केंद्रीय सुरक्षा बलों को असीमित अधिकारों से लैस करने वाला कानून ‘आर्म्ड फोर्स स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट’ एक बार फिर से मणिपुर में लागू कर दिया गया है। 2004 में इस कानून से त्रस्त मणिपुरी महिलाओं ने असम राइफल्स के खिलाफ राजधानी इम्फाल में नग्न प्रदर्शन कर इस कानून की खिलाफत की थी। वर्तमान में राज्य में एक बार फिर से कानून-व्यवस्था बद्तर होने लगी है। प्रदेश में भाजपा की सरकार है जिसके मुखिया एन. बीरेन सिंह बीते दो वर्षों से प्रदेश में भड़क रहे जातीय तनाव को रोक पाने में पूरी तरह से विफल रहे हैं
पूर्वाेत्तर राज्य मणिपुर में पिछले साल भड़की हिंसा अभी तक थमी नहीं है। प्रदेश में 13 नवंबर के दिन एक बार फिर उग्रवादियों ने प्रदेश के जिरीबाम इलाके में एक तीन बच्चों की मां के साथ बेहद बर्बर तरीके से पहले बलात्कार किया फिर उसे जिंदा जलाकर मार डाला। इस जघन्य अपराध ने न केवल प्रदेश, बल्कि देश को भी झकझोर दिया है। इससे ठीक दो दिन पहले 11 नवंबर को सैनिकों की वर्दी पहनकर आए उग्रवादियों ने एक पुलिस थाने और निकटवर्ती सीआरपीएफ शिविर पर अंधाधुंध फायरिंग की। सुरक्षाबलों की जवाबी कार्रवाई में 11 संदिग्ध उग्रवादी मारे गए। इस एनकाउंटर के अगले दिन यानी 12 नवंबर को सशस्त्र उग्रवादियों ने जिले से महिलाओं और बच्चों सहित छह नागरिकों को अगवा कर लिया और इसके दो दिन बाद अगवा किए गए सभी की लाशें मिलीं। इस घटना के बाद से इलाके में तनाव बढ़ गया है।
उग्रवादियों की बढ़ती गतिविधियों के कारण न केवल महिलाएं, बल्कि हर नागरिक को खतरे का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय लोग यह महसूस कर रहे हैं कि पुलिस और राज्य सरकार की ओर से हिंसा और अपराधों पर नियंत्रण पाने में कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। इस घटना ने मणिपुर में कानून-व्यवस्था की स्थिति को बेहद कमजोर कर दिया है। हालात बिगड़ते देख केंद्र सरकार ने राज्य के पांच जिलों में फिर से आर्म्ड फोर्स स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट (अफस्पा) लागू कर दिया है। ऐसे में सुरक्षा और कानून व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या इतनी लंबी अवधि में मणिपुर के सुलगते हालात को संभालने की कोई गंभीर कोशिश नहीं हुई है? क्या मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की सरकार की तमाम नाकामियों के बावजूद उन्हें केंद्र का संरक्षण मिला रहा है? क्या इस राज्य पर किसी का नियंत्रण नहीं है? क्या प्रदेश और देश में भाजपा नीत सरकार मणिपुर में हो रहे जघन्य अपराधों और हिंसा का समाधान करने में नाकाम साबित हो रही है? क्या इसीलिए प्रदेश के पांच जिलों में फिर से अफस्पा यानी आर्म्ड फोर्स स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट लागू किया गया है? ऐसे तमाम सवाल इन दिनों देश की राजनीति से लेकर आम जनता के मन में उठ रहे हैं।
पूर्वाेत्तर क्षेत्र के विषय की जानकारी रखने वालों कहना है कि मणिपुर में हफ्ते भर के भीतर जैसी हिंसा हुई है उससे भविष्य के लिए गहरी आशंकाएं पैदा होती हैं। यही कारण है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 5,000 कर्मियों वाली 50 अतिरिक्त सीएपीएफ कंपनियों को राज्य में भेजा और पांच जिलों में फिर से अफस्फा कानून लागू कर दिया है। इससे स्पष्ट है कि भाजपा के हाथों से मणिपुर फिसलने लगा है। यह तब है जब लोकसभा चुनाव 2024 में राज्य की दोनों सीटों पर सत्ताधारी दल को पराजित कर जनता ने जो संदेश दिया उससे भी भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने सुनने या समझने का प्रयास नहीं किया। इससे धारणा बनी है कि मणिपुर के ताजा हालात सिर्फ प्रशासनिक नाकामी और अकुशलता का परिणाम नहीं हैं। आशंका जताई जा रही है कि इसके पीछे अवांछित राजनीति की भूमिका भी हो सकती है। इसके हानिकारक परिणाम सबके सामने हैं। उधर स्थितियां और भी खतरनाक मोड़ लेती दिख रही हैं।
जानकार कहते हैं कि मणिपुर की समस्या बेहद जटिल है जिसके मूल में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पहलू शामिल हैं। मणिपुर कई सवालों से झूझ रहा है जिनके उत्तर तलाशे बगैर यहां स्थाई शांति स्थापित हो पाना संभव नहीं है। खासकर तीन समुदायों, मैतई, कुकी और नागा के बीच अपनी सांस्कृतिक पहचान को लेकर चल रहे संघर्ष का समाधान होना अति आवशयक है। ये समुदाय अपनी पहचान के साथ- साथ आर्थिक संसाधनों के लिए भी संघर्षरत रहते आए हैं। वहीं इन समुदायों के मध्य आर्थिक असमानता एक बड़ा कारण है। ऐसे में सवाल उठता है कि कैसे सभी समुदायों के लिए आर्थिक अवसरों का समान वितरण किया जाए? मैतई समुदाय यहां का आर्थिक रूप से मजबूत समाज है तो नागा और कुकी समाज आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। ऐसी स्थिति में इन सवालों का हल ही मणिपुर की सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति को बेहतर समझने और स्थाई समाधान का एक मात्र मार्ग है। जब तक आर्थिक समानता के अवसर, भूमि अधिकार पर स्पष्ट नीति और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने की छटपटाहट को समझते हुए सभी पक्षों से संवाद कर सर्वमान्य हल नहीं तलाशा जाएगा, मणिपुर उबलता रहेगा और सवाल सुलगते रहेंगे।
गौरतलब है कि मणिपुर आज से लगभग दो साल पूर्व तब देश और विदेशों तक में चर्चा का विषय बना था जब राज्य की हाईकोर्ट के एक आदेश बाद यहां की दो प्रमुख जनजातियों में भारी संघर्ष छिड़ गया था। 27 मार्च, 2023 को दिए गए इस आदेश में हाईकोर्ट ने मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने संबंधी मांग पर सरकार को जल्दी फैसला लेने का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट के इस आदेश चलते मैतई और कुकी जनजातियों के मध्य भारी हिंसा शुरू हो गई थी जिसमें 200 से अधिक मारे गए हजारों की संख्या में लोग बेघर हुए और करोड़ों की सार्वजनिक संपत्ति खाक में मिला दी गई थी। अब एक बार फिर मणिपुर के जिरीबाम जिले में बीते 11 नवंबर को सैनिकों की वर्दी पहनकर आए उग्रवादियों ने एक पुलिस थाने और निकटवर्ती सीआरपीएफ शिविर पर अंधाधुंध फायरिंग की है। सुरक्षाबलों की जवाबी कार्रवाई में 11 संदिग्ध उग्रवादी मारे जा चुके हैं। इस एनकाउंटर के अगले दिन यानी 12 नवंबर को सशस्त्र उग्रवादियों ने जिले से महिलाओं और बच्चों सहित छह नागरिकों को अगवा कर उकी हत्या कर दी। इस घटना के बाद से पूरे प्रदेश में तनाव बढ़ गया है। 7 नवंबर से शुरू हुई इस हिंसा में कम से कम 20 लोग मारे गए हैं। हालात बिगड़ते देख केंद्र सरकार ने राज्य के छह जिलों में अफस्पा लागू करने के फैसले बाद अब 13 इलाके ही अफस्पा से बाहर हैं। इससे पहले 1 अक्टूबर को मणिपुर सरकार ने इम्फाल, लाम्फल, सिटी, सिंगजमई, सेकमई, लमसांग, पटसोई, वांगोई, पोरोमपाट, हेइंगांग, लाम्लाई, इरिलबंग, लेइमाखोंग, थौबाल, बिश्नुपुर, नंबोल, मोइरंग, काकचिंग, और जिरिबाम को अफस्पा से बाहर रखा था। लेकिन इस घटना के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इम्फाल पश्चिम जिले का सेकमई और लमसांग, इम्फाल पूर्व जिले का लाम्लाई, जिरिबाम जिले का जिरिबाम, कांगपोकपी का लेइमाखोंग और बिष्णुपुर जिले का मोइरंग में फिर से अफस्पा लागू कर दिया है जो 31 मार्च 2025 तक प्रभाावी रहेगा।
क्या है अफस्पा?
आर्म्ड फोर्स स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट (अफस्पा) अधिनियम ‘अशांत क्षेत्रों’ को ‘शांत’ करने के तहत सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए केंद्रीय सशस्त्र बलों को असीमित ताकत देता है। इसे जरूरत पड़ने पर केंद्र सरकार और राज्य सरकार लागू कर सकती है। इसके तहत सुरक्षाबलों को अशांत क्षेत्र घोषित एरिया में यह अधिकार मिल जाता है कि वह कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ बिना किसी वारंट और बाधा के कार्रवाई कर सकती है। अफस्पा को सबसे पहले असम क्षेत्र में नागा विद्रोह से निपटने के लिए लागू किया गया था। इस एक्ट को केवल अशांत क्षेत्रों में लागू किया जाता है। इन जगहों पर सुरक्षाबल बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार कर सकते हैं। पूर्वाेत्तर में सुरक्षाबलों की सहूलियत के लिए 11 सितंबर 1958 को यह कानून पास किया गया था। 1989 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने पर 1990 में अफस्पा लागू कर दिया गया। अशांत क्षेत्र कौन-कौन से होंगे यह भी केंद्र सरकार ही तय करती है।
संघर्ष के कारण
दोनों समुदायों में संघर्ष के कारण मैतई समुदाय मणिपुर के घाटी क्षेत्र में बसा है। यह समुदाय खुद को आदिवासी (दलित) घोषित किए जाने की मांग करता रहा है। इस मांग को यदि स्वीकार लिया जाता है तो मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में मैतई को जमीन खरीदने के अधिकार मिल जाएंगे। कुकी समुदाय जो पहाड़ी इलाकों में वास करता है, अपने विशेष अधिकारों और पहचान की रक्षा के लिए मैतई को दलित दर्जा दिए जाने के सख्त खिलाफ है। दोनों समुदायों के मध्य भूमि का स्वामित्व तनाव की मूल वजह है। राजनीतिक दल समय-समय पर इस विवाद को अनावश्यक बयानबाजी कर सुलगाते रहे हैं। 2017 से ही यहां एनडीए गठबंधन की सरकार है जिसका नेतृत्व भाजपा नेता एन. बिरेन सिंह कर रहे हैं। मुख्यमंत्री बिरेन सिंह के प्रति मणिपुर की आम जनता में खासी नाराजगी वर्तमान में देखने को मिल रही है। कुकी समुदाय उन्हें मैतई समुदाय का समर्थक मानता है और आदिवासियों के हितों विरुद्ध काम करने का आरोप लंबे अर्से से लगाता आ रहा है। दूसरी तरफ मैतई समुदाय भी एन. बिरेन सिंह के खिलाफ अब खुलकर आरोप लगाने लगा है। यहां तक कि पिछले महीने खुद भाजपा के दर्जनभर विधायकों ने पीएम मोदी को पत्र लिखा मुख्यमंत्री बदलने की मांग की है। यही नहीं गत् दिनों प्रदेश में चल रहे संघर्ष को लेकर सीएम ने विधायकों की बैठक बुलाई जिसमें 45 में से 17 विधायकों ने हिस्सा नहीं लिया।
गौरतलब है कि वर्ष 1980 में मणिपुर में आर्म्ड फोर्स स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट लागू हो चुका था और कई सैन्य ऑपरेशन चल रहे थे। 2004 में महिलाओं की पीड़ा को व्यक्त करने के लिए मीरा पाइबी माताओं ने सेना द्वारा थंगजाम मनोरमा के बलात्कार और हत्या के खिलाफ असम राइफल्स के हेडक्वाटर्स पर निर्वस्त्र होकर जो प्रदर्शन किया था उसने देश की अंतरात्मा को झकझोर तो दिया ही था साथ ही अपनी दर्दनाक स्थिति से भी देश- दुनिया को अवगत करा दिया था। इन्हीं महिलाओं में से एक थी चानू शर्मिला इरोम। चानू द्वारा अफस्पा कानून को हटवाने के लिए 16 वर्ष भूख हड़ताल की गई थी। लेकिन आज भी महिलाएं शांति और अफ्स्पा हटाने की गुहार लगा रही हैं। क्योंकि किसी भी युद्ध का सबसे बुरा असर महिलाओं के जीवन पर ही पड़ता है।