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भारत के प्रति मालदीव के तेवर पड़े नरम

मालदीव

कुछ दिनों पहले मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू का बयान भारत के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा था। लेकिन अब उनके सुर नरम पड़ने लगे हैं बीते गुरुवार यानि 5 अक्टूबर को भारतीय उच्चायुक्त और मुइज्जू के बीच हुई मुलाकात के बाद मालदीव के राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि भारत मालदीव की संप्रभुता का सम्मान करेगा और दोनों देशों के बीच नए सिरे से संबंध स्थापित कर उन्हें ऊंचाइयों तक पहुंचाया जाएगा।

गौरतलब है कि मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने कुछ दिनों पहले भारतीय सेना के कर्मियों को देश छोड़ने के लिए कहा जा सकता है। मुइज्जू ने मंगलवार यानि 3 अक्टूबर अपने एक बयान में कहा कि ”लोग नहीं चाहते हैं कि भारत के सैनिकों की मौजूदगी मालदीव में हो। विदेशी सैनिकों के मालदीव की ज़मीन से जाना होगा।” ऐसा माना जा रहा है कि मुइज्जू का सीधा इशारा उन 75 सैन्य अधिकारियों की ओर था जो मालदीव में रहते हैं। इसपर भारत ने मालदीव को जवाब देते हुए कहा था कि ‘मालदीव की नई सरकार के साथ भारत हर मुद्दे पर बात करने को उत्सुक है।’

 

क्या है मामला

 

मुइज्जू ने विदेशी सैनिकों के बारे में बयान देते हुए वहां रहने वाले भारतीय सैनिकों के बारे में कहा है। दरअसल साल 2020 और 2013 में भारत ने मालदीव को उपहार के रूप में एक डोर्नियर विमान और दो हेलीकॉप्टर दिए थे। नवंबर 2021 में, मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल ने सुरक्षा सेवाओं पर संसदीय समिति को सूचित किया था कि विमान और हेलीकॉप्टर को संचालित करने के लिए 75 भारतीय सैन्यकर्मी मालदीव में तैनात थे। भारतीय सेना लंबे समय से मालदीव में है। यह वहां के लोगों की मदद करने के लिए ही तैनात है। लेकिन अब यह इन्ही भारतीय सैनिकों को अपने देश में नहीं रहने देना चाहता। इसका कारण है मालदीव द्वारा चीन को दिया जाने वाला समर्थन।

 

मालदीव

 

मालदीव ने क्यों दिया ऐसा बयान

 

मुइज्जू के इस बयान के विषय में विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को चीन का समर्थन कर रहे हैं। चीन हमेशा से ही भारत और इसके पड़ोसी देशों अपना प्रभाव जमाने की कोशिश में करता रहा है। इससे पहले पहले चीन ने पाकिस्तान ,श्रीलंका और नेपाल के जरिए भारत को घेरने की कोशिश की।  इन देशों का सहारा लेकर चीन किसी न किसी तरह भारत को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता रहता है।

 

इस तरह अब चीन मालदीव को भी अपना एक जरिया बनाना चाहता है। चीन मुइज्जू के माध्यम से भारत पर नजर रखने की कोशिश में जुट गया है। जानकारों के अनुसार राजनीतिक रूप से देखें तो मालदीव जिस समुद्र पर बसा है वो काफी महत्वपूर्ण है।  चीन मालदीव से अच्छे सम्बन्ध  बनाकर हिन्द महासागर पर कब्जा करने की तैयारी में है।  यही उसकी सबसे बड़ी रणनीति है।

 

अब तक भारत और मालदीव के संबंध कैसे रहे

 

भारत और मालदीव के बीच हमेशा से ही अच्छे संबंध रहे हैं। मालदीव को ब्रिटिशों से वर्ष 1965 में आजादी मिली थी। जिसके बाद भारत ने सबसे पहले  मालदीव को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता दी। भारत ने वर्ष 1972 में मालदीव में अपना दूतावास खोला जबकि चीन ने साल  2011 में यहाँ दूतावास खोला है। मालदीव और भारत के बीच राजनैतिक संबंध छोड़ कर सामाजिक, धार्मिक और कारोबारी रिश्ता भी रहा है। यहाँ लगभग  25 हजार भारतीय निवास करते हैं। मालदीव और भारत के बीच अंतरराष्ट्रीय संबंध सदैव द्विपक्षीय रहे हैं।  साथ ही दोनों देश दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन ( सार्क ) और साउथ एशियन इकोनॉमिक यूनियन के संस्थापक सदस्य हैं।

 

मालदीव

मालदीव भारत में अंतर्राष्ट्रीय सागरीय मार्ग वाले तेल व्यापार के लिए अति महत्वपूर्ण है। हिन्द महासागर में मालदीव के क्षेत्र में स्थित अंतर्राष्ट्रीय समुद्री जहाज मार्ग भारत, जापान और चीन की ऊर्जा आपूर्ति की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। मूल्यात्मक रूप में 75 प्रतिशत से अधिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हिन्द महासागर में बैठे मालदीव के अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड शिपिंग लेंस के माध्यम से होता है। जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि मालदीव भारत के लिए सागरीय अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

 

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