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मोदी पर हमलावर हुई ममता

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर केंद्र की भाजपा सरकार पर जमकर हमला बोला है। कल यानी 15 नवंबर को एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि वह विभिन्न योजनाओं का पैसा राज्य सरकार को नहीं दे रही है। इसके लिए ममता ने प्रधानमंत्री मोदी को जिम्मेदार ठहरा कर कहा कि, मैं दिल्ली गई और प्रधानमंत्री से मुलाकात की,अब क्या बाकी रह गया है? क्या अब मैं उनके पैरों में गिर जाऊं? इस दौरान बनर्जी ने कहा कि केंद्र को या तो राज्यों का बकाया चुकाना चाहिए या सत्ता छोड़ देनी चाहिए।

 

दरअसल, ममता बनर्जी ने यह बात मनरेगा और जीएसटी के तहत केंद्र सरकार से पैसा न मिलने पर कही है। मनरेगा मज़दूरो के पास इसके अलावा भी कई समस्याएं हैं।महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत दी जाने वाली राष्ट्रीय स्तर की न्यूनतम मजदूरी को साल 2019 में 375 रुपये प्रति व्यक्ति बढ़ाया था वो आज तक नहीं मिला है।औसतन देखा जाए तो प्रति दिन के मनरेगा मजदूरी और राष्ट्रीय स्तर की न्यूनतम मजदूरी के बीच 13.8 प्रतिशत का अंतर है। जो न्यूनतम मजदूरी की सीमा राज्यों की तरफ से तय की गयी है, वह भी राज्य सरकार मनरेगा मजदूरों को नहीं दे पाई है । कोई भी ऐसा राज्य नहीं है, जहाँ राज्य की न्यूनतम मजदूरी से ज्यादा मनरेगा के मजदूरों की प्रतिदिन की मजदूरी हो। इसके साथ महंगाई को जोड़ दिया जाए तो हालत और भी खराब नजर आती है। पहली बात तो यही है कि न्यूनतम मजदूरी से ज्यादा किसी भी राज्य में मनरेगा मजदूरों को मजदूरी नहीं मिल रही है। दूसरी बात यह कि जिस दर से सरकारों ने मनरेगा की मजदूरी बढ़ाई है, उस दर और महंगाई की दर के बीच तकरीबन 4.7 फीसदी का अन्तर है। यानी सरकार ने मनरेगा मजदूरों की जो मजदूरी बढ़ाई है, उसे बढ़ाते वक्त मनरेगा मजदूरों पर पड़ने वाली महंगाई की मार पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया है।

कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से पिछले कुछ सालों की बढ़ती हुई बेरोजगारी हर दिन भयंकर रूप लेते जा रही है। मनरेगा के तहत मजदूरी मांगने वालों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कोरोना कालमें देखने को मिला था। इसके बावजूद केंद्र सरकार मनरेगा के लिए आवंटित की जाने वाली हर साल की बजटीय राशि बढ़ाने के बजाए घटाने में लगी हुई है। वित्य वर्ष 2022 – 23 के तहत मनरेगा के लिए 73 हजार करोड़ की राशि आबंटित की गयी थी,लेकिन जुलाई 2022 में ही 48 हजार करोड़ रुपय ख़त्म हो गए । जिसकी वजह से मनरेगा के तहत मजदूरी समय से नहीं मिल पाती है। आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा समय में राज्यों का केंद्र सरकार पर अब तक तकरीबन दस हजार करोड़ रूपये का बकाया है। मजदूरों को जितनी मजदूरी मिलती है, उससे घर नहीं चल पाता है। मगर मजदूरों पर जीवन काटने का और कोई चारा नहीं है, इसलिए राज्य सरकार केंद्र सरकार से जल्द से जल्द पैसे की मांग कर रही है।

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