पश्चिम बंगाल में जिस तरह शिक्षक भर्ती घोटाले में पार्थ चटर्जी के अलावा उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी की गिरफ्तारी हुई है और रोज नए खुलासे हो रहे हैं, उससे साफ है कि एक बार फिर भाजपा को ममता के खिलाफ बड़ा हथियार मिल गया है। आने वाले समय में शिक्षक भर्ती घोटाला ममता के लिए शारदा चिट फंड घोटाले जैसा ही गले की फांस बन सकता है
देश में इन दिनों एक ओर जहां संसद के दोनों सदनों में चल रहे मानसून सत्र में महंगाई, बेरोजगारी, अग्निपथ स्कीम सहित कई जनहित मुद्दों को लेकर हंगामा जारी है वहीं पश्चिम बंगाल सरकार में मंत्री पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी ने एक बार फिर राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ा दी हैं। इस घोटाले की आंच का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। मंत्री पार्थ चटर्जी और उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी की गिरफ्तारी के बाद एक यूनिवर्सिटी प्रोफेसर मोनालिसा दास और टीएमसी विधायक माणिक भट्टाचार्य भी ईडी के निशाने पर आ गई हैं। इस भर्ती घोटाले में कई और लोगों से पूछताछ हो रही है। जिस तरह शिक्षक भर्ती घोटाले में अब तक पार्थ चटर्जी के अलावा उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी की गिरफ्तारी हुई है और रोज नए खुलासे हो रहे हैं, उससे साफ है कि एक बार फिर भाजपा को ममता के खिलाफ बड़ा हथियार मिल गया है। आने वाले समय में शिक्षक भर्ती घोटाला ममता के लिए शारदा चिट फंड घोटाले जैसा गले की फांस बन सकता है, खास तौर जब अगले दो सालों के भीतर लोकसभा चुनाव होने हों।
शिक्षक भर्ती घोटाले में हर रोज हो रहे खुलासों से तय माना जा रहा है कि ममता बनर्जी की राजनीतिक मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इसलिए पार्थ चटर्जी गिरफ्तारी के बाद ममता बनर्जी का बेहद सधा हुआ बयान आया है। उन्होंने कहा है कि ‘यदि कोई दोषी है, तो व्यक्ति को जीवन भर के लिए सजा मिलनी चाहिए। मुझे कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन मैं समयबद्ध जांच चाहती हूं साथ ही मैं चेतावनी देती हूं कि अगर आप इसका इस्तेमाल मुझ पर लांछन लगाने के लिए करेंगे तो मैं आप को भी नहीं छोड़ूंगी। लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि घायल शेर ज्यादा खतरनाक होता है। नीरव मोदी, मेहुल चोकसी का क्या हुआ, हम सभी जानते हैं।’
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो ममता बनर्जी के लिए यह चुनौती ठीक उसी तरह बन सकती है, जैसे शारदा घोटाले में बनी थी। साल 2013 में शारदा समूह के चिटफंड घोटाले के खुलासे ने बंगाल की राजनीति में भूचाल ला दिया था। इस घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं के नाम सामने आ गए थे। और उसके बाद रोजवैली समेत कई समूहों के घोटाले सामने आए। राज्य सरकार की जांच टीम ने शारदा समूह के प्रमुख सुदीप्त सेन और उनकी सहयोगी देवयानी को गिरफ्तार किया था। और इसके बाद ममता सरकार में तत्कालीन मंत्री मदन मित्र को गिरफ्तारी कर लिया गया था। इसके अलावा सांसद मुकुल राय को भी सीबीआई की पूछताछ का सामना करना पड़ा था। बाद में मुकुल राय भाजपा में शामिल हो गए, हालांकि अब वे फिर से तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए हैं।
क्या है शिक्षक भर्ती घोटाला
वर्ष 2016 में पश्चिम बंगाल के स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) ने शिक्षकों की भर्ती के लिए एक परीक्षा ली थी। 2017 में जब इसका रिजल्ट आया तो इसमें सिलीगुड़ी की बबीता सरकार का नाम टॉप-20 में था। आयोग ने ये लिस्ट रद्द कर दी। इसके बाद बबीता से 16 नंबर कम पाने वाली अंकिता तृणमूल नेता और ममता सरकार में अधिकारी का नाम टॉप पर आ गया। अंकिता मंत्री परेश अधिकारी की बेटी है। इसके खिलाफ बबीता सरकार और कुछ लोगों ने हाईकोर्ट में अर्जी लगाई। कोर्ट ने इसमें गड़बड़ी की आशंका जताते हुए सीबीआई जांच के आदेश दिए थे। सीबीआई ने पार्थ चटर्जी से पूछताछ की क्योंकि वही तब शिक्षा मंत्री थे। बाद में ईडी ने पार्थ चटर्जी और उनके करीबियों के घर छापा मारा, जिसमें अर्पिता मुखर्जी के दो घरों से करीब 51 करोड़ कैश और ज्वैलरी, 20 मोबाइल फोन बरामद हुए। इसके बाद पार्थ और अर्पिता को गिरफ्तार कर लिया।
पार्थ चटर्जी थे घोटाले के वक्त शिक्षा मंत्री
वर्तमान में उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री पद पर काबिज पार्थ चटर्जी उस समय शिक्षा मंत्री थे, जब कथित घोटाला हुआ था। सीबीआई उनसे पहले भी दो बार पूछताछ कर चुकी है। पहली बार पूछताछ 25 अप्रैल, जबकि दूसरी बार 18 मई को की गई थी। इसके बाद पिछले हफ्ते 23 जुलाई को पश्चिम बंगाल के दो मंत्रियों पार्थ चटर्जी और परेश अधिकारी के घरों पर भी छापेमारी की गई है।
ईडी ने आर्पिता मुखर्जी को भी हिरासत में लिया है जो पार्थ चटर्जी की करीबी बताई जा रही हैं। ईडी ने एक बयान में कहा कि अर्पिता मुखर्जी के आवास पर बरामद 20 करोड़ रुपए ‘उक्त एसएससी घोटाले के अपराध की आय होने का संदेह है।’ कुछ समय के लिए अभिनेत्री रह चुकीं अर्पिता मुखर्जी 2019 और 2020 में पार्थ चटर्जी की दुर्गा पूजा समिति के प्रचार अभियानों का चेहरा थीं।
पूरा वेतन वापस करने का आदेश
कलकत्ता हाई कोर्ट ने भी बंगाल के शिक्षा राज्यमंत्री परेश चंद्र अधिकारी की बेटी की सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल में बतौर शिक्षक नियुक्ति को रद्द कर दिया और उनसे 41 महीने की नौकरी के दौरान प्राप्त सारा वेतन लौटाने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय ने अंकिता अधिकारी को निर्देश दिया कि वह नवंबर 2018 से अभी तक प्राप्त वेतन की पूरी राशि दो किस्तों में रजिस्ट्रार के पास जमा कराएं।
स्कूल परिसर में प्रवेश पर भी रोक
अदालत ने अगले आदेश तक अंकिता के स्कूल परिसर में प्रवेश पर भी रोक लगा दी है। अंकिता को वेतन की पहली किस्त सात जून तक और दूसरी किस्त सात जुलाई तक देनी है। हाई कोर्ट एक अभ्यर्थी की ओर से दायर उस याचिका की सुनवाई कर रहा था, जिसमें दावा किया गया था कि भर्ती परीक्षा में अधिकारी की बेटी के मुकाबले ज्यादा अंक लाने के बावजूद उसे नौकरी नहीं दी गई। याचिकाकर्ता का दावा है कि उसे 77 अंक मिले थे जबकि अंकिता को 61 अंक मिले थे।
वर्ष 2016 में हुई थी भर्तियां
स्कूल शिक्षा विभाग की पूरी भर्ती प्रक्रिया 2016 में शुरू हुई थी। ग्रुप सी में सभी लिपिक पद शामिल हैं, जिसमें प्रति माह 22,700 रुपये के शुरुआती वेतन है। परिचारकों को 17,000 रुपये के मासिक वेतन के लिए ग्रुप डी स्टाफ के रूप में काम पर रखा जाता है। इसके लिए पद निकाले गए और परीक्षा हुई।
टीएमसी और बीजेपी आमने-सामने
सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने ईडी के छापों को केंद्र की बीजेपी सरकार द्वारा अपने राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए एक चाल बताया और इस मुद्दे में किसी भी भूमिका से इनकार किया है। दूसरी तरफ बीजेपी ने दावा किया है कि सीबीआई और ईडी सही रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं।