1 अप्रैल को जब देश की वित्त मंत्री द्वारा स्मॉल सेविंग्स योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती के निर्णय को वापस लिया गया तो सबको एक कहावत याद जरूर आई होगी कि दुर्घटना से देर भली। अब आप सोच रहे होंगे कि भला वित्त मंत्री के फैसले को वापस लेने से इसका क्या मतलब? क्योंकि आम लोगों का इससे भला क्या लेना-देना? लेकिन देश के पांच राज्यों में चुनाव चल रहे हैं और इससे सरकार का बहुत लेना-देना है। अचानक छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती का फैसला वापस लेने के तार जुड़े हैं वर्तमान में देश के पांच राज्यों में चल रहे चुनाव से। इस मामले पर विवाद तो गहराया और वित्त मंत्री ने अपना आदेश वापस किया तब आपके दिमाग में ये सवाल भी जरूर आया होगा कि इतनी बड़ी भूल देश की वित्त मंत्री कैसे कर सकती हैं?
माना जा रहा है कि बीजपी को पश्चिम बंगाल, असम और तीन अन्य राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों में कोई नुकसान न हो इसलिए ब्याज दरों में कटौती का निर्णय वापस लिया गया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नेशनल स्मॉल सेविंग फंड (NSSF) में सबसे अहम भूमिका बंगाल की है। यही वजह है कि सरकार ने वोटर्स की नाराजगी से खुद को बचाए रखने के लिए अपने फैसले को वापस ले लिया है।
अर्थव्यवस्था पर असमंजस में सरकार
क्या कहते हैं आंकड़ें?
आंकड़ों के मुताबिक साल 2017-18 के दौरान बंगाल के लोगों ने इन योजनाओं में 89,991 करोड़ रुपये का योगदान दिया था। ये योगदान पूरे देश के योगदान का 15.09 फीसदी था। वहीं 2016-17 में बंगाल का कुल योगदान 71,669 करोड़ रुपया था, जो कुल योगदान का 14.32 फीसदी था. 2017-18 के दौरान दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश (69,660 करोड़) जबकि तीसरे नंबर पर महाराष्ट्र (63,025 करोड़) था।
NSI इंडिया की वित्त वर्ष 2017-18 के डेटा के मुताबिक पश्चिम बंगाल का NSSF के ग्रॉस कंट्रीब्यूशन में भी अधिक योगदान है। इसमें पश्चिम बंगाल का योगदान 15.1 फीसदी है। दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश है उसका योगदान 11.7 फीसदी है। पश्चिम बंगाल का नेट कंट्रीब्यूशन में भी योगदान 13.20 फीसदी है। उत्तर प्रदेश का योगदान 9.8 फीसदी है। साथ ही स्मॉल सेविंग्स फंड में बंगाल का योगदान लगातार बढ़ ही रहा है।
नहीं संभल रही भारत की अर्थव्यवस्था…
स्मॉल सेविंग्स में निवेश करने वालों को 1 अप्रैल वाले दिन ही सरकार ने एक बड़ा झटका दिया और लोक भविष्य निधि (PPF) और NSC (राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र) समेत लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में 1.1 फीसदी तक की कटौती की थी। जबकि मात्र 12 घंटे बाद ही फैसला वापस लेने का ऐलान स्वयं वित्त मंत्री ने कर डाला। वापसी का आदेश उस दिन हुआ जब नंदीग्राम सीट पर मतदान था, जहां से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चुनाव लड़ रही हैं। सीतारमण ने ट्वीट किया था, ‘‘भारत सरकार की छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर वही रहेगी जो 2020-2021 की अंतिम तिमाही में थी, यानी जो दरें मार्च 2021 तक थीं। पहले दिया गया आदेश वापस लिया जाएगा।’’
वित्त मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, PPF पर ब्याज 0.7 फीसदी कम कर 6.4 फीसदी जबकि एनएससी पर 0.9 फीसदी कम कर 5.9 फीसदी कर दी गई थी। लघु बचत योजनाओं पर ब्याज तिमाही आधार पर अधिसूचित की जाती है। ब्याज में सर्वाधिक 1.1 फीसदी की कटौती एक साल की मियादी जमा राशि पर की गई थी। इस पर ब्याज 5.5 फीसदी से कम करके 4.4 फीसदी करने का फैसला किया गया था। छोटी बचत योजनाओं के लिए ब्याज दरों को तिमाही आधार पर अधिसूचित किया जाता है।
भारत की अर्थव्यवस्था बेहद ख़राब…
पुरानी दरें बहाल होने के बाद PPF और एनएससी पर 7.1 फीसदी और 6.8 फीसदी की दर से वार्षिक ब्याज मिलता रहेगा। इस तरह सुकन्या समृद्धि योजना के लिए 7.6 फीसदी ब्याज मिलता रहेगा, जबकि पहले इसे घटाकर 6.9 फीसदी करने की बात कही गई थी। पांच वर्षीय वरिष्ठ नागरिक बचत योजना के लिए ब्याज दर 7.4 फीसदी पर बरकरार रखी जाएगी। वरिष्ठ नागरिकों की योजना पर ब्याज का भुगतान त्रैमासिक आधार पर किया जाता है। बचत जमा पर ब्याज दर चार फीसदी होगी, जबकि इसे घटाकर 3.5 फीसदी करने का प्रस्ताव था। जाहिर है, ऐसे में मोदी सरकार के लिए कटौती का फैसला पांच राज्यों खासकर बंगाल के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के लिए भारी नुकसान भरा हो सकता था। शायद यही वजह रही है कि कटौती का आदेश जारी होने के महज 14 घंटों के भीतर ही कटौती वापस लेने का ऐलान करना पड़ा।