजरों से भी देखा जा रहा है। बसपाई कहते फिर रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश केन्द्र सरकार की गन्दी राजनीति का परिचायक है लेकिन ऐसे मामलों से बसपा को नुकसान के बजाए और फायदा होगा। पार्टी इस बात को प्रचारित करेगी कि किस तरह से केन्द्र की भाजपा सरकार बसपा प्रमुख को परेशान कर रही है। बसपाई कह रहे हैं कि केन्द्र सरकार की इन हरकतों की वजह से बसपा और अधिक मजबूती से खड़ी नजर आयेगी।