एम्स में उन्होंने आखिरी सांस ली। उन्हें आईसीयू में रखा गया था। कोरोना से संक्रमित होने के कारण पहले उन्हें ग़ाज़ियाबाद के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बाद में हालत बिगड़ने पर एम्स ले जाया गया।
मंगलेश को इस ख़तरनाक बीमारी ने देखते-देखते उनके फेफड़ों के अलावा दिल और गुर्दों पर भी भयानक हमला बोल दिया। डॉक्टरों ने बचाने की पूरी कोशिश की लेकिन उन्हें कोरोना ने अपना शिकार डाला।
कवि के रूप में चर्चित मंगलेश डबराल लंबे समय तक जनसत्ता अखबार में कार्यरत रहे।
मंगलेश डबराल को साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका था। बता दें कि मंगलेश डबराल समकालीन हिंदी कवियों में सबसे चर्चित नाम थे। उनका जन्म 14 मई 1948 को टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड के काफलपानी गांव में हुआ था। इसके बाद, उनकी शिक्षा देहरादून में हुई।
मंगलेश डबराल की पांच काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनके नाम- पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु है। इसके अलावा, इनके दो गद्य संग्रह- लेखक की रोटी और कवि का अकेलापन भी प्रकाशित हो चुका है।