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साहित्य में हमेशा मौजूद रहेंगी मन्नू भंडारी

  • मनोज चौधरी

अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य को समृद्ध करने वाली लेखिका मन्नू भंडारी 15 नवंबर को इस दुनिया से अलविदा कह गईं। उन्होंने हरियाणा के गुरुग्राम में अंतिम सांस लीं। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है। मन्नू भंडारी का जन्म 3 अप्रैल 1931 को मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के रामपुरा में हुआ था। वे वर्षों तक दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस में अध्यापिका रहीं। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रेमचंद सृजनपीठ की अध्यक्षा रहीं मन्नू भंडारी की कहानी ‘यही सच है’ पर बासु चटर्जी ने ‘रजनीगंधा’ नाम से (1974) फिल्म बनाई थी। यह फिल्म अत्यंत लोकप्रिय हुई थी और इस फिल्म 1974 की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। उन्हें हिंदी अकादमी, दिल्ली का शिखर सम्मान, भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, व्यास सम्मान और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का पुरस्कार मिला।


मन्नू भंडारी (1931-2021) हिंदी कहानी के उस ऐतिहासिक दौर से जुड़ी थीं, जिसे ‘नई कहानी’ कहा जाता है। इसमें मुख्य रूप से मोहन राकेश, राजेंद्र यादव और कमलेश्वर नाम के त्रिमूर्ति की चर्चा होती है। पर ये त्रिमूर्ति नहीं, एक चतुष्टय था और इसकी चौथी सदस्य थीं मन्नू भंडारी। मन्नू भंडारी के निधन से साहित्य जगत में जो खालीपन आया है उस खालीपन को भरना हमारे लिए आसान नहीं है। मन्नू भंडारी एक युग थीं और वह युग युगांतकारी था। मन्नू हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन हिंदी साहित्य में मन्नू हमेशा मौजूद रहेंगी। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी को ओढ़ा और बिछाया। नई कहानी आंदोलन के अग्रदूतों में से एक मन्नू भंडारी की पहचान पुरुषवादी समाज पर चोट करने वाली लेखिका के तौर पर होती है। पाठकों ने उनके लिखे में अपने आस-पास को पाया है और खुद मन्नू भंडारी ने अपने जिये को उपन्यास, कहानियों का कथानक बनाया। मन्नू भंडारी का जाना हिंदी साहित्य के ऐसे हस्ताक्षर का चला जाना है, जिनके लेखन की सरलता, सहजता और स्वाभाविकता प्रभावित करती थी और उनके चरित्र पाठकों को झकझोर देते थे।

मन्नू भंडारी ने कहानी और उपन्यास दोनों विधाओं में कलम चलाई। राजेंद्र यादव के साथ लिखा गया उनका उपन्यास ‘एक इंच मुस्कान’ पढ़े-लिखे और आधुनिकता पसंद लोगों की दुखभरी प्रेमगाथा है। विवाह टूटने की त्रासदी में घुट रहे एक बच्चे को केंद्रीय विषय बनाकर लिखे गए उनके उपन्यास ‘आपका बंटी’ को हिंदी के सफलतम उपन्यासों की कतार में रखा जाता है। आम आदमी की पीड़ा और दर्द की गहराई को उकेरने वाले उनके उपन्यास ‘महाभोज’ खूब लोकप्रिय हुआ था। आजादी के बाद देश की मुख्य लेखिकाओं में से एक थीं मन्नू भंडारी। 1950 से 1960 के बीच वह अपनी लेखनी के लिए जानी जाती थीं। नई कहानी अभियान और हिंदी साहित्यिक अभियान के समय में निर्मल वर्मा, राजेंद्र यादव, भीष्म साहनी, कमलेश्वर इत्यादि ने उन्हें इस अभियान की सबसे प्रसिद्ध लेखिका बताया था।


1950 में भारत को आजादी मिले कुछ ही साल हुए थे और उस समय भारत सामाजिक बदलाव जैसी समस्याओं से जूझ रहा था। इसीलिए इसी समय लोग नयी कहानी अभियान के चलते अपनी-अपनी राय देने लगे थे, जिनमें भंडारी भी शामिल थीं। उनके लेख हमेशा लैंगिक असमानता, वर्गीय असमानता और आर्थिक असमानता पर आधरित होते थे। ‘पाखी’ का मन्नू भंडारी पर केंद्रित यह विशेषांक इन अर्थों में पहले ही अलग और महत्वपूर्ण रहा है, क्योंकि यह अंक बताता है कि उनकी लेखकीय जीवन यात्रा कैसी रही। वे किन-किन पड़ावों से होकर गुजरी और उनका जीवन कैसा रहा। आमतौर पर भारत में हिंदी के लेखकों को उनके लेखन के एवज में जो मिलता है या मिला है, वह बहुत कम होता है। ऐसे में ‘इंडिपेंडेंट मीडिया इनिशिएटिव सोसायटी’ (पाखी जिस प्रतिष्ठान की पत्रिका है) की तरफ से मन्नू भंडारी को ‘शब्द साधक शिखर सम्मान’ दिया गया और उन केंद्रित विशेषांक के साथ ही एक डॉक्यूमेंट्री भी बनी है।

‘पाखी’ के मन्नू भंडारी पर केंद्रित विशेषांक से गुजरते हुए एक ख्याल बार-बार आता है कि यह पूर्व संपादित विशेषांकों (राजेंद्र यादव और नामवर सिंह पर केंद्रित अंकों) से बिल्कुल अलग है। यहां न तो राजेंद्र जी वाले विशेषांक की तरह आधे लोग उनकी बुराई-कमियां ढूंढ़ने में व्यस्त दिखते हैं और न ही नामवर जी वाले विशेषांक की तरह गुरु-गंभीर, अकादमिक किस्म का यशोगान ही यहां है। इन तीनों अंकों की तुलना करें तो समझ आता है कि विशेषांकों का यह गठन और गढ़न संबंधित व्यक्तित्व के अनुकूल ही होता है। मन्नू जी पर केंद्रित विशेषांक में अधिकतर सामग्री अगर सहज और संयत है तो इसे उनके व्यक्तित्व का प्रभाव माना जाना चाहिए।

मन्नू भंडारी को सोशल मीडिया पर लगातार याद किया जा रहा है। अनेक लेखक, कवि और तमाम साहित्यकारों समेत पुस्तकों के प्रकाशन भी उन्हें याद कर रहे हैं। उन्हें श्रद्धाजंलि देने का तांता अभी तक जारी है। मन्नू भंडारी जी को विनम्र श्रद्धांजलि।

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