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बड़े ‘खेला’ की तैयारियों में जुटी ममता

तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं इस समय चरम पर हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों की तरफ से प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनने की चाह लिए ममता देश भर में दौरा कर कांग्रेस से इतर एक नया गठबंधन बनाने का प्रयास कर रही हैं। गत् सप्ताह महाराष्ट्र पहुंची ममता ने राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरद पवार से मुलाकात के बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन को सिरे से खारिज कर जहां एक तरफ कांग्रेस को बौखलाने का काम कर डाला, वहीं भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों में गठबंधन की संभावनाओं पर भी बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाने का काम कर दिया है

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इन दिनों पूरे देश में ‘खेला’ कर रही हैं। इस खेला के लिए वह अलग-अलग राज्यों का दौरा करने में जुटी हैं। वहां वह कांग्रेस और गैरकांग्रेसी दिग्गज नेताओं को टीएमसी में शामिल करने की कवायद करती नजर आ रही हैं। इसमें अभी तक उन्हें उम्मीद से ज्यादा सफलता भी मिल चुकी है। पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने के बाद जहां ममता विपक्षी एकता की बात कर रही थी, वहीं अब दीदी अकेले अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करने लगी है। यह सब ‘मिशन 2024’ के मद्देनजर किया जा रहा है। दरअसल, बंगाल में अपना परचम लहराने के बाद तृणमूल कांग्रेस पूरे देश में अपने पैर जमाने की कोशिश में जुटी हैं। इसके लिए वह तेजी से दूसरे दलों के बड़े नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर रही है। पहले यह सिलसिला केवल बंगाल तक सीमित था, लेकिन अब देश के दूसरे राज्यों में भी यह सिलसिला तेजी से शुरू हो गया है। हाल ही में तृणमूल कांग्रेस ने अपने मुखपत्र ‘जागो बांग्ला’ में लिखा कि वह देश भर में बीजेपी से मुकाबला करने के लिए अपनी पार्टी का विस्तार करेगी। इस बात पर अमल कर अब ममता बनर्जी वैसा ही कर रही हैं। गोवा से लेकर दिल्ली, हरियाणा, यूपी, मेघालय में जिन नेताओं को टीएमसी अपने खेमें में ला रही है उनमें सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस पार्टी का ही हो रहा है।

पिछले हफ्ते अपने दिल्ली दौरे पर जिस तरह ममता ने कीर्ति आजाद और हरियाणा कांग्रेस के बड़े नेता रहे आशोक तंवर को टीएमसी में शामिल कराया उसे देख राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि यह एक ट्रेलर मात्र है। टीएमसी अभी कई अन्य कांग्रेसी नेताओं को अपने पाले में ला कांग्रेस नेतृत्व के समक्ष भारी संकट पैदा करने जा रही है। कहा यहां तक जा रहा है कि जी-23 के कई नेता दीदी के संपर्क में हैं। इस दौरे के तुरंत बाद दीदी महाराष्ट्र पहुंच गईं। 30 नवंबर को उन्होंने शिव सेना के आदित्य ठाकरे संग लंबी वार्ता कर इस तरफ इशारा कर दिया कि वे एनसीपी और सेना के साथ मिलकर कांग्रेस से इतर विपक्षी गठबंधन बनाने में जुट गई हैं। हालांकि शिवसेना ने उन्हें खास तवज्जो न देते हुए कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन में बने रहने की बात कह ममता के ‘मिशन-2024’ को तगड़ा झटका देने का काम कर दिया है लेकिन टीएमसी सूत्रों के अनुसार ममता अपना अभियान जारी रखने का निर्णय ले चुकी हैं।

संजय राउत और आदित्य ठाकरे संग ममता (फाइल फोटो)

अपनी दिल्ली यात्रा से पहले उन्होंने मेघालय में पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा सहित 17 में से 12 कांग्रेस विधायकों को भी अपने पाले में किया है। कहा जा रहा है कि विन्सेंट एच ़पाला को मेघालय प्रदेश कांग्रेस कमेटी प्रमुख बनाए जाने के बाद उनके और पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल एम संगमा के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। पिछले महीने कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मुकुल संगमा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष विन्सेंट एच पाला से एक साथ मुलाकात भी की थी। पाला की नियुक्ति के बाद संगमा ने कहा था कि इस संबंध में पार्टी नेतृत्व ने उनसे कोई सलाह- मशविरा नहीं किया था। टीएमसी कांग्रेस के कई मोहभंग नेताओं को अपने पाले में लाने में सफल रही है, जिसमें गोवा के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री लुइजिन्हो फलेरियो भी शामिल हैं। लुइजिन्हो फलेरियो एक अनुभवी राजनेता रहे हैं और 1980 से 7 बार नावेलिम निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है।

वे कांग्रेस को छोड़ टीएमसी में आए हैं। कांग्रेस में रहते हुए वे दो बार राज्य का मुख्यमंत्री के रूप में भी काम कर चुके हैं। सूत्रों की मानें तो अब ममता के निशाने पर कांग्रेस के वे असंतुष्ट नेता हैं जिन्हें जी-23 कह पुकारा जा रहा है। इसमें से कई नेताओं ने हालांकि अब पार्टी आलाकमान के खिलाफ अपने सुर बदल लिए हैं लेकिन कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी और गुलाम नबी आजाद अभी भी बागी तेवर अपनाए हुए हैं। खबर है कि इन नेताओं का ममता संग लगातार संवाद चल रहा है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ममता अपनी पार्टी को भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के विकल्प के तौर पर पेश कर रही है। अपने इन प्रयासों के कारण ही वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) सुप्रीमो शरद पवार साथ भी अपना संपर्क बढ़ा रही हैं। ममता बनर्जी के गोवा, यूपी, मेघालय, त्रिपुरा और असम में तृणमूल कांग्रेस का विस्तार करने के बाद दिसंबर के पहले सप्ताह में राजस्थान का दौरा करने की भी संभावना है। तृणमूल आगामी गोवा विधानसभा चुनाव लड़ रही है। पार्टी त्रिपुरा में चल रहे नगर निकाय चुनाव में भी अपनी किस्मत आजमा रही है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सलाहकार रहे पूर्व जेडीयू नेता पवन वर्मा ने भी दिल्ली में ममता बनर्जी की उपस्थिति में उनके साथ चलने का फैसला किया। उत्तर प्रदेश और गोवा में भी तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस में सेंधमारी की है। तृणमूल कांग्रेस नारा तो दे रही है कि वह बीजेपी से मुकाबला करने के लिए अपना विस्तार कर रही है, लेकिन जिस तरह से वह राज्य दर राज्य कांग्रेस पार्टी में सेंधमारी कर रही है, उससे ऐसा लग रहा है कि जैसे वह पहले कांग्रेस को खत्म करने के विचार में है और फिर बड़ी फौज तैयार कर बीजेपी से मुकाबला करने की रणनीति बना रही हैं। इसे देख मिशन 2024 को लेकर देश के राजनीतिक दलों में अभी से हलचल महसूस की जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ एक राजनीतिक विकल्प खड़ा करने की कोशिशों में बीते कुछ महीनों से काफी तेजी देखने को मिली है। इस दौरान ममता कई राज्यों के दौरे कर मिशन-2024 की तैयारी में जुट गई हैं।

गौरतलब है कि इसी साल हुए राज्य विधानसभा चुनावों में मिली बंपर जीत और लगातार तीसरी बार सत्ता में काबिज होने के बाद अब उनकी निगाहें दिल्ली पर हैं। उन्हें मालूम है कि दिल्ली की गद्दी तभी मिल सकती है जब बीजेपी के अलावा उनसे मुकाबला करने को कोई और पार्टी ना हो, यही वजह है कि टीएमसी देश के हर राज्य से कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को अपने साथ जोड़ती जा रही है। आगामी पांच राज्यों में विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस के पास अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर राष्ट्रीय स्तर पर अपने पांव पसारने का अच्छा मौका है। यही वजह है कि गोवा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी जहां इससे पहले तक टीएमसी का कोई वर्चस्व नहीं था, अब वह यहां के क्षेत्रीय नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करके जमीनी स्तर पर अपने पैर मजबूत कर रही है।

टीएमसी का दावा है कि आने वाले कुछ महीनों में वह बिहार-उत्तर प्रदेश में दर्जनभर से ज्यादा बड़े नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करेगी। तृणमूल कांग्रेस भले ही पूरे देश में अपने पैर पसारने की बात कर रही हो, लेकिन कुछ राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अभी तक टीएमसी केवल पश्चिम बंगाल से सटे राज्यों में ही कुछ हद तक अपना प्रभाव बना सकी है। गोवा में भले ही टीएमसी आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हो, लेकिन वहां टीएमसी की स्थिति इतनी मजबूत नहीं है कि वह कुछ सीटें भी जीत सके जबकि त्रिपुरा, असम और बिहार के सीमांचल इलाके में तृणमूल कांग्रेस का प्रभाव देखा जा सकता है। कहा जा रहा है कि बिहार में तृणमूल कांग्रेस अपना चेहरा चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को बना सकती है। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के समय भी प्रशांत, ममता बनर्जी के साथ थे और जब ममता बनर्जी दिल्ली विपक्ष की एकजुटता के लिए आई थीं, उस वक्त भी प्रशांत किशोर उनके साथ ही थे। हालांकि बीच में जरूर अफवाहें उड़ रही थीं कि वह कांग्रेस पार्टी में शामिल होने वाले हैं लेकिन अब ऐसे कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं।

जिस तरह से तृणमूल कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है और उसे अन्य राजनीतिक दलों का भी समर्थन मिल रहा है, इसे देखकर कयास लगाए जा रहे हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी बनाम ममता बनर्जी की लड़ाई हो सकती है और कांग्रेस पार्टी इस लड़ाई से थोड़ी दूर नजर आएगी। हालांकि जमीनी स्तर पर यह होगा या नहीं फिलहाल इस पर कह पाना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि ममता बनर्जी का नाम जिस तरह से ऊपर उठ रहा है, ठीक वैसे ही जब आरजेडी के साथ गठबंधन में नीतीश कुमार की जीत हुई थी तब कुछ महीनों तक उनका नाम भी उठा था। दिल्ली में जब अरविंद केजरीवाल ने क्लीनस्वीप किया था तब राजनीतिक गलियारों में अरविंद केजरीवाल का भी नाम ऐसे ही उठा था और लग रहा था कि अब देश में नरेंद्र मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल होगा।

हालांकि जब अन्य राज्यों में चुनाव हुए और आम आदमी पार्टी की वहां जबरदस्त हार हुई, यह पूरा मामला दब गया। ममता बनर्जी पर भी यही बात लागू होती है। अगले साल 2022 में गोवा सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। टीएमसी गोवा में चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर चुकी है। अगर गोवा में तृणमूल कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करती है तो जाहिर सी बात है विपक्ष के बीच ममता बनर्जी के चेहरे की धाक और ज्यादा बढ़ेगी। लेकिन अगर गोवा में टीएमसी का प्रदर्शन निराशाजनक होता है तो राष्ट्रीय स्तर पर भी ममता बनर्जी की छवि और टीएमसी के प्रभाव पर असर पड़ेगा और फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी के नेतृत्व में शायद ही पूरा विपक्ष एकजुट हो सके।

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