पश्चिम बंगाल में हाल ही में संपन हुए विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को प्रचंड जीत हासिल हुई , लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद नंदीग्राम से भाजपा के शुभेंदु अधिकारी से हार गई। बावजूद इसके ममता बनर्जी राज्य की मुख्यमंत्री हैं। उन्हें मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए छह महीनों के भीतर विधानसभा का सदस्य होना जरूरी है। इस बीच टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी विधानसभा उपचुनाव में कहां से लड़ेंगी यह तय हो गया है।
ममता बनर्जी भवानीपुर सीट से उपचुनाव में अपनी दावेदारी पेश करेंगी। उनके अलावा दो अन्य टीएमसी उम्मीदवारों की सीटों की भी घोषणा हो गई है। इनमें जाकिर हुसैन जांगीपुर और अमीरुल इस्लाम समसेरगंज से उपचुनाव लड़ेंगे। इन तीनों सीटों पर इसी महीने 30 सितंबर को उपचुनाव होने वाले हैं। पार्टी ने इस बात की घोषणा भी कर दी है कि ममता बनर्जी भवानीपुर से उपचुनाव लड़ेंगी।
सीएम बने रहने के लिए ममता का जीतना जरूरी
ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम से हार गई थीं। अगर उन्हें मुख्यमंत्री बने रहना है तो किसी भी हाल में इस उपचुनाव में जीत दर्ज करनी होगी। भाजपा, कांग्रेस और सीपीआई-एम ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है। इसके अलावा मुर्शिदाबाद की दो सीटों, समसेरगंज और जांगीपुर में आठ चरणों के चुनाव में वोट नहीं डाले जा सके थे। यहां पर भी 30 सितंबर को ही उपचुनाव होने वाले हैं। इस उपचुनाव के वोटों की गणना 3 अक्टूबर को होगी। भवानीपुर उपचुनाव के लिए नोटिफिकेशन छह सितंबर को जारी होगा। इसके बाद नामांकन प्रक्रिया की शुरुआत होगी। 13 सितंबर नामांकन की आखिरी तारीख है। वहीं 14 सितंबर को पर्चों की जांच की जाएगी। 16 सितंबर चुनाव से नाम वापस लेने की आखिरी तारीख रहेगी।
सोवनदेव चट्टोपाध्याय ने खाली की है सीट
भवानीपुर के विधायक वरिष्ठ टीएमसी नेता सोवनदेव चट्टोपाध्याय ने इस्तीफा देकर इस सीट को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए खाली किया है। चट्टोपाध्याय ने इस सीट पर विधानसभा चुनाव में 28 हजार वोटों से जीत हासिल की थी। उन्होंने भाजपा के उम्मीदवार अभिनेता से नेता बने रुद्रनील घोष को हराया था। वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भवानीपुर से 2011 और 2016 में दो बार जीत चुकी थीं,लेकिन 2021के विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अपनी परंपरागत सीट के बजाए नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला किया था। यहां पर उन्हें अपने पूर्व सहयोगी सुवेंदु अधिकारी से शिकस्त झेलनी पड़ी।
बंगाल की राजनीति में विरोधी नेत्री के रूप में अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाली ममता बनर्जी अभी तक 10 बार चुनाव लड़ चुकी हैं। आठ बार लोकसभा और दो बार विधानसभा का चुनाव लड़ी हैं। केवल एक बार ही उनकी लोकसभा चुनाव में हार हुई है , जबकि नौ बार विजयी रही हैं। ममता बनर्जी सात बार लोकसभा की सांसद रही हैं। रेल मंत्री, कोयला मंत्री से लेकर खेल राज्य मंत्री का पद संभाल चुकी हैं। पिछले 10 वर्षों से वह राज्य की सीएम हैं और साल 2011 में 34 वर्षों की लेफ्ट सरकार को हराकर सत्ता में आईं थी। ममता बनर्जी साल 2011 में विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था। विधानसभा चुनाव में टीएमसी को बहुमत मिलने के बाद ममता बनर्जी ने भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र से उप चुनाव लड़ा था। उस उपचुनाव में माकपा की उम्मीदवार नंदिनी मुखर्जी को पराजित किया था। वह साल 2011 से बंगाल की सीएम हैं। उसके बाद साल 2016 में वह भवानीपुर से ही चुनाव लड़ीं और जीत दर्ज कर दूसरी बार राज्य की मुखिया बनीं ।
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कॉलेज में पढ़ते-पढ़ते ही ममता बनर्जी का राजनीति में हो गया था आगमन
दरअसल , ममता बनर्जी का राजनीति में आगमन कॉलेज में पढ़ते-पढ़ते ही हो गया था। कांग्रेस की सदस्यता लेने के बाद वर्ष 1976 से 1980 तक वह राज्य महिला कांग्रेस और अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के सचिव पद पर रहीं। वर्ष 1984 में सोमनाथ चटर्जी जैसे अनुभवी प्रतिद्वंदी को हराकर ममता बनर्जी पहली बार राष्ट्रीय राजनीति में आई। वर्ष 1989 में हर राज्य में कांग्रेस की हार होने के कारण ममता बनर्जी को भी अपनी सीट गंवानी पड़ी थी , लेकिन 1991 में वे दोबारा मैदान में उतरी और कोलकाता के दक्षिणी निर्वाचन क्षेत्र से जीत गईं । इतना ही नहीं इस सीट पर वह आगामी हर चुनाव (1996, 1998, 1999, 2004 और 2009) में जीतती आई। वर्ष 1991 में पी.वी नरसिंह राव के कार्यकाल में ममता बनर्जी , मानव संसाधन विकास, खेल और युवा मामलों, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की राज्य मंत्री नियुक्त की गई। कांग्रेस पार्टी से मतभेद होने के बाद ममता बनर्जी ने वर्ष 1997 में तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की। वर्ष 1999 में ममता बनर्जी बीजेपी को सत्ता में लाने के लिए एनडीए गठबंधन से जुड़ कर रेल मंत्री बनीं । वर्ष 2000 में ममता बनर्जी ने अपना पहला रेल बजट संसद में पेश किया। वर्ष 2001 में मनमुटाव के चलते ममता बनर्जी बीजेपी से अलग हो गईं और आगामी चुनाव के लिए फिर से कांग्रेस की ओर चली गईं । 2004 में वह कोयला और खाद्यान्न मंत्री के तौर पर कैबिनेट में शामिल हुईं । वर्ष 2009 में ममता बनर्जी फिर से चुनाव जीत लोकसभा पहुंची। इस बार वह फिर कैबिनेट में शामिल होने के बाद रेल मंत्री बनाई गई ,लेकिन इस पद पर वह सिर्फ दो वर्ष तक ही रह पाई। वर्ष 2011 में कांग्रेस गठबंधन में शामिल तृणमूल कांग्रेस ने उत्कृष्ट प्रदर्शन के बल पर राज्य विधानसभा चुनावों में बेहतरीन प्रदर्शन किया। ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री निर्वाचित होने के बाद रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।
ममता बनर्जी की उपलब्धियां
ममता बनर्जी की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि उन्होंने बंगाल की राजनीति पर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के लगभग 34 वर्ष लंबे शासनकाल को समाप्त करते हुए मुख्यमंत्री के पद पर कब्जा किया। इसके अलावा वह पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री भी हैं। रेल मंत्री रहते हुए उन्होंने कई नई ट्रेनों के आवागमन और पुरानी ट्रेनों की आवृत्ति बढ़ाने जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लिये ।
ममता बनर्जी देश खासतौर पर बंगाल के विकास और प्रगति के लिए इतनी प्रतिबद्ध हैं कि अगर बजट या किसी सरकारी योजना में बंगाल को महत्व नहीं दिया जाता तो वह इस पर भड़क जाती हैं और अपने क्रोध पर काबू नहीं रख पाती हैं। कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिससे यह साफ पता चलता है कि ममता बनर्जी एक जुझारू व्यक्तित्व वाली महिला हैं।