पश्चिम बंगाल में अगले वर्ष 2021 में चुनाव होने जा रहा है। भाजपा राज्य में अपना परचम लहराने के लिए छटपटा रही है। उसकी कोशिशें जारी हैं। ऐसे में ठीक चुनाव से पहले राज्य की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी को बड़ा झटका लगने के संकेत दिख रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो ममता बनर्जी की कैबिनेट में मंत्री शुभेंदु अधिकारी ने बागी तेवर दिखाए हैं और वह कई बार कैबिनेट बैठक से भी नदारद रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा है कि शुभेंदु अधिकारी टीएमसी से नाता तोड़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो सकते हैं। शुभेंदु अधिकारी को ममता बनर्जी का काफी खास और भरोसेमंद नेता माना जाता रहा है। ममता बनर्जी की कैबिनेट बैठकों में सिर्फ शुभेंदु अधिकारी ही नहीं नदारद हैं बल्कि उनके अलावा तीन अन्य मंत्री राजीव बनर्जी, गौतम देब और रवींद्र घोष भी बैठकों में नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसी चर्चा है कि ये लोग ममता बनर्जी से अलग हो सकते हैं और टीएमसी छोड़कर अलग राह चुन सकते हैं। खबर यह भी है कि शुभेंदू अधिकारी ने टीएमसी से अलग एक रैली भी की है, जहां ममता बनर्जी की तस्वीर नहीं लगी थी। यही वजह है कि ऐसी अटकलों को बल मिल रहा है।
ममता सरकार में शुभेंदु अधिकारी के मायने क्या है?
फिलहाल शुभेंदु अधिकारी ममता सरकार में परिवहन, जल और सिंचाई मंत्री हैं। शुभेंदू को ममता बनर्जी का काफी करीबी नेता माना जाता है। वह पूर्व मेदिनीपुर जिले का मुख्यालय तमलुक संसदीय क्षेत्र से सांसद भी रहे हैं। माकपा के गढ़ को भेदने में शुभेंदु अधिकारी का भी योगदान है। 2009 से पहले तक तमलुक सीट माकपा का अभेद्य दुर्ग माना जाता रहा, लेकिन 2009 में हुए संसदीय चुनाव में इस सीट से तृणमूल के शुभेंदु अधिकारी निर्वाचित हुए और फिर माकपा का अभूतपूर्व पराभव शुरू हो गया। 2014 में हुए पिछले चुनाव में भी इस सीट से शुभेंदु जीते, लेकिन 2016 में राज्य विधानसभा चुनाव के बाद शुभेंदु अधिकारी संसदीय राजनीति से दूर हो गए और नंदीग्राम से विधायक चुने गए। लिहाजा 2016 में इस सीट के लिए उपचुनाव हुआ, जिसमें शुभेंदु के छोटे भाई दिव्येंदु अधिकारी उम्मीदवार बने और जीते भी।
लेकिन अब शुभेंदु अधिकारी का टीएमसी में बगावत का रुख अपनाना ममता बनर्जी के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। दरअसल, शुभेंदु अधिकारी समेत इन मंत्रियों की बगावत ऐसे वक्त में सामने आई है, जब हाल ही में अमित शाह ने पश्चिम बंगाल का दौरा किया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 5 नवंबर को बंगाल में दो दिवसीय दौरे पर गए थे और जहां उन्होंने आगामी चुनाव को लेकर बीजेपी की तैयारियों का जायजा लिया था और पार्टी को मजबूत करने के लिए कार्यकर्ताओं से बातचीत की थी। शाह के दौरे के बाद से ही पश्चिम बंगाल की सियासत गर्म दिख रही है। अगर शुभेंदू अधिकारी टीएमसी का साथ छोड़ते हैं तो यह ममता बनर्जी के लिए बड़ा झटका इसलिए भी होगा, क्योंकि शुभेंदु का कई सीटों पर प्रभाव दिखता है।
बंगाल में बीजेपी
2019 में बीजेपी ने 42 में से 18 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। हालांकि, पार्टी नेताओं का कहना है कि विधानसभा चुनाव में जीतना आसान नहीं होगा, खासकर पश्चिम बंगाल के 15 दक्षिणी जिलों में, जहां अधिकतर सीटें हैं। बिहार चुनाव के बाद अब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का पूरा ध्यान पश्चिम बंगाल पर है। एक तरफ बीजेपी ने पिछले कुछ सप्ताह में कई संगठनात्मक बदलाव किए हैं तो एक के बाद एक पार्टी के बड़े नेता सूबे में पहुंचकर महासमर की तैयारी को धार दे रहे हैं। नवंबर में ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पार्टी की तैयारियों का जायजा लेने के लिए कई के दौरे कर चुके हैं। इन्हीं दौरों में अपने भाषण में शाह ने 200 से अधिक सीटें जीतने का दावा भी किया है। शाह के दौरे के बाद बंगाल में जिला युवा नेताओं की लिस्ट जारी कर दी गई है।
बीजेपी के सह प्रभारी बनाए गए आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय भी हाल ही में पश्चिम बंगाल पहुंचे। पार्टी के नेता मालवीय की नियुक्ति को इस बात की ओर इशारा मानते हैं कि विधानसभा चुनाव की जंग सोशल मीडिया पर भी आक्रामक तरीके से लड़ी जाएगी। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष भी 17 नवंबर को राज्य में पहुंच रहे हैं। वह कई बैठकें करने वाले हैं।
2021 के विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने अभी से ही प्रचार में ताकत झोंक दी है। इस बीच बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने वादा किया है कि यदि पार्टी सत्ता में आई तो पश्चिम बंगाल को गुजरात की तरह बनाया जाएगा। वहीं, टीएमसी ने कहा कि वहां एनकाउंटर्स में लोगों की हत्या की जाती है।
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष पहले ही कह चुके हैं कि, ”बंगाल में लड़े गए पिछले 2-3 चुनावों में मालवीय ने सोशल मीडिया और आईडी रणनीतियों को मैनेज किया। वह बंगाल के मुद्दों से अवगत हैं। उनका आगमन पार्टी की राज्य ईकाई के आईटी विंग को और मजबूत करेगा।”
दिलीप घोष ने टीएमसी पर प्रहार करते कहा कि बीजेपी का लक्ष्य़ बंगाल को गुजरात बनाने का है। घोष ने कहा, ”बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कई बार कहती हैं कि बंगाल को गुजरात बनाने की कोशिश है। मैं कहूंगा कि यह 100 फीसदी सच है। हम बंगाल को गुजरात में बदल देंगे। अभी बंगाल के लोगों को रोजगार के लिए गुजरात जाना पड़ता है। आने वाले सालों में लोगों को गुजरात नहीं जाना होगा। उन्हें बंगाल में ही रोजगार मिलेगा।” कैलाश विजयवर्गीय, जो पश्चिम बंगाल के लिए भाजपा की ओर से केंद्रीय पर्यवेक्षक हैं, उन्होंने कहा है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव तभी हो सकते हैं जब राष्ट्रपति शासन लगाया जाए।
खेल बनाएंगे और बिगाड़ेंगे ओवैसी
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरने पर तृणमूल कांग्रेस की अल्पसंख्यकों पर पकड़ कमजोर हो सकती है। बिहार विधानसभा चुनाव में पांच सीटे जीतने के बाद पार्टी ने बंगाल में किस्मत आजमाने का मन बनाया है। राज्य में 2011 में वाम मोर्चे को हराने के बाद से ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी को ही अल्पसंख्यक मतों का फायदा मिला है। एआईएमआईएम के इस फैसले पर पार्टी का कहना है कि ओवैसी का मुसलमानों पर प्रभाव हिंदी और उर्दू भाषी समुदायों तक सीमित है, जो राज्य में मुस्लिम मतदाताओं का सिर्फ छह प्रतिशत है। पश्चिम बंगाल में 30 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। कश्मीर के बाद सबसे अधिक मुस्लिम मतदाता बंगाल में ही हैं। अल्पसंख्यक, विशेषकर मुसलमान, 294 सदस्यीय विधानसभा में लगभग 100-110 सीटों पर एक निर्णायक कारक हैं, जो 2019 तक, अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ तृणमूल के लिए हमेशा फायदेमंद रहे है। इनमें से अधिकांश ने पार्टी के पक्ष में मतदान किया है, जो भगवा दल के विरोध में हमेशा उनके लिए ‘विश्वसनीय’ रहे हैं।
देश में वर्तमान में 28 राज्यों में 12 राज्य ऐसे हैं जहाँ बीजेपी की सरकार है और जबकि 6 राज्य ऐसे हैं जहाँ इनकी सरकार गठबंधन से बनी है। पश्चिम बंगाल में भी ऐसा लग रहा है कि अगर ममता बनर्जी , बंगाल में लेफ्ट और कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ती हैं तो शायद कुछ सीटें आ जाएँ और सम्भवतः सरकार बच जाये।
लेकिन जबकि अब ओवेसी की पार्टी ने राज्य में 23 जिलों में से 22 में अपनी इकाईयां स्थापित की हैं। यह कहना लाज़मी है कि ओवेसी बंगाल में विधानसभा चुनाव जमकर ही लड़ेंगे। इधर ओवेसी और उधर ममता के खुद की पार्टी में उनके करीबियों की बगावत, यह सब एक सवाल जरूर खड़ा कर रहे हैं कि क्या पश्चिम बंगाल में अब ममता का दुर्ग खिसकता नजर आ रहा है?