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अब ममता बनर्जी पर मडराने लगे ‘संवैधानिक’ संकट के बादल

पश्चिम बंगाल में हाल ही में संपन हुए विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को प्रचंड  जीत हासिल हुई , लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नंदीग्राम से भाजपा के शुभेंदु अधिकारी से हार गई। बावजूद इसके ममता बनर्जी राज्य की मुख्यमंत्री हैं। उन्हें मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए छह महीनों के भीतर विधानसभा का सदस्य होना जरुरी है। हालांकि उन्होंने अपने लिए एक सीट (भवानीपुर) खाली भी करा ली है लेकिन वह विधानसभा की सदस्य तभी बन पाएंगी जब तय अवधि के भीतर चुनाव हो सके। कोरोना की वजह से निर्वाचन आयोग ने सभी चुनाव स्थगित किए हुए हैं। ऐसे में अब ममता बनर्जी पर संवैधानिक संकट के बादल मडराने लगे हैं।

चुनाव प्रक्रिया कब से शुरू होगी, इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में अगर नवंबर तक भवानीपुर उपचुनाव के बारे में चुनाव आयोग फैसला नहीं लेता है तो ममता की गद्दी के लिए भी खतरा हो सकता है।

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ममता बनर्जी ने 4 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उन्हें शपथ लेने के दिन से छह महीने के अंदर यानी 4 नवंबर तक विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी है और यह संवैधानिक बाध्यता है। अगर चार नवंबर तक ममता बनर्जी विधानसभा की सदस्य नहीं बन पाई तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ेगा।

संवैधानिक बाध्यता क्यों है?

संवैधानिक बाध्यता के चलते उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को कल दो जुलाई को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा है। दरअसल ,10 मार्च 2021 को तीरथ सिंह रावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। ऐसे में 10 सितंबर से पहले उन्हें किसी सदन का सदस्य होना जरूरी था । तीरथ ने संवैधानिक संकट और अनुच्छेद 164 का हवाला देते हुए इस्तीफे की बात कही है। अनुच्छेद 164(4) के अनुसार, कोई मंत्री अगर 6 माह की अवधि तक राज्य के विधानमंडल (विधानसभा या विधान परिषद) का सदस्य नहीं होता है तो उस समयसीमा के खत्म होने के बाद मंत्री का कार्यकाल भी समाप्त हो जाएगा। इस लिहाज से पश्चिम बंगाल की स्थिति उत्तराखंड जैसी नहीं  है। उत्तराखण्ड में तीरथ रावत की गद्दी तकनीकी कारणों के चलते गई है। क्योंकि संविधान प्रदत्त जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुच्छेद 151(ए) में स्पष्ट प्रावधान है कि लोकसभा अथवा विधानसभाओं में रिक्त पड़ी सीट पर उपचुनाव तभी कराए जायेंगे जब संबंधित सभा का कार्यकाल न्यूनतम एक वर्ष बचा हो। उत्तराखण्ड विधानसभा का वर्तमान समय 23 मार्च, 2022 तक है। चूंकि यह समय एक वर्ष से कम है इसलिए चुनाव कराया जाना संभव नहीं था । जबकि जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुच्छेद 151(ए) का खतरा ममता बनर्जी पर नहीं है। क्योंकि बंगाल विधानसभा का कार्यकाल अभी पांच साल बाकी है।

ममता का विधान परिषद वाला दांव फेल

बंगाल में जब आयोग चुनाव करा रहा था तब कई राजनीतिक दलों ने आयोग पर लोगों की जान से खेलने के आरोप लगाए थे। ऐसे में अब जब तक यह सुनिश्चित नहीं हो जाता कि चुनाव कराने से किसी की जान को खतरा नहीं है तो चुनाव होने की सूरत बनती नहीं दिख रही है। ममता ने हालात को समझते हुए, विधान परिषद वाला रास्ता निकालने की कोशिश की थी। उन्होंने विधानसभा के जरिए प्रस्ताव पास कराया कि राज्य में विधान परिषद का गठन हो लेकिन बगैर लोकसभा की मंजूरी के यह संभव नहीं है। केंद्र सरकार के साथ उनके रिश्ते जगजाहिर हैं। ऐसे में विधान परिषद वाला रास्ता भी मुमकिन नहीं है।

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