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मणिपुर ने गहराया भाजपा का संकट

मणिपुर की घटना ने देश-दुनिया को झकझोर दिया है। दो महिलाओं के आपत्तिजनक स्थिति में वीडियो वायरल होने के बाद भाजपा का संकट गहरा गया है। सत्ता पक्ष विपक्ष के निशाने पर है। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सड़क से संसद तक सियासी माहौल गरमाया हुआ है। हर राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से महिलाओं की सुरक्षा पर सुझाव दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार को फटकार लगाई है और कहा है कि मणिपुर को ‘हीलिंग टच’ की जरूरत है

 

मणिपुर में तीन महीनों से जारी हिंसा पर 01 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि साफ है कि हालात राज्य की पुलिस के नियंत्रण के बाहर हैं और मई से जुलाई तक कानून-व्यवस्था ठप हो गई थी। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 7 अगस्त के लिए तय की और मणिपुर के डीजीपी को व्यक्तिगत रूप से पेश होकर सवालों के जवाब देने को कहा। सीबीआई को मामला सौंपने की मांग पर कोर्ट ने कहा कि एफआईआर तक दर्ज नहीं हो पा रही थी। अगर 6 हजार में से 50 एफआईआर सीबीआई को सौंप भी दिए जाएं तो बाकी 5 हजार 950 का क्या होगा। कोर्ट ने कहा कि ये बिल्कुल स्पष्ट है कि वीडियो मामले में प्राथमिकी दर्ज करने में काफी देरी हुई। ऐसा लगता है कि पुलिस ने महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाए जाने का वीडियो सामने आने के बाद उनका बयान दर्ज किया।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि हमने एक स्टेटस रिपोर्ट तैयार की है। ये तथ्यों पर है, भावनात्मक दलीलों पर नहीं है। सभी थानों को निर्देश दिया गया कि महिलाओं के प्रति अपराध के मामलों में तुरंत एफआईआर दर्ज कर तेज कार्रवाई करें। उन्होंने कहा कि 250 गिरफ्तारियां हुई हैं, लगभग 1200 को हिरासत में लिया गया है। राज्य पुलिस ने महिलाओं के यौन उत्पीड़न से जुड़े वीडियो के मामले में एक नाबालिग समेत सात लोगों को गिरफ्तार किया है।

‘सीबीआई काम नहीं कर पाएगी’
सीजेआई ने कहा कि आप कह रहे हैं कि 6 हजार 500 एफआईआर हैं, लेकिन इनमें से कितने गंभीर अपराध के हैं। उनमें तेज कार्रवाई की जरूरत है। उसी से लोगों में विश्वास कायम होगा। अगर 6 हजार 500 एफआईआर सीबीआई को दे दी गई, तो सीबीआई काम ही नहीं कर पाएगी। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हमें पहले मामलों का वर्गीकरण करना होगा तभी स्पष्टता मिलेगी। इसके लिए कुछ समय लगेगा।

सरकार ने मांगा समय
मेहता ने कहा कि 11 अगस्त तक का समय दिया जाए। 31 जुलाई को ही सुनवाई हुई थी। हमें राज्य के अधिकारियों से चर्चा का समय भी नहीं मिल पाया है। इस दौरान अटार्नी जनरल वेंकटरमनी ने कहा कि इस समय भी राज्य में गंभीर स्थिति है। कोर्ट में दूसरे पक्ष की तरफ से कही गई बातों का भी वहां असर पड़ेगा। मेहता ने कहा कि महिलाओं से अपराध के 11 मामले सीबीआई को सौंप दिए जाएं। बाकी का वर्गीकरण भी हम कोर्ट को उपलब्ध करवा देंगे। उसके आधार पर निर्णय लिया जाए।

सीजेआई ने आदेश लिखवाते हुए कहा कि हमें यह भी जानना है कि सीबीआई के बुनियादी ढांचें की सीमा क्या है, क्या वह यह जांच कर सकती है? हमें बताया गया है कि कुल 6496 एफआईआर हैं। 3 से 5 मई के बीच 150 मौतें हुईं। इसके बाद भी हिंसा होती रही। 250 लोग गिरफ्तार हुए, 1200 से अधिक हिरासत में लिए गए। 11 एफआईआर महिलाओं या बच्चों के प्रति अपराध के हैं। अभी लिस्ट को अपडेट किया जाना है।

मणिपुर के डीजीपी को पेश होने का आदेश
सीजेआई से सॉलिसीटर जनरल ने कहा है कि अब तक सीबीआई को सौंपी गई दो एफआईआर के अलावा भी 11 एफआईआर को राज्य सरकार सीबीआई को सौंपना चाहती है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा की राज्य की पुलिस की कार्रवाई धीमी और अपर्याप्त रही है। हम निर्देश देते हैं कि राज्य के डीजीपी व्यक्तिगत रूप से पेश होकर कोर्ट के सवालों का जवाब दें। सभी मामलों का वर्गीकरण कर कोर्ट में चार्ट जमा करवाया जाए।

अब 7 अगस्त को सुनवाई
सीजेआई ने आगे कहा कि ये बताया जाए कि घटना कब हुई, जीरो एफआईआर कब हुई, उसे नियमित एफआईआर में कब बदला गया, बयान कब लिए गए, गिरफ्तारी कब हुई, क्या आरोपियों को एफआईआर में नामजद किया गया। हम इसके आधार पर आगे की जांच कर आदेश देंगे। इस पर सॉलिसीटर जनरल मेहता ने कहा कि 7 अगस्त तक का समय दे दें। इससे अधिकारियों के साथ विस्तार से चर्चा करने का समय मिल जाएगा। सीजेआई ने कहा कि ठीक है, 7 अगस्त को 2 बजे सुनवाई होगी। सीजेआई ने एक सुझाव यह भी दिया कि हम हाई कोर्ट के पूर्व जजों की एक कमिटी बना सकते हैं जो हालात की समीक्षा करें, राहत और पुनर्वास पर सुझाव दें। ये सुनिश्चित करें कि गवाहों के बयान सही तरीके से हो सकें। सभी केस सीबीआई को नहीं सौंपे जा सकते। एक व्यवस्था बनानी होगी ताकि सभी मामलों की जांच हो सके।

मणिपुर पर संसद में भी गतिरोध जारी
मणिपुर में जारी हिंसा के मुद्दे पर देश के दोनों सदनों में 20 जुलाई से मानसून सत्र शुरू होने के बाद से हंगामा जारी है। भारी हंगामे के बीच विपक्ष संसद में मणिपुर पर विस्तृत चर्चा की मांग कर रहा है। इस मुद्दे पर विपक्ष पीएम मोदी के सदन में बयान और विस्तृत चर्चा की मांग पर अड़ा हुआ है। जबकि सरकार गृह मंत्री अमित शाह के जवाब के साथ अल्पकालिक चर्चा के लिए राजी है। ऐसे में संसद के दोनों सदनों में सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध की स्थिति बनी हुई है।

सरकार और विपक्ष के बीच चर्चा पर सहमति न बन पाने के कई कारण हैं जिसमें पहला कारण विपक्ष का केवल मणिपुर पर ही चर्चा करना है जबकि सरकार पश्चिम बंगाल और राजस्थान में महिलाओं की स्थिति पर भी चर्चा करना चाहती है। दूसरा कारण यह है कि विपक्ष चाहता है कि मणिपुर पर पीएम मोदी को बहस करनी चाहिए तो वहीं सरकार का कहना है कि गृह मंत्री अमित शाह बयान देंगे। असहमति की तीसरी वजह समय सीमा है विपक्ष चाहता है, कि संसद में बहस के लिए कोई समय सीमा निर्धारित न की जाए इस लिए वह सदन में नियम 267 के तहत चर्चा चाहता है। जबकि सरकार नियम 176 के तहत चर्चा के लिए तैयार है। यह नियम विशेष मुद्दे पर अल्पकालिक चर्चा की अनुमति देता है। जो ढ़ाई घंटे से अधिक नहीं हो सकती।

एक तरफ जहां मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है वहीं दूसरी ओर गतिरोध खत्म नहीं हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न तो सदन में आ रहे हैं और न ही चर्चा में शामिल होने की कोई बात कर रहे हैं। गृह मंत्री और रक्षा मंत्री जरूर सदन में आकर अपनी बात कह चुके हैं, पर वे भी नियम 267 के अंतर्गत लंबी और विस्तृत चर्चा के बारे में कोई भी आश्वासन देने से पीछे हट रहे हैं।

क्या था मामला
बीते तीन महीनों से अधिक समय से जारी जातीय हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर से एक खौफनाक और मानवता को शर्मसार करने वाला वीडियो 19 जुलाई को सामने आया था। इस वीडियो में दो महिलाओं को भीड़ द्वारा नग्न अवस्था में ले जाते हुए देखा गया था। इस घटना की गंभीरता और महिला सुरक्षा को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया था। कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए थे। इस दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा था कि हिंसा प्रभावित इलाकों में महिलाओं को समान की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। हमें बताया जाए कि इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? कोर्ट ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर सरकार ने कड़े कदम नहीं उठाए तो हम कार्रवाई करेंगे।

हम सरकार को 28 जुलाई तक का समय देते हैं। गौरतलब है कि मणिपुर में महिला उत्पीड़न मामले में दो पीड़ित महिलाओं द्वारा शीर्ष अदालत में केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ याचिका दायर की गई है जिसमें पीड़ित महिलाओं की ओर से मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले की निष्पक्ष जांच का आदेश दे। वहीं पीड़ित महिलाओं ने कोर्ट से यह भी अनुरोध किया है कि उनकी पहचान सुरक्षित रखी जाए। इस मामले को लेकर शीर्ष अदालत में सुनवाई हुई थी। इन महिलाओं की याचिका के बाद केंद्र ने कोर्ट से मामले को मणिपुर से दूसरे राज्य में ट्रांसफर करने की अपील की थी।

उच्च न्यायालय द्वारा मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में मान्यता दिए जाने के बाद से मणिपुर में भड़की जबरदस्त हिंसा में अब तक लगभग 150 लोग मारे जा चुके हैं और एक लाख से ज्यादा अपने घर-बार छोड़कर भागने पर मजबूर हो गए हैं। इस हिंसा के कारण आम लोग बहुत तकलीफें भोग रहे हैं और महिलाओं, बच्चों और विस्थापितों की हालत दयनीय है। इस स्थिति से निपटने में सरकार की विफलता के कारण देश बहुत शर्मसार हुआ है। यह हिंसा 3 मई से शुरू हुई थी जो आज तक जारी है।

सवालों में राष्ट्रीय महिला आयोग और पुलिस
महिलाओं के साथ जब भी कोई यौन हिंसा की घटना होती है तो देश का राष्ट्रीय महिला आयोग घटना पर प्रतिक्रिया दर्ज कराता है। लेकिन इस बार इस मामले पर उनकी चुप्पी ने उनकी भूमिका पर बहुत बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है।

कई रिपोर्ट्स और खबरों में बताया जा रहा है कि महिला आयोग के पास इस घटना की लिखित शिकायत यौन हिंसा की घटना के समय ही भेज दी गई थी। लेकिन राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस पर मौन ही साधे रखा। घटना के 78 दिन बाद जब मणिपुर का वीडियो आया और सुप्रीम कोर्ट ने इसमें दखल दिया तब राष्ट्रीय महिला आयोग भी इस मामले को स्वतः संज्ञान में लेने का दावा कर रही है। ये बात भी अब संज्ञान में आ गई है कि उनके पास इस घटना की लिखित शिकायत ये वीडियो सामने आने के 38 दिन पहले यानी 12 जून को ही कर दी गई थी। लेकिन इन 38 दिनों में राष्ट्रीय महिला आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की, न ही कोई प्रतिक्रिया दी। इस तरह तो ये बात साबित हो गई कि राज्य के साथ राष्ट्रीय महिला आयोग भी इसपर कुछ नहीं करना चाहता। यह शिकायत आयोग को दो मणिपुरी महिलाओं और मणिपुर आदिवासी संघ द्वारा दी गई थी। शिकायतकर्ताओं ने दोनों सर्वाइवर्स से बात की थी और फिर आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा को ईमेल भेजा था।

इस पूरे प्रकरण में मणिपुर पुलिस की भूमिका भी बेहद संदिग्ध रही है। घटना के अनुसार, पुरुषों की भीड़ महिलाओं को पुलिस कस्टडी से लेकर गई थी। लगभग दो हजार पुरुषों की भीड़ में दो निर्वस्त्र महिलाओं के साथ हिंसा का वह दृश्य महज कुछ पल का नहीं था, एक लंबे समय की घटना थी लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।

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