पश्चिम बंगाल में भाजपा कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर राज्य की मुख़्यमंत्री ममता बनर्जी को शुरु से घेरती रही है। ऐसे में भला ममता भी क्यों पीछे रहे। ऐसा लगता है कि वे राज्य के वित्तीय भुगतान को लेकर केंद्र पर जबाबी हमले के मूड में हैं। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में अब तक कोरोना संक्रमण से 1,372 लोगों की मौत हुई है। इनमें से सात सौ अकेले कोलकाता शहर के हैं।कोलकाता के तमाम अस्पतालों में महज 948 आईसीयू बेड हैं, जबकि वेंटिलेटरों की संख्या महज 395 ही है।
पश्चिम बंगाल में कोरोना का तेजी से बढ़ते संक्रमण ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। इसके साथ कोरोना मुक्त होने वाले मरीजों का दोबारा संक्रमित होना भी गंभीर चिंता का विषय बन हुआ है। जांच में तेजी से मरीजों की तादाद बढ़ना स्वभाविक है।लेकिन कोरोना अस्पतालों की बदहाली की खबरें और सामने आने वाली तस्वीरों को देख कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सरकारी अस्पतालों और जांच केंद्रों की तो हालत यह है कि वहां स्वस्थ लोग भी संक्रमित होकर मौत के मुंह में समा सकते हैं। दूसरी ओर, निजी अस्पतालों में भी इलाज के नाम पर महज खानापूर्ति हो रही है और उसके एवज में मरीजों से लाखों रुपये वसूले जा रहे हैं।
इस बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोविड-19 महामारी से प्रभावी रूप से निपटने में राज्य की मदद के लिए केंद्र सरकार से सभी वित्तीय बकाये का भुगतान करने को कहा। ममता ने एक ऑनलाइन कार्यकम में कोविड-19 से निपटने के लिए एक अगल कोष गठित करने की भी मांग की। इस कार्यक्रम के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में कोविड-19 के नये जांच केंद्रों का उद्घाटन किया। ममता ने यह भी कहा कि राज्य के आपदा राहत कोष से धन का उपयोग अम्फान चक्रवात के बाद पुनर्वास कार्यों में किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं केंद्र सरकार से राज्य के वित्तीय बकाये का तत्काल भुगतान करने का अनुरोध करती हूं। हमें हमारा 53,000 करोड़ रुपये मिलना अभी बाकी है। यदि हम राज्य आपदा राहत कोष से सारे धन का उपयोग चक्रवात के बाद के राहत एवं पुनर्वास कार्यों के लिये करेंगे तो हम महामारी से कैसे लड़ पाएंगे।’’ ममता ने कहा, ‘‘महामारी से लड़ने के लिये अलग कोष की जरूरत है। गौरतलब है कि अम्फान चक्रवात पश्चिम बंगाल में 20 मई को आया था और इसने राज्य के कुछ हिस्सों में तबाही मचाई थी।