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मेरिटल रेप भी एक अपराध !

देश में आये दिन महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न के मामले सामने आते रहते हैं। संविधान के अनुसार अविवाहित व नाबालिक लड़कियों के साथ यौन हिंसा को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। लेकिन उन महिलाओं का क्या जो शादी के बाद अपने ही पति के द्वारा यौन हिंसा का शिकार होती हैं।

 

क्यूंकि भारतीय कानून के अनुसार शादी के बाद पति द्वारा किये गए बलात्कार यानी ”मेरिटल रेप” को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है। जिसका फैसला अब सुप्रीम कोर्ट करेगा कि मैरिटल रेप अपराध है या नहीं ! गौरतलब है कि मेरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में शामिल किये जाने की मांग कई वर्षों से की जा रही है। दिल्ली हाईकोर्ट में आईपीसी की धारा 375 (दुष्कर्म) के तहत वैवाहिक दुष्कर्म पर आपत्ति जताये जाने को लेकर संवैधानिक तौर पर चुनौती दी गई। जिसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस बात का भरोसा दिलाया है कि वह मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में लाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। साथ ही न्यायालय ने इस बात की जानकारी भी दी है कि कुछ सूचीबद्ध याचिकाओं पर सुनवाई किये जाने के बाद तीन न्यायधीशों की पीठ मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। हालांकि अभी इसके लिए कोई तारीख निर्धारित नहीं की गई है।

 

कानूनी रूप से माना जाये अपराध

 

मेरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में रखे जाने की मांग करते हुए याचिकाकर्ताओं ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत वैवाहिक दुष्कर्म को मिली छूट को संवैधानिकता रूप से चुनौती देते हुए कहा है कि यह उन विवाहित महिलाओं के खिलाफ भेदभाव है, जिनमें उनके पति ही उन्हें यौन शोषण का शिकार बनती हैं। इस मामले के पक्ष में याचिकाकर्ता की ओर से इंदिरा जयसिंह और करुणा नंदी ने सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई की मांग की थी। वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह द्वारा सुनवाई की मांग करने के बाद न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज सिन्हा की पीठ ने वैवाहिक रेप संबंधी मामलों को निपटाने का फैसला किया। इससे पहले साल 2022 में भी इसी मामले का समर्थन करते हुए कहा था कि “एक बलात्कारी, बलात्कारी ही रहता है। पीड़िता के साथ उसकी शादी होने से उसका अपराध कम नहीं होता।”

 

कानूनी इतिहास में वैवाहिक बलात्कार

 

भारत की आपराधिक संहिता को औपचारिक रूप से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के रूप में जाना जाता है. यह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के तहत 1860 में पारित किया गया था। उस समय इंग्लैंड ने ‘डॉक्ट्रिन ऑफ कॉन्वेंचर’ को लागू किया था। इसके तहत शादी के बाद एक महिला के कानूनी अधिकार और दायित्व पति के नियंत्रण में आ जाते थे. पति और पत्नी को एक इकाई के रूप में चिन्हित किया गया था और पत्नी के सभी अधिकार उसके पति के अधिकार के अंदर ही समाहित कर दिए गए थे।
इसका यह भी अर्थ हुआ कि महिलाएं अपने पति की इच्छा के विरुद्ध न तो कोई संपत्ति खरीद सकती थीं और न ही किसी तरह का अनुबंध कर सकती थी। पत्नी को अपने पति पर निर्भर माना जाता था। साथ ही तत्कालीन कानून के मुताबिक शादी के समय ही सुरक्षा और जिम्मेदारी के बदले में एक महिला हमेशा के लिए अपने पति को यौन संबंध बनाने की सहमति दे देती थी।
विशेषज्ञों के अनुसार, वैवाहिक बलात्कार की छूट उस पुराने कानून का हिस्सा है जिसकी जड़ें औपनिवेशिक शासन से जुड़ी हैं। इस मामले में अदालत में महिलाओं का पक्ष रख रही वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने पीठ से कहा कि शादी में यौन संबंधों की उम्मीद से पति अपनी पत्नी के साथ जबरन संबंध नहीं बना सकता है।
2016 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का आधिकारिक रुख था कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में शामिल करना “विवाह की संस्था को अस्थिर कर देगा और पतियों के उत्पीड़न का हथियार बन जाएगा।” हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 2015-16 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, यौन हिंसा की शिकार 83 फीसदी से अधिक (15-49 वर्ष की आयु के बीच) महिलाओं ने कहा कि उनके पति ने उनके साथ हिंसा की। वहीं, 9 फीसदी से अधिक ने कहा कि उनके पूर्व पति ने उनके साथ हिंसा की। एक ओर जहां अदालत बदलती हुई परिस्थितियों में नई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, वहीं केंद्र सरकार ने नया हलफनामा दायर कर कहा है कि वह इस मुद्दे पर ‘रचनात्मक दृष्टिकोण’ अपना रही है और विशेषज्ञों से परामर्श ले रही है। वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में लाने का विरोध कर रहे लोगों की मुख्य चिंता यह है कि इससे नया अपराध शुरू हो जाएगा। अदालत वैवाहिक बलात्कार के मामले की सुनवाई कर रही है और भारत सरकार की आधिकारिक प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही है। इसे देखते हुए कई महिलाओं को उम्मीद की एक नई किरण दिख रही है।

 

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