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मणिपुर हिंसा के कारण मिजोरम में बढ़ रही शरणार्थियों की संख्या

भारत के पूर्वोत्तर में स्थित राज्य मिजोरम में शरणार्थियों की संख्या लगतार बढ़ती जा रही है। यहाँ पहले से ही म्यांमार और बांग्लादेश से भागकर आये शरणार्थी रह रहे हैं जो समस्या का विषय बने हुए थे। जो अब मणिपुर में फैली हिंसा के कारण और बढ़ने लगी है। अब तक मिजोरम में मणिपुर से भागकर करीब 8 हजार शरणार्थी आ चुके हैं।

 

इन शरणार्थियों में हिंसा का शिकार हुए मैतई और कुकी सहित नागा समुदाय के लोग शामिल हैं। कई शरणार्थियों ने मिजोरम के अलावा नागालैंड और असम राज्य में भी शरण ली है। जिन्हे फिलहाल अस्थाई शिविरों में ठहराया गया है। शरणार्थियों के लगातार गहराते इस संकट से निपटने के लिए मिजोरम सरकार द्वारा गृह मंत्री ललचामलियाना के नेतृत्व में एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया है। पडोसी देश सरकारों का कहना है की अभी तो को राज्य में फैली हिंसा के कारण शरण दे दी गई है लेकिन जितने तेजी से शरणार्थियों की संख्या बढ़ रही है, यह एक बड़ी समस्या बन सकता है।

 

क्यों फैली मणिपुर में हिंसा

 

मणिपुर में हुई हिंसा दो बड़े समुदायों मितेई और कुकी के बीच हुई जातीय हिंसा है। मणिपुर की घाटी में बसा मितेई समुदाय राज्य का बहुसंख्यक समुदाय है। वैष्णव हिंदू आस्था वाले मितेई समाज का राज्य की आबादी में 54 प्रतिशत हिस्सा है और राजनीति में दबदबा है। पूर्वोत्तर के पहाड़ी राज्यों में यही एक बड़ा हिंदू समुदाय है। जाहिर है राज्य में भाजपा का अधिकतर समर्थन मितेई समाज से है। सरकारी तौर पर इन्हें ओबीसी का दर्जा प्राप्त है। उधर मिजोरम और म्यांमार से जुड़े इलाकों में बसे कुकी आदिवासी समुदाय की संख्या केवल 15 प्रतिशत के करीब है लेकिन इम्फाल के नजदीक के कुछ पहाड़ी जिलों में इनका दबदबा है। मणिपुर के कुकी, पड़ोसी मिजोरम के लुशाई और सीमापार म्यांमार में बसे चिन सभी एक ही समाज के लोग हैं, आपसी रिश्तेदारी है। हालांकि पिछले साल चुनाव में भाजपा को कुकी बहुल क्षेत्र में भी कुछ सफलता मिली थी, लेकिन भाजपा सरकार के कई कदमों के कारण कुकी समाज से उसका और खासतौर पर मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह का छत्तीस का आंकड़ा बन गया है।
पिछले साल मणिपुर चुनाव में दोबारा सत्ता हासिल करने के बाद मुख्यमंत्री बिरेन सिंह ने दो मुद्दों पर कुकी इलाकों में सख्ती करनी शुरू की। पहला मुद्दा उस इलाके में बढ़ती हुई अफीम की खेती और ड्रग्स की समस्या से जुड़ा है। इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की चिंता वाजिब है और राज्य सरकार द्वारा कार्रवाई जरूरी थी। लेकिन मुख्यमंत्री ने अफीम के जमींदारों और ड्रग माफिया के खिलाफ मुहिम को कुकी समुदाय के खिलाफ जंग का रूप दे दिया। उन्होंने कई बार कुकी आदिवासियों को बाहरी और अप्रवासी करार देने वाले बयान दिए जिससे खुद भाजपा के कुकी विधायक भी उनसे बगावत करने पर मजबूर हो गए। दूसरा मामला उन जंगलों से जुड़ा था जिनमें कुकी समुदाय के लोग बसे हुए हैं। हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने मणिपुर में यह दावा किया कि राज्य के जंगल केंद्रीय कानून के हिसाब से चलेंगे और आरक्षित वन क्षेत्र (रिजर्व फॉरेस्ट) को खाली करवाया जाएगा। इस पर भी राज्य सरकार ने समझदारी से काम लेने के बजाय जोर-जबरदस्ती से कई गांव खाली करवाए। इससे कुकी समुदाय में यह संदेश गया कि राज्य सरकार उन्हें पुश्तैनी जमीन से बेदखल कर रही है। जिसके कारण दोनों ही समुदाय के बीच हिंसा जारी है। हिंसा के बढ़ने का एक दूसरा कारण मैतई समुदाय को दिया जाने वाला आरक्षण का फैसला भी है। इसकी प्रमुख वजह मितेई और आदिवासी समुदाय के हितों का टकराव है। दरअसल राज्य में तीन प्रमुख समुदाय हैं नागा, कुकी, और मितेई। इनमें से कुकी और नागा आदिवासी समुदाय से आते है और मितेई गैर आदिवासी समुदाय से हैं। इन दोनों समूहों के बीच वर्षों से आपसी हितों को लेकर टकराव होता आया है। मितेई समुदाय जनजाति का आरक्षण देने की मांग कर रहे हैं। जिसका पूरजोर विरोध मणिपुर का आदिवासी समुदाय कर रहा है।

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