तमिलनाडु में लगातार छात्राओं की आत्महत्या सुर्खियों में है।26 जुलाई को 11वीं कक्षा की एक छात्रा अपने घर में फांसी के फंदे से लटकती हुई मिली। पुलिस को अभी तक मौके से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है। पुलिस मामले की अलग -अलग एंगल से जांच कर रही है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि राज्य में एक के बाद एक छात्राएं इस तरह अपने जीवन को समाप्त कर रही हैं। क्या यह पढ़ाई का दबाव है या घर में डांट-फटकार का माहौल है। या कुछ और बात है।
तमिलनाडु में 2 हफ्ते के अंदर यह चौथा मामला है जब राज्य में किसी छात्रा ने कथित तौर पर आत्महत्या की है। इससे पहले कक्षा 12वीं की तीन लड़कियां आत्महत्या कर चुकी हैं। इसमें से तीन लड़कियों की मौत गत सप्ताह के अंदर हुई है। इससे पहले राज्य में छात्रा के मौत की सबसे पहली घटना 13 जुलाई को कल्लाकुरिची से सामने आई थी। तब 12वीं कक्षा की एक छात्रा संदिग्ध परिस्थितियों में अपने स्कूल के परिसर में मृत मिली थी। उसे शिक्षकों द्वारा कथित रूप से प्रताड़ित करने का मामला सामने आया था। उसके माता-पिता ने छात्रा की मौत पर तमाम सवाल खड़े किए थे और अदालत से दखल देने की मांग की थी। 17 जुलाई को इस स्कूल में हिंसा हुई थी और तोड़फोड़ के दौरान बड़ी संख्या में दस्तावेजों को जला दिया गया था और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया था।
क्या है पूरा मामला?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ताजा घटना शिवकाशी के पास अय्यंबट्टी इलाके का है। यहां 11वीं कक्षा की छात्रा ने अपने घर पर कथित तौर से फांसी लगा ली है। छात्रा के पिता और माता एक पटाखा फैक्ट्री में दिहाड़ी मजदूर हैं। जब यह घटना हुई तब वे काम पर गए हुए थे। छात्रा ने स्कूल से लौटने के बाद यह क़दम उठाया है।इससे पहले 25 जुलाई को कुड्डालोर जिले में 12वीं कक्षा की एक छात्रा अपने घर में मृत पाई गई थी। उसने मां की डांट से परेशान होकर फांसी लगा ली थी और यह क़दम तब उठाया था जब उसके माता-पिता घर पर नहीं थे। कुड्डालोर के एसपी ए शक्ति गणेशन ने जानकारी दी थी कि घरेलू मामलों के कारण इस छात्रा ने आत्महत्या की थी। पुलिस के अनुसार छात्रा ने अपने सुसाइड नोट में लिखा है कि उसके माता – पिता चाहते थे कि वह आईएएस अधिकारी बने, लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं कर पाई, इसलिए उसने आत्महत्या जैसे कदम उठाया। 25 जुलाई को ही 12वीं कक्षा की एक और छात्रा अपने हॉस्टल के कमरे में मृत मिली थी। लड़की सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल के हॉस्टल में रहती थी। उसकी उम्र 17 साल थी और वह 12वीं में पढ़ती थी। उसके बारे में बताया गया था कि उसने आत्महत्या की है। यह घटना तिरुवल्लुर जिले में हुई थी।
इस तरह घटना को देखकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने बच्चों से आत्महत्या के विचारों से दूर रहने की अपील की थी। इसके साथ उन्होंने राज्य के लोगों से कहा कि बच्चों को कभी भी आत्महत्या के विचारों में नहीं धकेलना चाहिए।
गौरतलब है कि दुनिया भर में हर साल 70 लाख लोग आत्महत्या करते हैं। इससे कई गुना अधिक लोग आत्महत्या की कोशिश करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक,युवाओं के बीच मौत की चौथी सबसे बड़ी वजह आत्महत्या है। युवा बच्चे गरीबी , लाचारी और जीवन में कुछ नहीं कर पाने की हताशा के चलते आत्महत्या करते हैं। इसके आलावा ओर भी कई कारण है।
जानकारों के मुताबिक, किसी व्यक्ति में आत्महत्या का विचार बहुत गंभीर है, इसकी जांच ज़रूरी है और इसके लिए लोंगो को मेंटल हेल्थ काउंसलिंग हेल्पलाइन की मदद लेनी चाहिए। नहीं तो किसी डॉक्टर को दिखाना चाहिए। मानसिक विकार वाले लोग आपने अंदर आत्महत्या का ख्याल सबसे पहले आते है। जो उन्हें नुकसान पंहुचा सकते है। इसलिए जैसे लोगों का इलाज तुरंत करना ज़रूरी है। वैसे भी भारत में मानसिक स्वास्थ्य का विषय हमेशा से चर्चाओं से दूर रहा है। जागरूकता, समझ और जानकारी के अभाव में अक्सर लोग की मानसिक समस्याओं को केवल टेंशन बोलकर नजरअंदाज कर देते हैं। इतना ही नहीं लोग मानसिक स्थिति से परेशान लोगों को छिपाते है। जो नहीं करना चाहिए। ऐसे में यह रोगी के लिए शर्म, पीड़ा और अलगाव का कारण बन जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वैश्विक स्तर पर 20 फीसद बच्चें कभी न कभी मानसिक विकार का अनुभव करते हैं। भारत की बात करें तो यह संकट पढ़ाई, लड़ाई, भयानक गरीबी, भूख, हाशिए पर रह रहे समुदायों या संसाधनों की कमी से संबंधित हो, लेकिन इसका कोई निश्चित चेहरा या दायरा नहीं है। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं किवर्ष 2018 की तुलना मेंवर्ष 2019 में आत्महत्या के मामलों में 3.4 फ़ीसद बढ़ोतरी हुई।एनसीआरबी के एक ओर की रिपोर्ट के मुताबिक,यह संख्या छात्रो में भी समान रूप से बढ़ी है।वर्ष 2017 में आत्महत्या से मरने वाले विद्यार्थियों की संख्या 9,905 थी। वहीं वर्ष 2016 में यह 9,478 और वर्ष 2018 में यह संख्या बढ़कर 10,159 तक जा पहुंची थी। भले ही ये आंकड़े विचलित करने वाले हो, लेकिन समस्या की जड़ हमारी शिक्षा व्यवस्था ही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना महामारी के दौरान भारत में दुनिया के मामले में सबसे ज्यादा आत्म हत्या की है।
स्वास्थ्य सेवाएं होने के बावजूद आत्महत्या
देश में स्वास्थ्य सेवाएं होने के बाद भी छात्रों की आत्महत्या से मौत लगातार तनाव, आगे बढ़ने की होड़, अत्यधिक चिंता, आर्थिक परेशानी, जातिगत भेदभाव और यौन हिंसा जैसे मानसिक विकार पैदा करने वाले कई छिपे कारकों को दर्शाता है। बिज़नस इंसाईडर इंडिया में छपी मानव संसाधन और विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान और भारतीय प्रबंधन संस्थान में पिछले पांच वर्षों में 60 छात्रों की आत्महत्या से मौत हुई है। समाज के भीतर होने वाले सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के लिए शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली कारक है। जबकि किसी बच्चे की पहली शिक्षा घर से शुरू होती है।
इतना ही नहीं देश के बजट में सकल घरेलू उत्पाद का 2 फीसद से भी कम स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च होता है। हमने महामारी के भयानक दौऱ से भी कोई खास सबक नहीं लिया है। लचर स्वास्थ्य व्यवस्था और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही और बढ़ता सामाजिक बोझ बच्चों की परेशानियों में इजाफ़ा कर रही है। समाज बच्चों के व्यवहार की ज़िम्मेदारी कभी मां-बाप, कभी सिनेमा तो कभी दोस्तों पर मढ़ देता है। लेकिन इन सब से हटकर बच्चों का ख्याल रखना चाहिए।